कोंडागांव। राजीव ब्रिगेड प्रदेश अध्यक्ष युंका नेता कोंडागॉव रितेश पटेल ने किसान अध्यादेश राज्यसभा से पारित होने के बाद आज केंद्र की मोदी सरकार पर सीधा हमला बोला। किसान विरोधी सरकार के इस निर्णय को आज पूरे देश के किसान विरोध कर रहे हैं लेकिन पूंजीपतियों को लाभ देने के लिए केंद्र की सरकार ने कृषि अध्यादेश 2020 लाया है जिसकी किसी भी प्रकार की अभी आवश्यकता नहीं थी पूरा देश वैसे ही कोरोना की चपेट में है देश में 55 लाख के करीब कोरोना के मामले हैं प्रतिदिन 90 हजार से ज्यादा कोरोना के केस सामने आ रहे हैं। विश्व में भारत दूसरे स्थान पर पहुंच चुका है सिर्फ अमेरिका ही है भारत से आगे और सबसे ज्यादा मौतें भी 20 दिनों से विश्व में सबसे ज्यादा भारत में हो रही है। 2 करोड़ से ज्यादा लोगों की नौकरियां छीन गई हैं कितने परिवारों ने आत्महत्या तक कर ली हैं अपना भविष्य अंधकार में में देखते हुए। पर कभी केंद्र की मोदी सरकार को इससे कोई सरोकार ना पहले कभी था ना आगे रहेगा अब किसानों को भी आत्महत्या की कगार पर ला रही है।
सिर्फ पूंजीपतियों की है ये सरकार
कृषि अध्यादेश के दो बिल को राज्यसभा में ध्वनिमत से पारित करा कर भाजपा ने ये सिद्ध कर दिया है कि वो किसान विरोधी के साथ तानाशाह रवैया भी अपना रही है। लगातार राज्यसभा में विपक्ष यह कह रहा था की वोटिंग करवा लीजिए लेकिन राज्यसभा में विपक्ष की कोई बात नहीं सुनी गई और ध्वनि मत से कृषि अध्यादेश के बिल को पारित कर दिया, इससे स्पष्ट ज्ञात होता है किस प्रकार विपक्षी दलों की आवाज को दबाया जा रहा है, श्री पटेल ने इसकी कढ़ी निंदा की है किसान विरोधी अध्यादेश को पारित करने के लिए केंद्र की सरकार को इतनी जल्दी करने की क्या जरूरत थी लगातार किसान सड़कों पर निकल रहे हैं धरना दे रहे हैं, चक्का जाम कर रहे हैं पर सरकार के कान में जुं तक नहीं रेंग रही है। केंद्र सरकार के निर्णय का पुरजोर विरोध जारी रहेगा।
केंद्र सरकार ने निर्णय लिया है कि
1. राष्ट्र एक बाजार नीति के तहत किसान अपनी फसल को देश में कहीं भी बेच सकेगा।
2. आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 को संशोधित कर दिया गया है। अब उपज का भंडारण अनिश्चित मात्रा में किया जा सकेगा।
3. सहकारी बैंकिंग के क्षेत्र में मल्टीनेशनल कंपनियां भी आ सकेंगी।
4. कंपनियां कांटेक्ट फॉर्मिंग कर सकेंगी।
एक राष्ट्र एक बाजार नीति की घोषणा करके मोदी सरकार ने एक बार फिर किसानों को मल्टीनेशनल कंपनियों का गुलाम बनाने की दिशा में कदम उठा लिया है सुनने में तो बहुत अच्छा लगता है कि जहां ज्यादा पैसा मिलेगा वहां किसान अपनी उपज को बेच सकेगा लेकिन सामान्य दृष्टि डालें तो जो किसान अपनी फसल को बमुश्किल मंडी या सहकारी समितियों तक ला कर समर्थन मूल्य पर बेच पाता है क्या अपनी उपज को अन्य शहरों या प्रदेशों मैं ले जाकर बेच पाएगा?
यहीं पर आकर नहीं थमती आने वाले समय में इसका सीधा दुष्प्रभाव यह पड़ेगा कि सरकार न्यूनतम मूल्य पर खरीदी व्यवस्थआ ध्वस्त हो जायेगी और किसानों को मल्टीनेशनल कंपनियों का मोहताज बना देगी। किसान शोषण का शिकार ना हो जाए इसलिए न्यूनतम मूल्य निर्धारित किए गए थे। जिसको वह अपनी समीप की मंडी में बेच सकता था। आने वाले समय में यह प्रक्रिया समाप्त हो जाएगी किसान वापस मल्टीनेशनल कंपनियो का गुलाम बनकर रह जाएगा। किसानों के शोषण को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा हमारी पार्टी सरकार के विरोध में किसानों के साथ अब सड़कों पर निकलेगी।
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