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दुष्कर्म पर सियासत कैसे, राजनीतिक दलों के घमासान से क्या पीड़ित परिवार का दुख कम होगा ?

कोंडागांव।

बढ़ती अनाचार की घटनाओं को लेकर तमाम राजनीतिक दलों में घमासान मचा है। राज्य सरकार में बैठे व क्षेत्र के चुने हुए जनप्रतिनिधि घटना की महीनों बीतने के बाद पीड़ित परिवार को दिलासा दिलाने घर पहुंच रहे हैं। जनप्रतिनिधि अपने गृह जिले क्षेत्र में घटित होने वाली जघन्य अपराध के महीनों बाद मीडिया में घटना उजागर होने से जानकारी ना होने के बाद कह रहे। चारों ओर से बढ़ते दबाव के बीच धनोरा थानेदार को निलंबित कर आरोपियों की गिरफ्तारी को सरकार की कामयाबी बता रहे हैं।आखिरकार सरकार के संरक्षण के बिना एक अदना सा पुलिस विभाग का कर्मचारी कैसे जघन्य अपराध की घटना को कई कई महीनों तक दबा कर रख सकता है। और गंभीर सवाल अनगिनत ऐसी घटनाये समाज व सरकार में दफन हो रही तमाम सोशल प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया घटना की खबरो से पटी पडी है। सड़क में रैलियां व धरने प्रदर्शन व ज्ञापन देने का दौर जारी है। क्या इनसे दरिंदगी की शिकार हुई बेटी को इंसाफ मिलेगा, क्या पीड़ित परिवार का दुख कम होगा क्या इस तरह की घटनाओं पर विराम लगेगा ,उनका सुध लेने वाला कोई नहीं।

क्या दुष्कर्म की वारदातें होने बंद हो जाएंगे। क्या वे बेखौफ होकर अपने गांव, शहर या सड़क पर निकल सकेंगी। क्या पुलिस दुष्कर्म के आरोपियों को पकड़ कर सजा दे पाएगी।क्या अमिरजादो या नेताओं के अय्याश बेटे कानून और पुलिस के डर से सुधर जाएंगे।ऐसा कुछ भी नहीं होता दिख रहा। हर बार की तरह राजनीतिक दल उछल-कूद मचकर चुप हो जाएंगे। इससे कुछ नहीं बदलेगा। फिर यह नाटक क्यों।एसी घटनाओं को रोकने में कोई सरकार या अकेली पुलिस सफल नहीं हो सकती। समस्या का सामाजिक, मनोवैज्ञानिक पहलू दुष्कर्मी की मानसिकता पर विस्तृत अध्ययन की आवश्यकता हैं।
क्योंकि किस गांव, खेत, मकान या सुनसान जगह बलात्कार होगा, इसका अंदाजा कोई नहीं लगा सकता है। वैसे भी जब हमारे समाज में परिवारों के भीतर बहू-बेटियों के शारीरिक शोषण की खबरें अखबारों में आती रहती हैं तो यह बात सोचने की है कि कहीं हम दोहरे मापदंडों से जीवन नहीं जी रहे। ऐसी परिस्थिति में हमारे पुरुषों के रवैये में बदलाव का प्रयास करना होगा। बचपन से ही इसी विकृतियों से बचाव हेतु संस्कार के बीज बोने होंगे ।जो एक लम्बी व धीमी प्रक्रिया है। समाज में हो रही आर्थिक उथल-पुथल, शहरीकरण, देशी और विदेशी संस्कृति का घालमेल और मीडिया पर आने वाले कामोत्तेजक कार्यक्रमों ने अपसंस्कृति को बढ़ाया है। जहां तक पुलिस वालों के खराब व्यवहार का सवाल है, तो उसके भी कारणों को समझना जरूरी है।

हाल में टोनही प्रताड़ना व हत्या के लिए माहका नारायणपुर के 37 ग्रामीणों को कोंडागाँव न्यायालय की सजा समाज मे एक सबक है।इसी तरह बलात्कार के मामलों में पुलिस तत्काल कार्रवाई करे और सभी अदालतें समय सीमा के भीतर सभी आरोपियों को सजा सुना दें। सजा ऐसी कड़ी हो कि उसका बलात्कारियों के दिमाग पर वांछित असर पड़े और बाकी समाज भी ऐसा करने से पहले डरे। इसके लिए जरूरी है कि जागरूक नागरिक, केवल महिलाएं ही नहीं पुरुष भी, सक्रिय पहल करें और सभी राजनीतिक दलों और सरकार पर तब तक दबाव बनाए रखें जब तक ऐसे कानून नहीं बन जाते। अगर ऐसा हो पाता है तभी हालात कुछ सुधरेंगे। अन्यथा अनाचार,अपराधों पर राजनीतिक दलो की रोटियां सिंकती रहेंगी।

लेख- पुनम दास मानिकपुरी लेखक के निजी विचार पर आधारित है।

राजीव गुप्ता

Rajeev kumar Gupta District beuro had Dist- Kondagaon Mobile.. 9425598008

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