धान की फसल में लगने वाले कीट एवं रोग की पहचान तथा नियंत्रण के उपाय, कृषि विभाग के मैदानी सलाह पर
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अजय शर्मा जिला ब्यूरो चीफ जांजगीर
कीट व रोग का उपचार करें ,
जांजगीर-चांपा 28 सितम्बर 2020/ जांजगीर-चाम्पा जिले में वर्तमान समय में फसल पर कीटव्याधि एवं रोग लगने की प्रबल संभावना को देखते हुए किसानों को एकीकृत कीट एवं रोग प्रबंधन के बारे मे जानकारी कृषि विभाग एवं कृषि वैज्ञानिकों द्वारा दी जा रही है।
झुलसा, ब्लास्ट रोग –
यह रोग असिंचित फसल पर अधिक दिखाई देता है। इस रोग से पत्ती व तना को प्रभावित करता है। पौधें के गाठों मे काला दाग दिखाई देता है। इस रोग के उपचार के लिए कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत घुलनशील धूल की 15-20 ग्राम को 15 लीटर पानी में घोलकर इसका छिडकाव 10-12 दिन के अन्तराल पर किया जा सकता है।
भूरी चित्ती रोग –
इस रोग के कारण छोटे-छोटे भूरे रंग के धब्बे पत्तियों पर दिखाई देते हैं। जो पत्तियों को सुखा देते हैं। इसके उपचार के लिए कार्बेंडाजिम 50 प्रतिशत घुलनशील धूल की 15 ग्राम को लगभग 15 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना होता है।
पर्णछेदक सीट रोग-
इसका प्रभाव पत्तियों पर दिखाई देते हैं। पत्ती की सतह पर होता है। इससे लाल रंग के धब्बा बन जाते हैंै। इस रोग के नियंत्रण के लिए फसल कटने के बाद अवशेषों को जलाने, खेतों में जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए। रोग के लक्षण दिखाई देने पर प्रोपेकोनाजोल 20 मिलीलीटर को 15 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर सकते हैं।
आभासी कंड –
यह फफूंदी जनित रोग है। बालियों के निकलने के बाद ही स्पष्ट होता है। रोग ग्रस्त दाने पीले से लेकर संतरे रंग के हो जाते हैं । इसके उपचार के लिए खेत में जलभराव नहीं होना चाहिए।