दूसरों के गुण दोष बताएँ या नहीं? बताएँ, परन्तु सुरक्षित ढंग से।- ज्योतिष

*दूसरों के गुण दोष बताएँ या नहीं? बताएँ, परन्तु सुरक्षित ढंग से।- ज्योतिष*
प्रत्येक व्यक्ति में कुछ न कुछ गुण होते हैं, और कुछ दोष भी होते हैं। जिस व्यक्ति के सारे दोष समाप्त हो गए, वह तो मोक्ष में चला जाएगा। उस का अगला जन्म नहीं होगा। परंतु यदि किसी ने जन्म लिया है, तो इसका अर्थ है कि उसमें अभी कुछ दोष बचे हुए हैं। उन्हीं दोषों का नाश करने के लिए ही उसका जन्म हुआ है, ताकि वह अपने सभी दोषों का नाश कर के मोक्ष प्राप्त कर ले। इससे यह सिद्ध हुआ, कि सभी लोगों में गुणों के साथ साथ, कुछ न कुछ दोष भी हैं। *(“क्योंकि जब तक अविद्या राग द्वेष काम क्रोध ईर्ष्या अभिमान आदि सारे दोष नष्ट नहीं होंगे, तब तक मोक्ष नहीं होगा।” यह नियम वैदिक शास्त्रों में लिखा है।)
दोष सदा दुखदायक होते हैं, अपने लिए भी, और दूसरों के लिए भी। गुण सदा सुखदायक होते हैं, अपने लिए भी, और दूसरों के लिए भी। जीवन को ठीक प्रकार से चलाने के लिए हमें एक दूसरे के साथ मिल जुलकर रहना होता है। एक दूसरे से लाभ उठाना होता है, तथा एक दूसरे को लाभ पहुंचाना भी होता है। इसी प्रकार से जीवन सुखमय रीति से चलता है।
जब मिल जुल कर रहते हैं, तो अपने साथियों मित्रों रिश्तेदारों के गुणों के कारण हमें सुख मिलता है। और उनके दोषों के कारण हमें दुख भी मिलता है। हमारे गुणों से भी उनको सुख मिलता है। और हमारे दोषों के कारण उनको भी दुख मिलता है।
जब उनसे हमें सुख मिलता है, तब तो हमें अच्छा लगता है। और जब उनके दोषों के कारण हमें दुख मिलता है, तो हमें अच्छा नहीं लगता। फिर भी जीवन चलाने के लिए एक दूसरे के साथ मिल जुलकर रहना ही पड़ता है।
ऐसी स्थिति में जीवन को किस प्रकार से जिएं? इस प्रश्न का उत्तर है, कि — दूसरों के दोषों को थोड़ा सहन करें। क्योंकि आपके दोषों को भी तो वे दूसरे लोग सहन करते हैं। आपके गुणों से दूसरों को सुख मिलता है, तो दूसरों के गुणों से आपको भी सुख मिलता है। यदि आप दूसरों के गुणों का लाभ लेना चाहते हों, तो थोड़ा-थोड़ा उनके दोष भी आप को सहन करने होंगे।
यदि आप दूसरों के दोष सहते ही जाएँ, तो इससे यह भी संभावना होती है, कि दूसरों के दोष बढ़ते ही जाएंगे। वे कम नहीं होंगे, समाप्त नहीं होंगे, और आपको सदा दुख देते रहेंगे। इसलिये दूसरे व्यक्तियों के दोष बढ़ते ही न जाएँ, उनको रोकना भी आवश्यक है। इसलिए उन्हें दोष बताने भी पड़ेंगे, ताकि वे दोष नष्ट हो जाएं और आपको दुख न देवें।
इस दूसरों के दोषों के निवारण की प्रक्रिया में दूसरों को दोष बताएं। परंतु बहुत सावधानी से बताएं। यह बहुत खतरनाक काम है। *क्योंकि दोष बताने से दूसरे व्यक्तियों को अपमान अनुभव होता है। उससे उनको दुख भी होता है। वे लोग दुख भोगना चाहते नहीं, बल्कि अनेक बार तो अपने दोषों को सुनकर, घबराकर झगड़ा भी कर लेते हैं। “इसलिए दोष बताने वालों को, उनके दोष बताने में डर भी लगता है। झगड़े से बचने के लिए वे लोग दोष बताते नहीं।”
परंतु ऐसा करने से उनकी समस्या हल तो होती नहीं, बल्कि वे उन दोषों से दुखी होते रहते हैं। और धीरे-धीरे डिप्रेशन में चले जाते हैं। आगे चलकर और भी न जाने कैसे-कैसे कदम उठा लेते हैं, जो नहीं उठाने चाहिएँ। इसलिए ऐसी समस्याओं से बचने के लिए दूसरों को दोष बताना, उनके दोषों को रोकना, दूर करना आवश्यक हो जाता है। तो दूसरों को दोष बताने की सुरक्षित प्रक्रिया इस प्रकार से है।
दोष बताने से पहले उनको, उनके दो चार गुण बताएं। इससे वे प्रसन्न हो जाएंगे। इससे उनकी दोष सुनने की स्थिति बनेगी। फिर बड़े प्रेम से मीठी वाणी में हल्के से उनका एक आध दोष बताएं। गुण अधिक बताएँ, दोष कम। ऐसा करने से वे अपने दोष को सुन सकेंगे, सहन कर सकेंगे, मनन विचार कर सकेंगे और शायद दूर भी कर लेवें। ऐसी संभावना हो सकती है। तब उनका संबंध प्रेम संगठन भी आपके साथ बना रहेगा, और लंबे समय तक आप दूसरों के साथ मिलजुल कर रह भी पाएंगे। एक दूसरे को सुख देंगे। सब लोग कुछ अच्छे ढंग से जीवन जी लेंगे।
इसके विपरीत, यदि आपने दूसरों को दोष अधिक बता दिए, अथवा कोई झूठा आरोप लगा दिया, तो दूसरे लोग आपसे तुरंत नाराज हो जाएंगे और आपसे संबंध तोड़ डालेंगे। जिसकी हानि आपको जीवन पर उठानी पड़ेगी। इसलिए बुद्धिमत्ता इसी बात में है, कि दूसरों के दोष कम बताएं, गुण अधिक बताएं, जिससे कि उनके साथ आपका संबंध लंबे समय तक अथवा जीवन भर ठीक ठाक बना रहे, और आप जीवन भर एक दूसरे से लाभ लेते रहें।