अमेरिका में बुरी तरह नाकाम हो रहा है वैक्सीन वितरण कार्यक्रम, क्यों और कैसे?

वर्दी पर चार स्टार रखने वाले अमेरिकी जनरल गुस्ताव पर्न (General Gustave Parne) ने इस हफ्ते माफी मांगी कि कोरोना वायरस (Corona Virus) के खिलाफ वैक्सीन लगाने के कार्यक्रम (Vaccination Drive) में जो गड़बड़ियां हुईं, उसके लिए वो ज़िम्मेदारी लेते हैं. अमेरिका में प्रशासन का दावा था कि वैक्सीन वितरण ठीक तरह से हो जाएगा और आम आदमी तक वैक्सीन पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाएगी, लेकिन असलियत यह रही है कि वैक्सीन कार्यक्रम (Vaccination Program) किसी बुरे सपने जैसा मालूम हो रहा है. भारी बदइंतज़ामी के बीच अव्वल तो ज़रूरतमंदों तक वैक्सीन पहुंच नहीं रही और जिन्हें मिल पा रही है, उन्हें बड़ी मुश्किलों से.
विशेषज्ञों ने पहले भी चेतावनी दी थी कि वैक्सीन वितरण टेढ़ी खीर होगा, लेकिन ट्रंप प्रशासन ने कहा था कि अनुभवी जनरल पर्न की निगरानी में यह आसानी से संभव हो जाएगा. लेकिन अब विशेषज्ञ कह रहे हैं कि अफगानिस्तान के पहाड़ी युद्धग्रस्त इलाकों में टैंकों और सेना को मूव करवाने से ज़्यादा मुश्किल काम अमेरिका में ठीक से वैक्सीन वितरण करवाना साबित हुआ. आखिर ये पूरा माजरा क्या है?वैक्सीन वितरण में क्या गड़बड़ियां हुईं?
दर्जनों राज्य कह रहे हैं कि वैक्सीन के जितने डोज़ का वादा किया गया, उतने मिले ही नहीं. उधर वैक्सीन निर्माता कंपनी फाइज़र कह रही है कि लाखों करोड़ों डोज़ उसके स्टोर रूम में इसलिए पड़े हैं क्योंकि ट्रंप प्रशासन से बताया ही नहीं जा रहा कि कहां भेजने हैं! दूसरे, कई अमेरिकी राज्यों में बहुत कम जगहों पर -70 डिग्री तापमान मेंटेन कर पाने वाले चुनिंदा स्टोरेज ही हैं.
स्टोरेजों की किल्लत का नतीजा यह है कि जॉर्जिया में किसी फ्रंटलाइन वर्कर को वैक्सीन लेने के लिए 40 मिनट का सफर करके पहुंचना पड़ रहा है. कई अस्पतालों में कोविड के मरीज़ों के परिजन कह रहे हैं कि उन्हें वैक्सीन नहीं मिली जबकि प्रशासन के उन लोगों तक को वैक्सीन मिली, जो ‘वर्क फ्रॉम होम’ ही कर रहे हैं और मरीज़ों को देखते तक नहीं. कुल मिलाकर वैक्सीन वितरण के पूरे तंत्र पर सवालिया निशान लग गया है.
अब क्या हैं आशंकाएं?
नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन के प्रशासन में सर्जन जनरल बनने वाले डॉ. विवेक मूर्ति इस बेइंतज़ामी से और असंतोष फैलने की आशंका ज़ाहिर कर रहे हैं. मूर्ति ने कहा कि ट्रंप प्रशासन ने जैसा दावा किया था कि अप्रैल तक सभी नागरिकों को वैक्सीन मिल जाएगी, यह तभी संभव होगा जब व्यवस्था ठीक से चले. मौजूदा गड़बड़ियां देखते हुए मूर्ति के हिसाब से यह लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकेगा.
मूर्ति से पहले भी वैक्सीन वितरण को लेकर काफी आशंकाएं ज़ाहिर इसलिए की गई थीं क्योंकि कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में भी अमेरिकी राज्यों और प्रशासनिक इकाइयों के बीच सामंजस्य और संयोजन बहुत खराब रहा था. राष्ट्रीय और वैश्विक आपदा से निपटने के लिए सभी अपना राग अलाप रहे थे और बगैर किसी व्यापक गाइडलाइन के हर जगह व्यवस्था को लेकर अराजकता दिखी थी.
कैसे नाकाम हो गया सिस्टम?
ट्रंप प्रशासन ने डिफेंस प्रोडक्शन एक्ट को लागू करने में रुचि नहीं दिखाई, जिसके ज़रिए आपात स्थिति में तेज़ी से वैक्सीन उत्पादन की चुनौती से निपटा जा सकता था. मिसाल के तौर पर इस एक्ट के तहत दूसरे विश्व युद्ध के समय तेज़ी से सप्लाई के लिए मिलिट्री के लिए जहाज़ों के हार्डवेयर पार्ट बनाने के ठेके खिलौने बनाने वाली कंपनियों को मिल गए थे.
ट्रंप प्रशासन ने इस हफ्ते संकेत दिए हैं कि इस दिशा में सोचा जा रहा है, लेकिन यह समय रहते होना चाहिए था.
वास्तव में, केंद्रीय स्तर पर कोई रणनीति नहीं बनी, जबकि कई प्राइवेट कंपनियां महामारी से मुनाफे के लिए प्रतियोगिता में लगी हुई थीं और हैं.
वैक्सीन से पहले कोरोना के बिगड़े हालात को संभालने की चुनौती के दौरान भी अमेरिका में यह साबित हुआ था कि किस तरह पूरा हेल्थ सिस्टम मुनाफा कमाने की होड़ में था और लोगों का स्वास्थ्य और सुरक्षा प्राथमिकता में नहीं थी. अब भी यही आलम है कि वैक्सीन किसे पहले दी जाए, अमेरिकी राज्यों तक न तो यह स्पष्ट गाइडलाइन है और न ही किसी निर्देश के पालन की स्थिति है.
अमेरिका को लेने होंगे ये सबक
साल 2021 जब दस्तक दे रहा है तो सवाल यही है कि फ्रंटलाइन वर्करों को वैक्सीन कब तक मिलेगी? जो गंभीर बीमार हैं, उन्हें वैक्सीन मिलने की बारी कब आएगी? बेल्जियम में ज़्यादातर अस्पताल और डॉक्टर प्राइवेट हैं, लेकिन महामारी के दौर में एक केंद्रीय संस्था की तरह काम करते दिखे. वहां, लोगों तक चिट्ठी और मैसेज पहुंच रहे हैं कि वैक्सीन की उनकी बारी कब है.
दूसरी तरफ, महामारी से जूझ रहे ब्रिटेन में भी वैक्सीन वितरण अमेरिका की तुलना में इसलिए काफी बेहतर है क्योंकि वहां न केवल स्पष्ट गाइडलाइन है कि किसे पहले वैक्सीन मिलेगी, बल्कि यहां तक व्यवस्था है कि हर व्यक्ति को यह सूचित किया जा सके कि उसे कब तक वैक्सीन मिल सकेगी. और अमेरिका में सिर्फ अटकलें, कटाक्ष और मायूसी का ही दौर बना हुआ है