सारे वेेद शास्त्रों का सार गीता है- विश्वगुरू परमहंस प्रज्ञानानंदगिरि
दुर्ग। प्रज्ञानालय क्रिया योग आश्रम पद्मनाभपुर द्वारा आयोजित तीन दिवसीय श्रीमद् भगवद्गीता कथा में द्वितीय दिवस कालीबाड़ी एलआईजी-ग्राऊण्ड पद्मनाभपुर में क्रियायोग के विश्वगुरू परमहंस प्रज्ञानानंदगिरि महाराज ने गीता वाचन में कहा कि गीता शास्त्र भारतीय आध्यात्म परम्परा में विशेष स्थान रखता है। उन्होंने कहा कि हम किसी भी भवन में जाते है तो बहार प्रवेश व भीतर जाने पर प्रस्थान लिखा होता है। हम संसार में आये है अर्थात प्रवेश कर चुके है। यह संसार नित परिर्वतनशील है। यह अस्थाई एवं दुखों का निवास है। यहां आकर सोचते है इस नरस्र से कैसे निकले। अत: इस नरख से प्रस्थान का मार्ग श्रीमद् भगवत गीता में बताया गया है। सारे वेेद शास्त्रों का सार गीता है।
उन्होंने कहा कि गीता का श्रवण करने के लिए शुघी होना आवश्यक है। शु अर्थात जिसकी बुद्धि सुन्दर हो मन सुन्दर हो। लेकिन आज लोगों का मन व बुद्धि दुषित हो गया है। कहते है कि जैसा आहार वैसा विचार। लेकिन आज लोगों को शुद्ध आहार ही नहीं मिल पा रहा है। उन्होंने कहा कि लगभग 30 से 35 वर्ष पूर्व हरितक्रांति के नाम पर हमारे देश की सारी भूमि को रासायनिक खाद व दवा के द्वारा बर्बाद करने का जो कार्य प्रारंभ हुआ है जो लगातार जारी है। यह हमारे शरीर को रोगी बना रहा है। आज से लगभग कुछ वर्षों पूर्व तक लोग जैविक खेती करते थे और स्वस्थ जीवन जिते थे। जब से रासायनिक खेती प्रारंभ हुआ है लोग रोगी हो गये है। जिसके चलते मन स्वस्थ नही रहता। खिन्नता के कारण लोग अपने संस्कार से दूर हो रहे है। आज शासन, प्रशासन, सुरक्षा आदि विभागों में बहुत ही पड़े-लिखे लोग है। इसके बाद भी भ्रष्ट्राचार चरम पर है। जिसका कारण मन कि अशुद्धि व लोगों का अपने संस्कार से दूर होते जाना है। इसके लिए आवश्यक है कि लोग रामायण व गीता का अनुशरण करे व योग को अपनाये। योग से शरीर व मन स्वस्थ रहता है। वही क्रियायोग में श्वांस की साधना की जाती है। श्वांस को नियंत्रित करने से शरीर में उर्जा आती है। क्योंकि श्वांस वायु से संबंधित है और जो इस पर नियंत्रण रखता है उसकी आयु अधिक होती है तथा वह शक्तिशाली होता है। जैसे हाथी, कछुआ की आयु लंबी होती है। वहीं जल्दी-जल्दी श्वांस लेने के कारण कुत्ता की आयु कम होती है। क्योंकि वायु का स्थान ह्दय में होता है।
महाराज ने कहा कि रामायण व महाभारत में एक पात्र में काफी समानता है। जैसे रामायण में हनुमान जी तथा महाभारत में भीम। दोनों ही वायु पुत्र थे। दोनों का स्थान ह्दय में है। दोनों ही बलशाली थे। क्योंकि इनका वायु पर नियंत्रण था। जिसके चलते अकेले भीम के द्वारा ही सौ कौरव भाईयों का संहार किया गया। जैसे हम किसी भी वजनी वस्तु को उठाते है तो कुछ पल के लिए पहले श्वांस थम जाता है व शरीर में उर्जा उत्पन्न होता है। अत: गीता अध्ययन करने व प्रतिदिन प्राणयाम करने से जन्म जन्मान्तर का पाप कट जाता है। इस दौरान कथा में सैकड़ों की संख्या में भक्तगण उपस्थित थे।