वाणी का संयम, सारी दुनियां को वश में कर सकता है- ज्योतिष
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*वाणी का संयम, सारी दुनियां को वश में कर सकता है- ज्योतिष*
बुद्धिमान् विद्वान् लोगों ने ऐसा कहा है, कि यदि आप सारे संसार को एक ही कर्म से अपने वश में करना चाहते हैं, तो आपको अपनी वाणी पर संयम करना होगा। मीठी सम्मान पूर्ण भाषा बोलें, और फिर उसका चमत्कार देखें।
लोग दिन भर बोलते हैं। बहुत लोगों के साथ बोलते हैं। परंतु किसके साथ क्या बोलना है? कब बोलना है? कितना बोलना है? किसके साथ कैसे शब्द बोलने हैं? तथा किसके साथ कैसे शब्द नहीं बोलने हैं? इन सब बातों पर विशेष विचार किए बिना ही लोग, दिन भर कुछ भी बोलते रहते हैं। उससे कितनी अधिक हानि होती है, इसका उन्हें अनुमान भी नहीं होता। यदि वे ऐसी अनुचित भाषा बोलने का दुष्परिणाम या हानियां समझने लग जाएं, तो निश्चित रूप से ऐसी ऊल जलूल भाषा बोलना बंद कर देंगे।
मनोविज्ञान कहता है, कि जब भी आप किसी दूसरे व्यक्ति के साथ भाषा बोलते हैं, या कोई व्यवहार करते हैं, तो आप के मन में दूसरे व्यक्ति की एक छवि होती है। या तो आप सामने वाले व्यक्ति को, अपने बराबर का मानते हैं, या अपने से छोटा मानते हैं, या बड़ा मानते हैं। जब तक आप उसे अपने से बड़ा, छोटा या बराबर का निर्णय नहीं कर लेते, तब तक आप दूसरे व्यक्तियों के साथ ठीक ठाक व्यवहार नहीं कर सकते।
जब आप अपरिचित लोगों से बातचीत करते हैं, तो उनसे बात करने पर भी, प्राय: कुछ देर में पता चल जाता है, कि सामने वाला व्यक्ति आपसे छोटा है, बड़ा है, या बराबर का है।
परंतु जो लोग वर्षों से आपके परिचित हैं, आपके परिवार के सदस्य हैं, मित्र हैं, संबंधी/ रिश्तेदार हैं, या आपके कार्यालय में सहकर्मी हैं, ऐसे लोगों को तो आप अच्छी प्रकार से पहचानते हैं, कि ये लोग मुझसे छोटे हैं, बड़े हैं, या बराबर के हैं। जिन्हें आप अच्छी प्रकार से पहचानते हैं, कम से कम उनके साथ तो आपको उचित भाषा का प्रयोग करना चाहिए!
अब बुद्धिमत्ता की सामान्य बात तो यही है, कि – सामने वाले छोटे बड़े व्यक्ति को देखकर वैसी भाषा का प्रयोग किया जाए।
परंतु अपवाद यह कहता है कि अभिमान के नशे में व्यक्ति इतना चूर हो जाता है, वह यह भी भूल जाता है, कि मैं जिस से बात कर रहा हूं, वह मुझसे बड़ा है या छोटा है! वह अभिमान के नशे में बड़े को भी छोटा समझकर उसके साथ असभ्य भाषा का प्रयोग करता है। अनुचित ढंग से लेन-देन आदि व्यवहार करता है। इससे क्या हानि होती है? जब छोटा व्यक्ति, बड़े व्यक्ति के साथ असभ्य भाषा का प्रयोग करता है, तो बड़ा व्यक्ति, उस छोटे व्यक्ति की असभ्य भाषा को सुनकर उसके सामने तो नहीं कहता कि – आपकी भाषा असभ्य है, परंतु अपने मन में उसको मूर्ख अवश्य मान लेता है। और अपने मन में ऐसा कहता है, कि इसे अनेक बार समझा लिया, परंतु इसे समझ में ही नहीं आती, कि बड़े छोटे के साथ कैसी भाषा बोलनी चाहिए! अब और समझाने पर भी यह मानेगा नहीं। यह मूर्ख और दुरभिमानी व्यक्ति है। ऐसे मूर्ख व्यक्ति के मुंह क्या लगना! इसलिए इसे मूर्ख मानकर छोड़ दिया जाए।
ऐसा वाक्य अपने मन में बोलकर, वह व्यक्ति अभिमानी व्यक्ति की उपेक्षा कर देता है, और अपने मन को शांत कर लेता है। जिसका परिणाम यह होता है, कि बड़े व्यक्ति के मन में, असभ्य भाषा बोलने वाले के प्रति जो प्रेम पहले था, जो सद्भावना तथा सम्मान की भावना थी, वह सब नष्ट हो जाती है।
अब सोचिए, अभिमानी व्यक्ति ने अपनी मूर्खता से असभ्य भाषा बोल कर क्या कमाया? कुछ नहीं। बल्कि दूसरे व्यक्ति का प्रेम सद्भावना सम्मान आदि सब कुछ खो दिया।
“अब आगे भी वह बड़ा व्यक्ति, उस अभिमानी व्यक्ति के साथ व्यवहार चलाने के लिए बातचीत भले ही करता रहेगा, परंतु उसे मूर्ख, अभिमानी और दुष्ट मानकर व्यवहार करेगा।” यह हानि उस अभिमानी व्यक्ति को समझ में नहीं आती। इसलिए वह अभिमानी व्यक्ति अपने से बड़ों के साथ भी ऊल जलूल भाषा बोल बोलकर लंबे समय तक अपनी हानि करता रहता है।
इस बात की अनुभूति उसे तब होती है, जब कोई उससे छोटा व्यक्ति उसके साथ ऐसी ही असभ्य भाषा बोल कर बदतमीजी करता है। तब उसे होश आता है, कि मैंने भी अपने से बड़ों के साथ अब तक बहुत बदतमीजी की है। मुझे भी अपने से बड़ों के साथ सभ्यता से भाषा बोलनी चाहिए थी। परंतु अब भी यदि वह अभिमानी व्यक्ति संभल जाए, सुधर जाए, तो उसे अपना बहुत सौभाग्य मानना चाहिए। परंतु कोई कोई महामूर्ख दुरभिमानी व्यक्ति तब भी अपना सुधार नहीं करते। अब ऐसे लोगों का मालिक तो ईश्वर ही है। ऐसे लोग तो ईश्वर के दंड से ही सुधरेंगे।
जो बुद्धिमान विनम्र व्यक्ति ईश्वर की आज्ञा का पालन करते हुए सबके साथ संभल संभल कर सभ्यतापूर्वक भाषा बोलते हैं, तथा उचित व्यवहार करते हैं, वे सदा सुखी होते हैं, और दूसरे लोग उनका सम्मान एवं सेवा भी करते हैं। इसलिए बोलने से पहले चार पांच बार खूब अच्छी तरह से सोचें, कि मुझे किसके साथ कैसी भाषा बोलनी चाहिए।
प्रश्न — बड़ों के साथ कैसी भाषा बोलनी चाहिए? उत्तर — उनके साथ विनम्र भाषा बोलनी चाहिए। जैसे कि — आप पधारिए। देखिए। लीजिए। सुनिए। खाइए, पीजिए। यदि आप बाज़ार जाएं, तो कृपया मेरे लिए यह सामान लेते आइएगा, इत्यादि।उनके साथ ऐसी आदेशात्मक भाषा नहीं बोलनी चाहिए। जैसे कि — *देखो, सुनो, पहले यह काम करना, फिर यह करना, इसके बाद ही कोई और काम करना। बाजार से मेरे लिए यह सामान लेते आना। इत्यादि।ऐसी आदेशात्मक भाषा अपने से आयु विद्या बल अनुभव आदि में छोटों के साथ बोली जा सकती है, बड़ों के साथ नहीं बोलनी चाहिए। यदि आप छोटों के साथ भी विनम्र भाषा का प्रयोग करें, फिर तो बात ही क्या है!! अर्थात आप विनम्र भाषा तो छोटे या बड़े किसी के साथ भी बोल सकते हैं। परंतु बड़ों के साथ तो विनम्र भाषा ही बोलनी चाहिए, आदेशात्मक नहीं। यही सभ्यता है। सभ्य बनें, दूसरों का प्रेम, सद्भावना, सम्मान तथा सहयोग प्राप्त करें, और जीवन का आनन्द लेवें।