छत्तीसगढ़

अनुशासन में रहना जरूरी -ज्योतिष

*अनुशासन में रहना जरूरी -ज्योतिष
यदि आप दूसरों पर शासन करना चाहते हैं, तो पहले स्वयं अनुशासन में रहना सीखें।
संसार में बहुत से लोग स्वयं तो अनुशासन में रहना नहीं चाहते, कभी अनुशासन में रहे नहीं, लेकिन दूसरों पर अनुशासन करना चाहते हैं। यह अन्याय है और असंभव भी।
वे अनुशासनहीन व्यक्ति, बचपन में जब विद्यार्थी थे, तब स्वयं तो अपने माता पिता एवं गुरुजनों के अनुशासन में रहे नहीं। अब जैसे तैसे पढ़ लिखकर अध्यापक बन गए, अथवा किसी कार्यालय में अधिकारी बन गए, तो अपने अधीनस्थ लोगों पर कठोर अनुशासन लागू करना चाहते हैं। ऐसी इच्छा करना भी अनुचित है। वास्तव में अनुशासन का मूल्य और लाभ उन्हें तभी समझ में आता है, जब दूसरे लोग उनके अनुशासन में नहीं रहते। तभी उन्हें इस बात की अनुभूति होती है, कि बचपन में जब हम अपने बड़ों के अनुशासन में नहीं रहते थे, तो हमारे बड़े लोगों को कितना कष्ट हुआ होगा! ऐसे लोग, दूसरों पर ठीक प्रकार से अनुशासन कर भी नहीं पाएंगे। क्योंकि वे स्वयं कभी अनुशासन में रहे नहीं, इसलिए वे जानते भी नहीं कि दूसरों पर ठीक तरह से अनुशासन कैसे किया जाता है?
जब वे अपने अधीनस्थ लोगों को अनुशासन में रहने को कहेंगे भी, और यदि किसी ने पूछ लिया कि “क्या आप भी बचपन में अपने बड़ों के अनुशासन में रहते थे?”अथवा स्वयं अपनी ओर से दूसरों को अनुशासन में रहने की प्रेरणा देना चाहेंगे, तो वे ठीक से बलपूर्वक यह कह भी नहीं पाएँगे, कि हाँ, हम तो पूरे अनुशासन में रहते थे।
जो लोग अपने भूतकाल में बहुत अच्छे अनुशासन में रहे हैं, वे जानते हैं कि अनुशासन क्या होता है, अनुशासन में कैसे रहा जाता है? अतः अनुभवी होने के कारण वे दूसरों पर ठीक तरह से अनुशासन/प्रशासन कर सकते हैं। तथा वे इस कार्य में सफल भी हो जाते हैं।
अनुशासन में रहने का एक अलग ही आनंद होता है। जिस व्यक्ति ने वह आनंद चखा है, वही जानता है कि अनुशासन का क्या महत्त्व है। और वही व्यक्ति चाहता है कि जैसा आनंद मैंने लिया है, ऐसा ही आनंद दूसरे लोग भी लेवें। इसलिए वह ठीक प्रकार से दूसरों पर अनुशासन लागू करता है, जिससे कि सभी कार्य ठीक समय पर, उत्तम रीति से संपन्न हो जाते हैं। ऐसा करने से दोनों को आनंद मिलता है, अनुशासन करने वाले को भी और उसके अनुशासन में चलने वाले को भी।
इसलिए स्वयं अनुशासन में रहना सीखें, उसका आनंद लेवें। और आगे चलकर दूसरों को भी अनुशासन में रखें, दूसरे लोग भी आनन्दित होवें। ताकि यह आनन्द प्राप्ति की परंपरा बिना बाधा के सदा चलती रहे।
(ज्योतिष कुमार सबका संदेश डॉट कॉम)

Related Articles

Back to top button