छत्तीसगढ़
धान में कीट-रोगों के बचाव के लिए किसान खेत की नियमित निगरानी करें

धान में कीट-रोगों के बचाव के लिए किसान खेत की नियमित निगरानी करें
नारायणपुर 26 सितम्बर 2020 – धान की फसल में बाली निकलने की अवस्था में है एवं कम अवधि वाली धान की किस्मों में बाली निकल चुकी है। चूंकि जिले में विगत दो हफ्तों से आसमान में घने बादल छाये हुए हैं एवं कृषि विज्ञान केन्द्र नारायणपुर स्थित कृषि-मौसम वेधशाला के अनुसार सितम्बर माह में अब तक अच्छी बारिश हो चुकी है और आगामी दिनों में जिले में हलकी से मध्यम वर्षा की संभावना है। अधिकतम तापमान 29 से 31 डिग्री सेल्सियस, न्यूनतम तापमान 23 से 24 डिग्री सेल्सियस एवं आसमान में सामान्यतः बादल छाये रहने की संभावना है. जो की धान की बालियों में गंधी कीट, भूरा माहू एवं फाल्स स्मट (लाई फूटना) रोग के प्रकोप हेतु अनुकूल है।
कीट – बीमारी से बचाव हेतु किसानों को धान की खेतों में नियमित निगरानी की सलाह दे रहा है। इसके साथ ही धान का गंधी बग कीट दानों में दूध भरने की अवस्था में दानों को चूसकर दाने को बदरा या खाली कर देते हैं। अवयस्क और वयस्क दोनों कीड़े दानों से रस चूसते हैं। वर्षा ऋतू के अंत में इनकी संख्या बढ़ जाती है और ये कीट शाम एवं सुबह के समय सक्रीय होते हैं. इस कीट के नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोप्रीड 17.8 एसएल दवा की 125 मिली मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से खुले मौसम में छिड़काव करें।
धान में बाली आने के बाद कुछ दाने गोल बड़े आकार के मखमली हरे-पीले रंग के हो जाते हैं जो बाद में काले पड़ जाते हैं यह कूट कलिका रोग (लाइ फूटना) कहलाता है इस से बचाव हेतु बाली निकलने एवं 50 प्रतिशत फूल आने की अवस्था में प्रोपीकोनाजोल 25 प्रतिशत दवा की 1 मिली मात्रा प्रति लीटर पानी या कॉपर ओक्सीक्लोराइड 4 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें या बाली निकलने के समय मैन्कोजेब पाउडर 75 प्रतिशत घुलनशील 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर बनाकर छिड़काव करें।
धान की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों में भूरा माहू कीट का महत्वपूर्ण स्थान है। ये कीट पौधें का रस चूसने के साथ कई प्रकार की बीमारियाँ फैलाते है। इन कीट का प्रकोप अगस्त से अक्टूबर तक होता है। यह कीट आकार में छोटा होता है तथा पौधे के तने के पास काफी संख्या में पाये जाते हैं। पौधे के तनों से रस चूसने के कारण पौधे सूखने लगते है। इस कीट की शिशु एवं वयस्क अवस्थाएँ दोनों ही फसल को क्षति पहुंचाते हैं। इस कीट के प्रबंधन हेतु नत्रजन एवं अन्य खादों का प्रयोग अनुशंसानुसार ही करना चाहिए। ज्यादा नत्रजन का प्रयोग इस कीट को बढ़ावा देता है। इस कीट के जनसंख्या के आर्थिक हानि स्तर पर पहुँचने पर कीटनाशक का छिड़काव करना चाहिए। इसके नियंत्रण हेतु़ इमिडाक्लोप्रिड 125 मि.ली./हे. या डायनोटेफ्युरान 250 ग्राम/हे. या एसिटामिप्रिड 20 डब्ल्यूपी 100 ग्रा./हे. का छिड़काव 120 से 150 लीटर पानी मे घोल बनाकर करें। किसान फसल संबंधी अधिक एवं अच्छी जानकारी हेतु कृषि विज्ञान केन्द्र केरलापाल में संपर्क कर प्राप्त कर सकते हैं।