वन अफसरों के संरक्षण में वनों को चट कर रहे हैं राजस्थानी ऊंट, भेड़ , बकरी।
कवर्धा,कबीरधाम वनमण्डल के द्वारा कुछ लकड़ी तस्करों व घुमंतू भेड़ , बकरी ,ऊट चरवाहा पर गत दिवस कार्यवाही कर वाहवाही लुटा जा रहा है जो जनमानस में चर्चा का विषय बना हुआ है लोगो का मानना है कि यह कार्यवाही उनलोगों पर किया गया जो उनपर चढ़ावा नही चढ़ता क्योंकि यहां पर लकड़ी तस्करों की संख्या बहुतायत है जिसकी जानकारी वनविभाग व वनविकास निगम के फरवाचर से लेकर उच्चाधिकारियों को हैं और इन तस्करों व भेड़ बकरी ,ऊँट चरवाहा के द्वारा ओहदानुसार चढ़ावा पहुचा दिया जाता है । भेड़ बकरी ऊट बोड़ला, पंडरिया और सहसपुर लोहारा विकासखंड के वन परिक्षेत्र में इन दिनों बड़ी संख्या मे देखे जा सकते है। पहाड़ व वनों की ऊंचाई अधिक होने के कारण यह ऊंट बड़े पेड़ों की हरियाली चट कर रहे है। और भेड़ बकरी वृक्षारोपण व छोटे पेड़ों की हरियाली। इन ऊंटों और भेड़ों का झुड़ जहां से निकला जाता है वहां पेड़ों में ठूंठ और जमीन पर बिना पत्तों की डंगाल नजर आती है। बावजूद इसके बावजूद इसके वन विभाग व वनविकास निगम के अधिकारी एवं कर्मचारी इसे रोकने में के लिए कोई सार्थक कदम नहीं उठा रहे है। जंगलों में वनस्पतियां बड़ी तेजी से नष्ट होती जा रही है। जिस स्थान से इन ऊंटों और भेड़ों का झुंड़ गुजरता है वहां हरियाली दिखाई नहीं देती है।
बीते कुछ सालों से राजस्थान और गुजराज से आने वाले ऊंट और भेड़ वालों यहां जमे हुए है। बोड़ला, लोहारा, पंडरिया, कोदवागोडान , घानी खुटा , बन्दौरा , बोककरखार , तरेगॉव ,देवसरा अंचलों में भेड़ वालों के चलते वनों और वनस्पतियों को काफी नुकसान हो रहा है। वनवासी अंचलों में जहां तहां उनके डेरे दिखाई देने लगे है। एक-एक डेरे में हजारों की संख्या में भेड़ें व बकरिया रहती है। वनवासियों के अनुसार जिन स्थानों पर इनके डेरे ठहरते हैं और भेड़ें व बकरियां बैठती है वहां घास तक नहीं जमती। दूसरी ओर भेड़ों को खिलाने के लिए उनके चरवाहे जंगल के झाड़ों को काट देते हैं इससे जंगलों में कर्रा, धवड़ा, साजा व अन्य पेड़ जैसे झाड़ों के ठूंठ दिखाई देने लगे हैं।
वनवासी अंचलों से कई महत्वपूर्ण वनस्पतियां इन भेड़ों व ऊंटों के कारण विलुप्त होने के कगार पर है। कुछ साल पहले चरौहा नामक झाड़ियों की भरमार रहती थी जो अब समाप्ति की ओर है। वनवासी रामसिंह , गंगाराम , धनीराम , रामकुमार का कहना है कि अगर ऊंट भेड़ वालों पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया तो आने वाले कुछ वर्षों में वन और वनस्पतियां नष्ट हो जाएगी।
मुख्यालय में नही रहते अधिकारी
वन विभाग व वनविकास निगम के रेंजर, डिप्टी रेंजर व वनरक्षक मुख्यालय में निवास नही करते जिसके चलते अंचल के लोगों को कभी भी इन अधिकारियों की सक्रियता जंगलों की सुरक्षा के लिए दिखाई नहीं देती। इसी का फायदा उठाते हुए चरवाहों ने वनांचल में अपना डेरा जमाना प्रारंभ कर दिया है। वनांचलवासी जब इसका विरोध करते हैं तो उनके द्वारा भी धौंस जमाते हुए विवाद करने पर उतारू हो जाते हैं। इससे साफ जाहिर होता है कि कहीं ना कहीं वन विभाग के कर्मियों का इन्हें संरक्षण प्राप्त है। इसके कारण बेखौफ होकर जंगलों में घुसकर पेड़ पौधों को चारागाह बनाकर नष्ट कर रहे हैं।
वनविकास बनाम वन विनास
वनविभाग तो पहले से ही सक्रियता के साथ कुछ कार्यवाही करता रहता है लेकिन वनविकास निगम तो केवल कोरम पूर्ति में लगा रहता है इनको किसी के द्वारा लकड़ी तस्करी व राजस्थानी, गुजराती भेड़ ,बकरी ,उट की जानकारी देते हैं वनविभाग या राजस्व विभाग का क्षेत्र में आता है करके अपना पल्ला झाड़ कर अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर लेते हैं ।
जिसका भरपूर वन तस्कर व लाभ भेड़ बकरी चरवाहों को मिलता है ।
नाम नही छापने की शर्त पर एक वन तस्करी करने वाले ने बताया कि वनविभाग व निगम के सभी अधिकारी व कर्मचारियों को उनके ओहदानुसार प्रतिमाह चढ़वा चढ़ाना पड़ता है । इसी प्रकार राजस्थानी भेड़, बकरी, ऊंट चरवाहों का कहना है कि हम तो कई वर्षों से छत्तीसगढ़ व कवर्धा जिला के जंगल मे गुजरा कर रहे है जबतक अधिकारियों को पैसा नही देंगे हमे परेशान करते हैं इसलिए वनविकास ,वनविभाग के फ़रवाचर , वनरक्षक ,रेंजर व वनमण्डल अधिकारी को भी सबको पैसा देते हैं ।
वन विभाग के द्वारा दो घरों में छापामार कार्यवाही करते हुए 89 नग इमारती लकड़ी सहित दो तस्करो को पकड़ा