खास खबरछत्तीसगढ़दुर्ग भिलाई

भिलाई निगम में विभाजन के बाद महापौर पद का बदल सकता है आरक्षण, Reservation of mayor post may change after division in Bhilai Corporation

एक चौथाई ओबीसी घोषित करना आवश्यक
भिलाई / भिलाई से अलग होकर अस्तित्व में आये रिसाली नगर निगम के चलते कई समीकरण बदल गए हैं। इसी के चलते भिलाई नगर निगम के महापौर पद का आरक्षण बदलने की चर्चा है। ऐसा होने के पीछे भिलाई निगम के महापौर आरक्षण प्रक्रिया के बाद हुए विभाजन को कारण बताया जा रहा है। भिलाई निगम के महापौर का पद इससे अलग होकर बने रिसाली नगर निगम के अस्तित्व में आने से पहले प्रदेश के सभी निगमों के साथ कर दिया गया था। उस प्रक्रिया में भिलाई महापौर का पद अनारक्षित घोषित किया गया है लेकिन भिलाई नगर निगम में रिसाली निगम का विभाजन होने के बाद नियमत: भिलाई नगर निगम के महापौर पद का आरक्षण बदल सकता है। आरक्षण प्रक्रिया के बाद हुए निगम के विभाजन को आधार मानकर ऐसा किए जाने की जानकारी मिली है। जिले के ही भिलाई-चरोदा नगर निगम के साथ भिलाई निगम के भावी महापौर पद के लिए ओबीसी की लाटरी निकाले जाने की संभावना जताई जा रही है। बताया जाता है कि रिसाली के रूप में प्रदेश का 14 वां नगर निगम गठन होने से ओबीसी अर्थात अन्य पिछड़ा वर्ग का कोटा बढ़ गया है। लिहाजा अनुसूचित जाति अथवा अनुसूचित जनजाति के आरक्षण से मुक्त किसी एक नगर निगम के महापौर का पद ओबीसी को दिया जाना नियमों के तहत बंधनकारी है। अभी प्रदेश में चार नगर निगम का चुनाव होना शेष है। इसमें भिलाई के साथ रिसाली, बीरगांव तथा भिलाई-चरोदा नगर निगम शामिल है। भिलाई की तरह ही बीरगांव का महापौर पद आगामी चुनाव के लिए अनारक्षित घोषित है। जबकि भिलाई-चरोदा के महापौर पद को रिसाली निगम के गठन से पहले ही अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित किया गया है। लेकिन अब परिस्थितियां जातिगत आंकड़े के लिहाज से बदल गई है। प्रदेश के 14 नगर निगम में से रिसाली निगम 17.52 प्रतिशत के साथ अनुसूचित जाति वर्ग के टॉप पर आ गया है। इस स्थिति में 15.73 प्रतिशत अनुसूचित जाति आबादी वाली भिलाई-चरोदा जातिगत आरक्षण से मुक्त हो जाएगी। लिहाजा अब भिलाई-चरोदा के महापौर पद का आरक्षण नये सिरे से करना जरुरी हो गया है। यही स्थिति विभाजन के चलते भिलाई निगम के साथ भी आन पड़ी है। एक चौथाई ओबीसी घोषित करना जरुरी नगर निगम आरक्षण नियमों के तहत प्रदेश के कुल 14 में से एक चौथाई को अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित किया जाना जरुरी है। पहले जब आरक्षण किया गया था, तब प्रदेश में 13 नगर निगम थे। इसमें से एक चौथाई का प्रतिशत 3.25 था। जिसके चलते धमतरी, राजनांदगांव और कोरबा नगर निगम को अन्य पिछड़ा वर्ग क लिए आरक्षित किया गया। जिसमें से राजनांदगांव को एक तिहाई नियम का पालन करते हुए लॉटरी निकालकर अन्य पिछड़ा वर्ग महिला घोषित किया गया। अब प्रदेश में रिसाली को मिलाकर 14 नगर निगम होने से अन्य पिछड़ा वर्ग की भागीदारी एक चौथाई के लिहाज से 3.50 प्रतिशत हो गया है। नियमों के तहत दशमलव के बाद 50 या उससे अधिक होने की स्थिति में उसे पूरा एक मानकर गणना की जाती है। इसके चलते अन्य पिछड़ा वर्ग के महापौर की एक सीट बढ़ाना पड़ेगा। इस बढ़ोतरी को जिन निगमों के चुनाव अभी शेष है उन्हीं में से अंजाम दिया जा सकता है। बीरगांव नगर निगम की सीमा में कोई बदलाव नहीं होने से वहां के महापौर का आरक्षण फिर से किया जाना जरूरी नहीं है। ऐसे में किसी एक निगम को अन्य पिछड़ा वर्ग घोषित किए जाने का फैसला भिलाई सहित भिलाई-चरोदा और रिसाली निगम के बीच ही लिए जाने का विकल्प नजर आता है। लेकिन अनुसूचित जाति की आबादी का औसत पूर्व से इस वर्ग के लिए आरक्षित रायगढ़ और भिलाई-चरोदा निगम से अधिक होने से रिसाली का महापौर पद जातिगत आरक्षण में जाना तय दिख रहा है। इस स्थिति में भिलाई-चरोदा का महापौर अनुसूचित जाति से मुक्त हो जाने से भिलाई निगम के साथ अन्य पिछड़ा वर्ग की लाटरी निकालकर महापौर पद को आरक्षित किये जाने का संकेत मिल रहा है ।

Related Articles

Back to top button