जिले के हवा में घुल रही गुड़ फैक्ट्री की गंदी हवा, बगैर लाइसेंस चल रहे ज्यादातर गुड़ उद्योग
कबीरधाम जिला पूरे प्रदेश में सबसे ज्यादा गन्ना उत्पादन वाला जिला है। यहां हर वर्ष लगभग 20 हजार हेक्टेयर से ज्यादा में गन्ने की फसल ली जाती है। गन्ना किसान अपने गन्ने को शक्कर कारखाना या गुड़ फैक्ट्री में बेचते हैं, लेकिन आपको जानकारी हैरानी होगी कि जिले के ज्यादातर गुड़ फैक्ट्री शासन के नियमों के अधीन काम नहीं कर रही है। सभी गुड़ फैक्ट्री को भिलाई के पर्यावरण संरक्षण वप्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से प्रमाण पत्र लेना जरुरी है। गौर करने की बात है कि पर्यावरण संरक्षण व प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के विभागीय मंत्री कवर्धा विधायक मोहम्मद अकबर है। इसके बाद भी जिला प्रशासन के पास बगैर लाइसेंस लिए गुड़ फैक्ट्री का हिसाब नहीं है। इस कारण जिले में इन गुड़ फैक्ट्री से निकलने वाले धुएं से लोगों को समस्या हो सकती है।
आज तक नहीं हुई जांच व कार्रवाई
गन्ना उत्पादक क्षेत्र होने के कारण जिले में गुड़ बनाने का कारोबार लंबे समय से चल रहा है। ज्यादातर कारोबारियों ने खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत लाइसेंस भी नहीं बनवाया है और बिना जांचे-परखे गुड़ का निर्माण कर छत्तीसगढ़ सहित अन्य राज्यों में भी बेचा जा रहा है। खाद्य विभाग ने अब तक जिले में गुड़ कारोबारियों की जांच व नोटिस के संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की है। जिससे इनके हौसले बुलंद है। कार्रवाई नहीं होने के कारण गुड़ व्यापारी लाइसेंस बनवाना जरूरी नहीं समझते और अमानक गुड़ का कारोबार कर रहे हैं।
लेबर कानून का होता है खुला उल्लंघन
इन उद्योगों में काम करने वाले लेबरों का फैक्ट्री संचालक के साथ न तो कोई एग्रीमेंट होता है ना ही किसी भी प्रकार का लेबर एक्ट के तहत बीमा कराया जाता है। अधिकांश लेबर राज्य के बाहर से लाए जाते हैं। इसके बाद भी फैक्ट्री संचालक इन मजदूरों का रिकार्ड थाने में जमा नहीं करते हैं। इस तरह आराध को बढ़ावा दे रहा है। इसका फायदा आपराधिक प्रवृत्ती के लोग उठाते हैं। लेबर के वेश में आकर अपने मनसूबे को पूरा कर जाते हैं। ऐसे में आपराधिक मामला सामने आए तो पुलिस के सामने मुश्किले खड़ी हो सकती है। पूर्व में कई गंभीर अपराध इन्हीं फैक्ट्री में काम करने वाले लोगों के द्वारा किए गए हैं।
किसान को नहीं मिलता लाभ
गुड़ उद्योग संचालक अधिक लाभ कमाने की फिराक में नियमों की धज्जियां उड़ाते हैं। इसके चलते गुड़ उद्योग संचालक तो मालामाल हो रहा है, लेकिन इसका लाभ किसानों को नहीं मिल पता। आवक के हिसाब से गन्ने की कीमत कम-ज्यादा करते रहते हैं। इसके बाद भी किसान मजबूरीवश अपना गन्ना गुड़ उद्योगों को दे रहे हैं। इसका मुख्य कारण शक्कर कारखाना में किसानों को जारी किए जाने वाले पर्ची सीमित किया जाना व शेयरधारकों प्राथमिकता देना है। इसके साथ ही कई बार किसानों से गन्ना खरीदने के बाद राशि नहीं दिए जाने का मामला भी सामने आ चुका है। बीते वर्ष तो एक गुड़ फैक्ट्री संचालक के खिलाफ एफआइआर दर्ज भी की गई थी।
टीन में शीरा भरकर सप्लाई
जिले में गुड़ फैक्ट्री संचालित करने के लिए इसलिए छूट मिली है, ताकि वह गुड़ का उत्पादन करें, लेकिन यहां पर गुड़ का उत्पादन ही नहीं किया जाता। यहां के सभी गुड़ फैक्ट्री में केवल तरल रूप में शीरा तैयार करते हैं। इस शीरा को टीन के डिब्बों में भरकर अन्य राज्यों तक सप्लाई किया जाता है। यह शीरा अन्य राज्यों में शराब निर्माण के लिए उपयोग होता है। जबकि गुड़ फैक्ट्री संचालक धोखा देते रहते हैं कि गुड़ को ही तरल रुप में भेजा जाता है।