मिशन स्वराज के मंच पर, ‘किसान और सरकारी नीति’ विषय पर हुई सार्थक वर्चुअल चर्चा – प्रकाशपुन्ज पाण्डेय
*मिशन स्वराज के मंच पर, ‘किसान और सरकारी नीति’ विषय पर हुई सार्थक वर्चुअल चर्चा – प्रकाशपुन्ज पाण्डेय*
समाजसेवी, राजनीतिक विश्लेषक और मिशन स्वराज के संस्थापक प्रकाशपुन्ज पाण्डेय ने किया मीडिया के माध्यम से बताया कि मिशन स्वराज के मंच पर आज दिनांक 26 सितंबर, दोपहर 4 बजे, ‘किसान और सरकारी नीति’, इस विषय पर एक वर्चुअल चर्चा संपन्न हुई जिसमें देश भर से बुद्धिजीवी लोगों ने शिरकत की। इस विषय पर चर्चा इसलिए आवश्यक थी की आज़ादी के 73 साल बाद भी अगर किसान आंदोलित हैं, तो उसका मुख्य कारण क्या है? आखिर क्या है किसानों की मांग और क्यों देश में अन्नदाता आज भी वंचित हैं? ऐसे ही विषय पर चर्चा करने के लिए जो अतिथि इस चर्चा में शामिल हुए उनका परिचय इस प्रकार है –
डॉ नंद कुमार साय – अध्यक्ष, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग व भाजपा के वरिष्ठ नेता।
बाबूलाल शर्मा – वरिष्ठ पत्रकार और दार्शनिक।
राकेश टिकैत – किसान नेता और राष्ट्रीय प्रवक्ता, भारतीय किसान यूनियन।
कोटा नीलिमा – लेखिका, वरिष्ठ पत्रकार, शोधकर्ता और आर्टिस्ट
सुप्रिया श्रीनाथे – राष्ट्रीय प्रवक्ता, काँग्रेस पार्टी
प्रकाशपुन्ज पाण्डेय – समाजसेवी, पत्रकार, राजनीतिक विश्लेषक और मीशन स्वराज के संस्थापक ।
इस चर्चा में शामिल अतिथियों के विचारों के कुछ अंश –
डॉ नंद कुमार साय ने कहा कि किसानों की फसलें जब तक उनके घर में होती हैं, तब तक उसका कोई मोल नहीं होता, लेकिन जैसे ही वह बाजारों में चली जाती हैं, वह बहुमूल्य हो जाती हैं। यह विरोधाभास क्यों? सरकारें कोई भी हों, सभी सरकारों को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर, किसानों के हितों की रक्षा करनी चाहिए और उन्हें सुदृढ़ करने के लिए व्यापक कदम उठाए जाने चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि वे केंद्र सरकार से किसानों के की मांगों को लेकर बात करेंगे ताकि उन्हें न्याय मिल पाए।
बाबूलाल शर्मा ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों को महात्मा गांधी के आदर्शों को का अनुसरण करते हुए किसानों के हितों की रक्षा करने के लिए नीति बनानी चाहिए और किसानों को उसका नेतृत्व दिया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि, आखिर ऐसा क्यों होता है कि जब किसी भी उत्पाद का मूल्य उसका उत्पादक तय कर पाता है, तो किसान, जो कि अन्य का उत्पादन कर्ता है, उसे इसका मूल्य निर्धारित करने की छूट नहीं मिली होती? इसपर विचार करने की अत्यधिक आवश्यकता है ।
राकेश टिकैत ने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार, किसान विरोधी सरकार है। इस सरकार को किसानों से ज्यादा व्यापारी पसंद हैं, इसीलिए अब किसान एकजुट होकर देशव्यापी आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं क्योंकि उन्हें पता है कि यह जो बिल आया है इसके बाद रासायनिक खादों और बीजों को लेकर भी एक इससे भी बड़ा किसान विरोधी बिल मोदी सरकार लाने की फिराक में है। लेकिन वह ऐसा होने नहीं देंगे। उन्होंने एक बात और कही कि दिल्ली और उसके आसपास के राज्यों में किसान संगठित हैं इसीलिए सरकार पर दबाव बनाकर बहुत से काम करवा लेते हैं लेकिन देश के अन्य राज्यों में किसान संगठित नहीं है जिसका खामियाज़ा किसानों को भुगतना पड़ता है।
कोटा नीलिमा ने कहा कि मोदी सरकार की किसान विरोधी नीति के कारण ही किसानों की आज यह दशा है। मोदी सरकार किसानों को लेकर बिल्कुल भी चिंतित व संवेदनशील दिखाई नहीं पड़ती। उसे सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने व्यापारिक मित्रों की फ़िक्र है। इसीलिए अब वह वक्त आ गया है की योजना बनाने से ज़्यादा उन्हें कार्यान्वित करने की आवश्यकता है। अब किसानों को एकजुट होने की आवश्यकता है और केंद्र सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ़ आवाज़ उठाने की जरूरत है क्योंकि सरकारें आएंगी और जाएंगी लेकिन किसानों को आत्मनिर्भर बनना अत्यधिक आवश्यक है, नहीं तो किसान ऐसे ही आत्महत्या करते रहेंगे और सरकारें शोक व्यक्त करके उन्हें अनदेखा करती रहेंगी। बहुत ज्यादा होगा तो मुआवजा देंगी, इससे ज्यादा और कुछ नहीं।
सुप्रिया श्रीनाथे ने कहा कि किसानों की यह दुर्गति आज तक के भारतीय इतिहास में पहले कभी नहीं हुई और नरेंद्र मोदी की सरकार किसानों का भी व्यापारीकरण करने पर आमादा है। और इसीलिए कांग्रेस पार्टी मांग करती है कि, किसानों की मांगों पर केंद्र सरकार विचार करे और ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ को भी कानून में शामिल करे। साथ ही यह भी सुनिश्चित करे कि जो भी व्यक्ति ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ से कम दाम पर फसलों को ख़रीदेगा उस पर उचित कानूनी कार्रवाई होगी।
प्रकाशपुन्ज पाण्डेय ने कहा कि अगर किसानों को उनकी मेहनत का न्यूनतम समर्थन मूल्य भी ना मिले तो ऐसी सरकार पर लानत है। साथ ही उन्होंने कहा कि किसानों की सिर्फ़ तीन ज़रूरतें हैं, पहला – उनका ऋण खत्म हो, दूसरा – उनकी लागत कम हो और उन्हें उच्च स्तरीय कृषि प्रणाली की तकनीकी मिले और तीसरा – उन्हें उनकी फसलों का उचित मूल्य मिले। अगर केंद्र और राज्य सरकारें यह करने में भी सक्षम नहीं हैं तो यकीनन अब वह समय आ गया है कि जब किसानों के साथ ही बुद्धिजीवी लोग, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता और देश की जनता व्यापक रूप से सड़कों पर उतरे और आंदोलन करें ताकि सरकारों को बात समझ में आए उनकी ज़िम्मेदारी क्या है?
*प्रकाशपुन्ज पाण्डेय, मिशन स्वराज, रायपुर, छत्तीसगढ़*
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