छत्तीसगढ़

दूसरे की लाइसेंस पर मेडिकल हॉस्पिटल संचालित झोला छाप डाक्टरो ने मचा रखी ग्रामीण क्षेत्रों में लूट

पोंडी व आस पास क्षेत्रों में कई जगह मेडिकल स्टोर्स बिना फार्मासिस्ट के ही संचालित हो रहे हैं तो कई मेडिकल बिना लाइसेंस के संचालित किए जा रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग को भी इसकी भनक लंबे समय से है, फिर भी सब जानते हुए भी उदासीन रवैया अपनाए हुए हैं। पोंडी आस पास में कई मेडिकल स्टोर्स हैं। कहने को तो मेडिकल स्टोर्स के संचालन के लिए डिग्री, डिप्लोमा, सर्टिफिकेट के आधार पर लाइसेंस जारी किए जाते हैं, लेकिन हकीकत इससे परे है।
पोंडी के कुछ मेडिकल व्यवसाई नियमों को ताक में रखते हुए मेडिकल दुकानों का संचालन कर रहे हैं। बिना लाइसेंस, फार्मासिस्ट के पोंडी व आस पास में कुछ मेडिकल दुकान का व्यवसाय किया जा रहा है। कई मेडिकलों में अपात्र व्यक्तियों को मेडिकल दुकान संभालने की जिम्मेदारी दे दी गई है, जिसे दवाइयों की जानकारी तक नहीं रहती है। इन मेडिकल स्टोर्स के खिलाफ ना तो ड्रग इंस्पेक्टर कोई कार्रवाई करते हैं और ना ही स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी। गैर डिप्लोमा, डिग्रीधारी द्वारा मेडिकलों का संचालन करने से मरीजों की जान को खतरा रहता है। ऐसे में दवाइयों की सही जानकारी नहीं होने से मरीजों को गलत दवाइयां दी जा सकती है और मरीजों की जान पर बन सकती है।

दूसरे के नाम के सर्टिफिकेट का उपयोग मेडिकल व हॉस्पिटल संचालित करने में कर रहे
पोंडी व आस पास के कुछ मेडिकल दूसरे के नाम के सर्टिफिकेट द्वारा जारी लाइसेंस का उपयोग मेडिकल स्टोर्स व हॉस्पिटल संचालित करने के लिए कर रहे हैं। मासिक या सालाना के आधार पर लाइसेंस के लिए लेन-देन होता है। तीन से चार हजार रुपए महीनें में लाइसेंस उपलब्ध हो जाता है। स्वास्थ्य विभाग से जुड़े सूत्रों की माने तो नियामें को ताक पर रखकर शहर के मेडिकलों द्वारा नियमों की धज्जियां उडाई जा रही है।

संचालक कच्चे बिल पर देते हैं लोगों को दवाइयां
अधिकांश मेडिकल स्टोर्स संचालक दवाइयों देने पर ग्राहकों को दवाओं का बिल नहीं देते हैं। मेडिकल स्टोर्स पर दवाएं भी विक्रेता मुंह देखकर देते हैं। कई बार ग्रामीण क्षेत्रों से आए लोगों को कंपनी की दवाओं को छोडकऱ उसी फॉर्मूले की लोकल दवाइयां थमा दी जाती है। इससे मेडिकल संचालकों को अच्छी बचत होती है। सूत्रों की माने तो बिल देने के एवज में मेडिकल संचालकों को दवाओं की कंपनी भी उल्लेखित करना पड़ती है। इसी वजह से बिल देने से बचते नजर आते हैं। ऐसे में मरीज डॉक्टरों के निजी प्रैक्टिस के समय उनके क्लीनिक या घर
पर जाकर जांच करवाते हैं। बस यहीं से सस्ती दवाइयां महंगे दामों पर बेचने के धंधे की शुरुआत हो जाती है।

झोला छाप डॉक्टरो ने मचा रखी लूट
पोंडी व आसपास गावो में फर्जी झोला छाप डॉक्टर जमकर लूट मचा रहे है माने तो यह डिग्री धारी डॉक्टर नही होते है ये सब छोटे क्लीनिक और हॉस्पिटल से थोड़ी दिन नर्सिंग काम सिख कर ग्रामीण इलाकों में लोगो को सुई पानी लगाना शुरू कर देते है। इनके द्वारा दी गई सुई और दवाइयों से कभी कभी मरीजो को भारी नुकसान उठाना पड़ता है साथ ही अधिक पैसा भी वसूली करते है इन्ही झोला छाप डॉक्टरों से मेडिकल संचालको का साठ गांठ बंधा हुआ होता है जो इन फर्जी झोला छाप डॉक्टरों को बिना डिग्री देखे ही दवाई आसानी से उपलब्ध करा देते है ।

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