छत्तीसगढ़

मिशन स्वराज” में बौद्धिक चर्चाओं की श्रंखला में ‘महात्मा गाँधी के ग्राम सुराज अभियान’ पर हुई सार्थक और महत्वपूर्ण चर्चा – प्रकाशपुन्ज पाण्डेय

*”मिशन स्वराज” में बौद्धिक चर्चाओं की श्रंखला में ‘महात्मा गाँधी के ग्राम सुराज अभियान’ पर हुई सार्थक और महत्वपूर्ण चर्चा – प्रकाशपुन्ज पाण्डेय*

आज रविवार 16 अगस्त 2020 को दोपहर 2 बजे “मिशन स्वराज” की अगली श्रंखला में ‘संवाद आवश्यक है’ में ZOOM ऐप पर एक वर्चुअल चर्चा का आयोजन किया गया, जिसका विषय था ‘महात्मा गाँधी का ग्राम सुराज अभियान’। इस आवश्यक चर्चा में दिल्ली से सेंटर ऑफ द स्टडी ऑफ डेवेलपिंग सोसाइटीज के प्रोफेसर व इसके हिंदी भाषा कार्यक्रम के निदेशक और नेशनल मीडिया पैनलिस्ट अभय दुबे, वरिष्ठ और जाने माने पत्रकार बाबूलाल शर्मा, अर्थशास्त्री डॉ लखन लाल चौधरी, बस्तर मामलों के जानकार विक्रम शर्मा, ज्योतिष और समाजशास्त्री पं. प्रियशरण त्रिपाठी और समाजसेवी व राजनीतिक विश्लेषक प्रकाशपुन्ज पाण्डेय ने अपने अपने विचार व्यक्त किए।

इस चर्चा के संचालक प्रकाशपुन्ज पाण्डेय ने मीडिया के माध्यम से बताया कि सभी वक्ताओं ने बड़ी ही बेबाक़ी और सटीक तरीके से ‘महात्मा गाँधी के ग्राम सुराज अभियान’ की परिकल्पना और उनकी सोच के बारे में विश्लेषण किया।

अभय दुबे ने आंकड़ों के आधार पर कहा कि महात्मा गाँधी ने जिस ग्राम सुराज की परिकल्पना की थी वो तो आज देश में विलुप्ति की कगार पर आ गई है। उन्होंने गावों से शहरों की ओर बढ़ते हुए पलायन पर बड़ी ही साफ़देही से कहा कि अगर ‘महात्मा गाँधी के ग्राम सुराज अभियान’ को देश की सरकारों ने ईमानदारी से अपनाया होता तो आज देश में जो असंतुलन की स्थिति पैदा हुई है वो न होती और अगर यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं कि जब गांव पूरी तरह से खत्म हो जाएंगे उन्होंने आरबीआई के पूर्व निदेशक रघुराम राजन किस बात का हवाला देते हुए कहा कि कैसे उन्होंने अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए गांव में गणतंत्र की स्थापना पर जोर दिया था।

वरिष्ठ पत्रकार बाबूलाल शर्मा ने छत्तीसगढ़ के ‘नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी’ की परियोजना को चिन्हित करते हुए कहा कि अगर ऐसी परियोजनाएं एक बड़ी इच्छा शक्ति के द्वारा पूरे देश की राज्य सरकारों ने सुनियोजित रूप से अगर लागू कर दिया, तो यकीनन किसानों की स्थिति और सुधरेगी। साथ ही उन्होंने कहा कि देश की केन्द्र सरकार को भी इस सिस्टम को पूरे देश में लागू करने की जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि गांव का आकार और आबादी छोटी होनी चाहिए क्योंकि गांव विकेंद्रीकरण की सबसे छोटी इकाई है जहां महिलाओं पुरुषों और बुजुर्गों को अपने फ़ैसले बिना किसी शर्त के लेने का स्वतंत्र अधिकार होना चाहिए।

डॉ. लखन चौधरी ने बताया कि कैसे सरकार की इच्छाशक्ति में कमी के कारण आज गांव तक वह सुविधाएं नहीं पहुंच पा रही हैं जो उन्हें बहुत पहले ही पहुंच जाना था। कहीं ना कहीं इसमें सभी सरकारों का उतना ही दोष है और यही कारण है की गांव की आर्थिक स्थिति बद से बदतर होती जा रही है जिसके कारण गांव के लोग शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं और देश का संतुलन खराब हो रहा है। जीडीपी के गिरने और महंगाई दर के बढ़ने का यह भी एक बहुत बड़ा मुख्य कारण है। उन्होंने जोर दिया कि देश में स्मार्ट सिटी बनाने के लिए पहले स्मार्ट विलेज बनाने अनिवार्य हैं जिस पर केंद्र और राज्य सरकारों को प्राथमिकता से ध्यान देना चाहिए।

विक्रम शर्मा ने कहा की बस्तर में जो विकास है वह मुख्य रूप से दो तरह का है। एक जो पूंजीपति चाहते हैं और दूसरा जो वहाँ के स्थानीय लोग और आदिवासी चाहते हैं। उनके अनुसार आदिवासियों का यह मानना है कि उनके ग्राम के विकास का अधिकार उन्हीं के पास होने होना चाहिए क्योंकि वो वहां की वस्तुस्थिति को बखूबी समझते हैं। जहां उनके रिती रिवाज़, उनकी संस्कृति और उनकी धरोहरों को वो आज भी संजोए रखे हैं। विक्रम शर्मा ने कहा कि आज भी बस्तर के सुदूर अंचलों में वह गांव मौजूद हैं जिनकी कल्पना महात्मा गांधी ने की थी जो आज भी अपने मूल रूप में है और सरकारों को चाहिए कि इस विषय में ध्यान दें और वहां विकास के लिए एक अलग नियम और अलग कानून की स्थापना करें।

पंडित प्रियशरण त्रिपाठी ने बड़ी बेबाक़ी से कहा कि अगर देश और प्रदेश में विकास करना है तो सरकारों के पास महात्मा गांधी के सिद्धांतों का अनुसरण करने के अलावा और कोई विकल्प मौजूद नहीं है। हां यह जरूर है कि महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर चलना साधारण इंसान के बस की बात नहीं है, लेकिन केवल उनकी जयंती और पुण्यतिथि मनाने से ही को उन्हें हमारी सच्ची श्रद्धांजलि नहीं होगी बल्कि अगर हम उनके आदर्शों का अनुसरण करें और उनके बताए हुए रास्तों पर चले तो यकीनन देश में भाईचारा बढ़ेगा और साथ ही गांव शहर और पूरे देश का विकास होगा।

प्रकाशपुन्ज पाण्डेय ने कहा कि महात्मा गांधी के सोच के केंद्र में हमेशा से ही गांव रहे हैं गांव में गणतंत्र स्थापित करना सबसे अनिवार्य है और अगर आर्थिक और राजनीतिक शक्तियाँ एक जगह पर जमा हो जाती हैं तो सुराज की परिकल्पना और उसके सिद्धांतों का सर्वथा अभाव रहता है। इसीलिए गांव और शहरों का विकास अपनी अपनी जगह पर ही होना चाहिए ताकि आपस में समन्वय और संतुलन बना रहे। साथ ही शिक्षा भी इसकी एक बहुत बड़ी घड़ी है जिसे गांव गांव में फैलाना बहुत जरूरी है क्योंकि अगर व्यक्ति शिक्षित रहेगा तो वह अपने अधिकारों को सही तरीके से इस्तेमाल करना सीख पाएगा और अपने आप का दोहन होने से बचेगा। अंधाधुंध मशीनीकरण, औद्योगीकरण और शहरीकरण के जो दुष्परिणाम हम आज भुगत रहे हैं महात्मा गांधी ने उसकी कल्पना सौ साल पहले ही कर ली थी। इसीलिए उन्होंने मशीनीकरण की पश्चिमी सभ्यता को ‘शैतानी सभ्यता’ कहा था । गांव को भारत की आत्मा मानने वाले गांधी ने भारत जैसी बड़ी आबादी के देश के लिए ग्राम स्वराज्य का आर्थिक मॉडल समझाया था। गांधी ने भारत की परिस्थितियों के अनुकूल ग्राम आधारित अर्थव्यवस्था का स्वप्न संजोया था, लेकिन दुर्भाग्य से हमने उसे ध्वस्त कर दिया।

*प्रकाशपुन्ज पाण्डेय, राजनीतिक विश्लेषक, रायपुर, छत्तीसगढ़*
7987394898, 9111777044

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