छत्तीसगढ़दुर्ग भिलाई

स्व सहायता समूह की महिलाओं ने सीखा बाँस से रोजमर्रा की वस्तुएं बनाना कई उपयोगी वस्तुएं और बैम्बू चारकोल बनाने की मिली ट्रेनिंग, Self help group women learned to make everyday objects from bamboo Training in making many useful items and bamboo charcoal found

दुर्ग। जिला पंचायत द्वारा स्व सहायता समूह की महिलाओं के कौशल संवर्धन के लिए विशेष प्रयास किए जाते रहे हैं। इसी कड़ी में एनआरएलएम (बिहान) के तहत महिलाओं को बाँस से दैनिक उपयोग की विभिन्न चीजें निर्मित करने का प्रशिक्षण दिया गया। जिला पंचायत सीईओ सच्चिदानंद आलोक ने बताया कि ग्रामीण महिलाओं को अलग-अलग तरह के उत्पाद निर्माण की ट्रेनिंग दी जाती है, ताकि कौशल संवर्धन के साथ-साथ आजीविका के साधन भी निर्मित हों। साथ ही इको फेंडली एवं सस्टेनेबल लाइवलीहूड में बाँस के बहुआयामी उपयोग  को देखते हुए इस प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। बाँस आसानी से उपलब्ध होता है। इसलिए इनसे बहुत से उपयोगी सामग्रियों का निर्माण सीख कर महिलाओं ने एक नया हुनर भी सीखा।

अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त प्रशिक्षक गनी जमान ने दिया प्रशिक्षण, बताया बाँस से सैकड़ों उत्पाद हो सकते हैं निर्मित- महिलाओं को प्रशिक्षण देने के लिए वल्र्ड बैम्बू ऑर्गेनाइजेशन  तथा द बैम्बू फोरम ऑफ इंडिया की सदस्य भी है। करीब 25 सालों से गनी जमान बाँस के क्षेत्र में काम कर रहे  हैं। विशेष रूप से इन महिलाओं को प्रशिक्षित करने आए जमान ने बताया कि इससे पहले उन्होंने आर्किटेक्चर की विद्यार्थियों को आधुनिक एवं वैज्ञानिक तरीके बाँस का इस्तेमाल भवन निर्माण में करने की ट्रेनिंग दी है। बिरला इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, सीईटी भुवनेश्वर, गुवाहाटी कॉलेज ऑफ आर्किटेक्चर एसबीए विजयवाडृा, गीतम यूनिवर्सिटी डिपार्टमेंट ऑफ आर्किटेक्चर विशाखापट्टनम, श्री श्री यूनिवर्सिटी कटक, वेल्लोर इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी, मेस्ट्रो स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर के विद्यार्थियों को प्रशिक्षण दिया है। लेकिन इन महिलाओं के साथ काम करने का अलग ही अनुभव रहा उन्होंने बताया कि महिलाएं अपने घर पर ही रह कर बाँस से दैनिक उपयोग की सैकड़ों चीजें बना सकती हैं और विक्रय कर आमदनी अर्जित कर सकती हैं। महिलाओं को ट्रेनिंग देकर एक आत्म संतुष्टि हुई क्योंकि इससे आर्थिक स्वावलंबन के साथ-साथ उनके आत्मविश्वास में भी बढ़ोतरी होगी। चार पैसे जब महिलाओं के हाथ मे आते हैं तो वो परिवार के हित में ही इस्तमाल करती हैं जिससे पूरे परिवार का जीवन स्तर भी सुधरता है।

बाँस के रखरखाव का तरीका भी सीखा- प्रशिक्षण में गांव को केवल बाँस के उत्पाद बनाना ही नहीं सिखाया गया, बल्कि लंबे समय तक उन वस्तुओं को सुरक्षित रखने के लिए बाँस के रखरखाव के बारे में भी सिखाया गया। बाँस को बैक्टीरिया की मदद से वैज्ञानिक तरीके से कैसे दीमक से बचाने के तरीके के साथ-साथ बोरिक एसिड व बोरिक पॉवडर की मदद बाँस को सुरक्षित रखने के तरीका भी सिखाया गया। छत्तीसगढ़ में बाँस से जुड़ेे उद्योगों के लिए असीम संभावनाएं, किसानों की आय में वृद्धि के साथ कुटीर उद्योग, कपड़ा, कागज उद्योग में भी है उपयोगी-  श्री गनी जमान ने बताया बाँस एक ऐसी वनस्पति है जिसके अनगिनत उपयोग हैं। मकान, पुल, फर्नीचर, बर्तन, कपड़ा, दैनिक उपयोग की वस्तुओं के साथ-साथ सजावटी सामान बाँस से बनते हैं। इसके अलावा बाँस के औषधीय उपयोग भी हैं। उन्होंने बताया कि वो नार्थ ईस्ट के रहने वाले हैं जहां 50 से अधिक प्रजातियां उगती हैं। उत्तर पूर्वी राज्यों के जीवन का अभिन्न हिस्सा है। बाँस की श्रेष्ठ कारीगरी भी होती है।

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