कलेक्टर के आदेश के बाद भी नही हो पाया सिटी बसों का परिचालन

कोरोना के कारण खड़े खड़े बसें हो गई पूरी तरह कंउम
भिलाई। कलेक्टर के आदेश के बाद भी अब तक सिटी बसों का परिचालन नही हो पाया जिसके कारण लोगों को अपने स्थानीय स्तर पर अपने गंतव्य तक लोगों को पहुंचने में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, और मिनी बसों में तथा टेम्पों में सफर कर अधिक किराया देने लोग मजबूर हो गये है। कोरोना के कारण बंद हुई सिटी बसों को दुबारा शुरू होना अब मुश्किल ही लग रहा है क्योंकि कोराना के कारण पिछले मार्च माह से ही सभी सिटी बसों नगर निगम के पास चन्दुलाल चंद्राकर बस स्थानक में खड़े खड़े पूरी तरह कंडम हो गई है। इसी वजह से पखवाड़े भर पहले सिटी बसों के पुन: परिचालन शुरू करने कलेक्टर के दिए गए आदेश का पालन करने में संबंधित एजेंसी अपने आपको तैयार नहीं कर पा रही है।
कलेक्टर दुर्ग डॉ सर्वेश्वर नरेन्द्र भूरे ने पखवाड़े भर पहले बैठक में जिम्मेदार अधिकारियों को सिटी बसों का परिचालन फिर से शुरू कराने का निर्देश दिया था। बावजूद इसके इस दिशा में अब तक कोई प्रयास या पहल होता नजर नहीं आया है। इसके पीछे जो बात सामने आई है वह काफी चौकाने वाला है। बताते हैं कोरोना काल में डिपो में लगभग नौ महीने से खड़ी किसी भी सिटी बस की स्थिति ऐसी नहीं रह गई है कि उसे फिर से चलाया जा सके।
दरअसल कोरोना संक्रमण को देखते हुए मार्च के अंतिम सप्ताह में लॉकडाउन घोषित होने के साथ ही दुर्ग जिले की सभी सिटी बसें डिपो में खड़ी कर दी गई है। लॉकडाउन से पहले 54 सिटी बसें दुर्ग-भिलाई अर्बन पब्लिक ट्रांसपोर्ट सोसाइटी के माध्यम से विभिन्न रूट पर दौड़ रही थी। हालांकि शुरुवात में 70 बसें चलायी जानी थी। लेकिन बाद में आई 14 बसें परमिट के अभाव में सड़क पर उतरने से पहले ही डिपो में खड़ी रहकर कंडम हो गई। जिन 54 बसों का परिचालन नियमित था, उनमें से ज्यादातर रखरखाव के अभाव में कंडम होने लगे थे। ऐसे में कोरोना काल में जब इन बसों को डिपो में खड़ा कर दिया गया और देखते-देखते एक लंबा समयांतराल बीत चुका है तो अब कथित तौर पर कोई भी बस सड़क में वापसी करने के लायक नहीं रह गई है।
बताया जाता है कि नौ महीने से एक जगह पर खड़ी सिटी बसों के इंजन में जंग लग चुका है। बौटरियां पूरी तरह से खराब हो चुकी है। पहियों का भी बुरा हाल है। एक आंकलन के अनुसार प्रत्येक सिटी बस को मेंटेनेंस के बाद सड़क पर वापसी के लायक बनाने में लाख से डेढ़ लाख रुपए तक का खर्च आएगा। संचालन एजेंसी का रूख ऐसा नहीं दिख रहा है कि वह भारी भरकम राशि खर्च करके कंडम हो चुके सिटी बसों का मेंटेनेंस करा सके। ऐसे में पुरानी सिटी बसों की फिर से सड़क पर वापसी फिलहाल नामुमकिन ही लग रही है।