छत्तीसगढ़

परतंत्रता के बारे में जाने- ज्योतिष

*परतंत्रता के बारे में जाने- ज्योतिष*
परतंत्रता क्या है? जब न चाहते हुए भी दूसरे के आदेश का पालन करना पड़े।
*1- कर्म करने की स्वतंत्रता–* ईश्वर के संविधान वेदों में कुछ कर्म करने को बताए गए हैं, जैसे यज्ञ करना दान देना ईश्वर की उपासना करना माता पिता की सेवा करना प्राणियों की रक्षा करना शाकाहारी भोजन खाना इत्यादि। यदि कोई व्यक्ति इन कर्मों में से अपनी इच्छा रुचि योग्यता सामर्थ्य के अनुसार कोई कार्य करता है, तो इसे स्वतंत्रता कहेंगे। *स्वतंत्र अर्थात अपनी इच्छा के अनुसार संविधान के अनुकूल कार्य करना।*
*2- कर्म करने की स्वच्छंदता.* संविधान में बताए गये कर्मों में से न करके, संविधान के विरुद्ध अपनी मनमानी से निषिद्ध कर्मों को करना,
*यह स्वच्छंदता कहलाती है।* जैसे चोरी करना झूठ बोलना धोखा देना अन्याय करना व्यभिचार करना दूसरों का शोषण करना किसी को धमकी देना इत्यादि।
*3- कर्म करने की परतंत्रता।*
जब ईश्वरीय संविधान के विरुद्ध किसी अन्य मनुष्य के दबाव से, न चाहते हुए भी हमें कर्म करने पड़ें, तो *यह कर्म करने की परतंत्रता कहलाएगी।* जैसे कोई विदेशी राजा हम पर शासन करे, और ईश्वरीय संविधान के विरुद्ध अपने मनमाने कानून हम पर लागू कर दे, कि — प्रजा को अपनी आय का आधा भाग अर्थात 50% धन, टैक्स के रूप में देना होगा। प्रजा के सभी लोगों को एक एक अंडा प्रतिदिन खाना होगा। सप्ताह में एक बार मांसाहार भी करना होगा इत्यादि।
*तो यह कर्म करने की परतंत्रता मानी जाएगी।*
*4- अन्यायपूर्वक दुख भोगने की परतंत्रता।* इसी प्रकार से यदि न्याय के विरुद्ध, अन्यायपूर्वक कोई राजा हमें दुख देगा, तो वह भी परतंत्रता मानी जाएगी। जैसे कंस आदि राजा, अपनी प्रजा को अन्यायपूर्वक दुख देते थे।
*5- न्याय पूर्वक फल भोगने की परतंत्रता।* यदि हमने पहले मनमानी कर ली थी, अर्थात् ईश्वरीय संविधान के विरुद्ध झूठ चोरी आदि कर्म किए थे। उसके दंड स्वरूप ईश्वर हमें पशु-पक्षी आदि योनियों में दुख देगा। और न चाहते हुए भी हमें उन योनियों में जाकर दुख भोगना पड़ेगा। और यदि हमने संविधान के अनुकूल अच्छे कर्म किए थे, तो ईश्वर हमें मनुष्य योनि में जन्म देकर अनेक प्रकार के सुख भी देगा।
*यह फल भोगने की परतंत्रता है।*
आत्मा अच्छे बुरे कर्मों का फल भोगने में ईश्वर की न्याय व्यवस्था के आधीन है, अर्थात् परतंत्र है। *कोई व्यक्ति कर्म तो करे बुरे। और फल चाहे अच्छा। ऐसा नहीं होगा।
यह भी फल भोगने की परतंत्रता है। यह न्यायपूर्वक है।
अब आप इन सभी बातों पर शांत मन से विचार करें, कि स्वतंत्रता अच्छी है? स्वच्छंदता अच्छी है? या परतंत्रता अच्छी है?
आप में से अधिकांश लोग सिद्धांत रूप में तो यही कहेंगे, कि स्वतंत्रता अच्छी है। इस स्वतंत्रता का फल ईश्वरीय नियमानुसार सुख मिलेगा।
तो आप सब बुद्धिमान हैं। इसलिए विचार पूर्वक अपनी योजनाएं और आचरण बनाएँ। भविष्य में आपको कैसा फल चाहिए, उस को ध्यान में रखकर ही अपने कर्म करें
ज्योतिष कुमार सबका संदेश

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