छत्तीसगढ़दुर्ग भिलाई

आरटीई की प्रतिपूर्ति राशि समय से जारी नही होना प्रायवेट स्कूल में पढाने वाले पालकों को पड़ रहा है भारी

कापॅी किताब व अन्य सामग्री खरीदना पड़ रहा है भारी,

परेशान गार्जियन टीसी ले भर्ती करा रहे हैं सरकारी स्कूल में

जारी करने ही हुई मांग, लगभग 250 करोड़ है बकाया

दुर्ग। शिक्षा का अधिकार कानून के अंतर्गत प्रदेश के 6400 प्रायवेट स्कूलों में लगभग 2.85 लाख अध्ययनरत् है और इस वर्ष 2020-21 में भी अब तक लगभग 30 हजार बच्चों को प्रायवेट स्कूलों में प्रवेश दिया गया है। ऐसे प्रवेशित बच्चों के ऊपर किये जा रहे व्यय की प्रतिपूर्ति राज्य के द्वारा की जा रही है, लेकिन लगभग 250 करोड़ प्रतिपूर्ति राशि बकाया है, जो विगत दो वर्षो से प्रायवेट स्कूलों को प्राप्त नहीं हुआ है, जिसको लेकर प्रायवेट स्कूलों के द्वारा लगातार मांग किया जा रहा है।

छत्तीसगढ पैरेंट्स एसोसियेशन के प्रदेश अध्यक्ष क्रिष्टोफर पॉल ने मुख्यमंत्री और स्कूल शिक्षा प्रमुख सचिव को पत्र लिखकर प्रायवेट स्कूलों की बकाया प्रतिपूर्ति राशि अविलंब जारी करने और राशि भी बढाने की मांग किया गया है।

श्री पॉल का कहना है कि प्रतिवर्ष विधानसभा मे प्रश्न भी पूछे जाते है कि आरटीई की राशि कितना आंबटन हुआ और कितना बकाया है, कितने बच्चो को प्रायवेट स्कूलों को प्रवेश दिया गया है, लेकिन यह प्रश्न नहीं पूछा जाता है कि कितने आरटीई के प्रवेशित बच्चों ने प्रायवेट स्कूलों को छोड़ दिया और शालात्यागी बच्चे किन कारणों से प्रायवेट स्कूल छोड रहे है। प्रदेश में अब तक लगभग 15 हजार आरटीई के अंतर्गत प्रवेशित बच्चों ने प्रायवेट स्कूल छोड दिया है, इसकी जानकारी लगातार एसोसियेशन के द्वारा स्कूल शिक्षा विभाग को भी दिया जा रहा है, लेकिन इस पर विभाग ने कभी गंभीरता से जांच तक नहीं कराया, जो चिंता का विषय है, क्योंकि समय पर राशि जारी नहीं होने से प्रवेशित बच्चों को स्वयं अपने लिए कॉपी-किताब, जूते-मोजे और ड्रेस खरीदने पढते है, जिसके लिए प्रत्येक पालक को लगभग 10 हजार व्यय करना पड़ता है, जो एक गरीब पालक के लिए समस्या बन जाता है, जिससे तंग आकर पालक अपने बच्चों को प्रायवेट स्कूलों से निकाल कर सरकारी स्कूलों में डालने के लिए मजबूर हो रहे है। राज्य कि यह जिम्मेदारी है, वे गरीब तबके के बच्चों को प्रायवेट स्कूलों में प्रवेश दिलाये और शिक्षा पूर्ण होने तक उनकी निगरानी करें, मगर ऐसा नहीं हो रहा है, क्योंकि पहले प्रवेश देने में आना-कानी किया जाता है और प्रवेश देने के पश्चात् उनका कोई सुध लेने वाला नहीं होता है। शिक्षा का अधिकार कानून को कागजों में नहीं क्लास रूम में कड़ाई से पालन कराने की जरूरत है।

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