छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ में अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा,मेहनत करे मुर्गा अंडा खाये फकीर नेताओं को मिले लालबत्ती और कार्यकर्ताओं के हाथों में झंडो की लकीर

छत्तीसगढ़ में अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा,मेहनत करे मुर्गा अंडा खाये फकीर नेताओं को मिले लालबत्ती और कार्यकर्ताओं के हाथों में झंडो की लकीर देवेन्द्र गोरले

राजनांदगांव- वर्ष 2000 में मध्यप्रदेश से विभाजित होकर छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना हुई और 2000 से 2003 तक कांग्रेस सत्ता में रही और इसके पूर्व भी अविभाजित मध्यप्रदेश में कांग्रेस लंबे समय तक सत्ता का सुख भोगती रही लेकिन इस दौरान कांग्रेस जो सबसे बड़ी भूल कहे या फिर जानबूझकर की गई गलती दोनों ही सूरतो में जमीनी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा करता रहा जिसके चलते जमीनी कार्यकर्ताओं में कहीं ना कहीं आक्रोश पनपता रहा जो छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के तीन साल बाद ही वर्ष 2003 में ज्वालामुखी बनकर सामने आया और लगातार सत्ता का सुख भोगने वाली कांग्रेस सरकार सत्ता से ही वंचित हो गई और भारतीय जनता पार्टी छत्तीसगढ़ में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई और पूर्ण बहुमत के साथ डॉ रमन सिंह को मुख्यमंत्री बनाकर सरकार बनाई और भारतीय जनता पार्टी व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के पांच वर्षों के कार्यकाल की संतुष्टि ही थी कि वर्ष 2008 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी चारो खाने चित हो गई और फिर एक बार प्रदेश की बागडोर मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह व भारतीय जनता पार्टी के हाथों लगी यही नहीं इन दस वर्षों में भी कांग्रेस की गुटबाजी व भितरघात समाप्त नहीं हुई जिसका लाभ बीजेपी को मिलता रहा इसलिए वर्ष 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में लगातार तीसरी बार कांग्रेस पार्टी को मुंह की खानी पड़ी और छत्तीसगढ़ में डॉ रमन सिंह लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बने और भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी।

इन 15 वर्षों में रोजगार मूलक व जनकल्याणकारी कार्य हुए तो उन कार्यों में कहीं ना कहीं कुछ कमियां भी रही जिसका फायदा उठाते हुए कांग्रेस पार्टी ने वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में प्रदेश की जनता को लोक लुभावन वायदे करके सत्ता प्राप्त कर ली लेकिन 15 वर्षो का राजनीतिक वनवास काट चुकी कांग्रेस पार्टी सत्ता में आने के बाद जनता से किये हुए वायदों को भूलकर 15 वर्षो से खाली भंडारगृह को भरने में लग गई और इसी नीयत से संगठन के पदों का वितरण किया जा रहा है यानी संगठन में पद भी उन्हें दिया जा रहा है जो स्वंम का और पार्टी का पेट भरने में सक्षम है। खाली पेट और खाली जेब वालों का संगठन में कोई काम नहीं क्योंकि पार्टी चलाने के लिए पार्टी के लिए किए गए काम की नहीं दाम की जरूरत पड़ती है कुछ ऐसी ही मानसिकता बनाकर इन दिनों संगठन के पदों का वितरण किया जा रहा है।

पूर्व कुछ दिनों पहले कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव छत्तीसगढ़ प्रदेश प्रभारी पी एल पुनिया ने कहा था कि 15 वर्षो राजनीतिक वनवास के दौरान विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस को मजबूत करने वाले कार्यकर्ताओ के चेहरे याद है लेकिन जिस तरह से संगठन के पदों पर नियुक्ति की जा रही है उसे देखकर तो ऐसा नहीं लगता कि उन्हें कर्मठ कार्यकर्ताओं के चेहरे याद है क्योंकि वो खुद पिछले 5 वर्षो से ही प्रदेश के प्रभारी है मतलब उनको रायपुर में बैठे तथाकथित बड़े नेता जो ये बता दे कि ये फलाने व्यक्ति ने संघर्ष किया है तो उनकी नजर में वही कांग्रेस का सबसे जुझारू कार्यकर्ता है।

निगम मंडलो की पहली सूची में जो नाम देखने को मिले उससे यह स्पष्ट हो गया कि छत्तीसगढ़ प्रभारी श्री पुनिया जी की कथनी और करनी में फर्क है। इस सूची में कुछ ऐसे लोगो को जगह मिली है जिन्होंने विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस का झंडा उठाने का नही बल्कि सत्ता में आने के बाद बड़े नेताओं के आगे पीछे घूमने का काम किया है। इसके बाद दूसरी सूची में तो कांग्रेस को बदनाम करने वालो के संभावित नाम देख के लगता है कि अब बारी दलाली वसूली बाजी करने वालो की है जिनके नाम न्यूज पेपर, वेब पोर्टल व सोशल मीडिया में चल रहा है जिनके कारण ना सिर्फ पार्टी की छवि खराब हो रही है बल्कि पार्टी के कर्मठ कार्यकर्ताओं के मन को भी ठेंस पहुंच रही है यदि ऐसा ही हाल अगली सूची में रह तो आगामी विधानसभा चुनाव में फिर से कांग्रेस मुक्त छत्तीसगढ़ से इंकार नहीं किया जा सकता।

कांग्रेस पार्टी में प्रारंभ से ही यह दोष रहा है कि निचले कार्यकर्ताओं की और पार्टी हाई कमान या बड़े नेताओं की नजर ही नहीं जाती क्योंकि वे उन तक पहुंच ही नहीं पाते और बड़े नेता या पार्टी हाई कमान कभी उन तक पहुँचना ही नहीं चाहते क्योंकि गरीबों के लिए उनके पास समय नहीं है हां पर चुनाव के समय उन्हें सबसे पहले यही छोटे और गरीब कार्यकर्ता ही याद आते हैं ऐसी स्थिति में मेहनत करने वाला कार्यकर्ता अपनी जमीन से कभी ऊपर उठ ही नहीं पता और उन्हीं कार्यकताओं के बल पर विधायक या सांसद बनने वाले नेता बड़ी आसानी से बड़े नेताओं तक पहुंच जाते हैं और पीली बत्ती, नीली बत्ती या फिर लाल बत्ती ले आते हैं। यानी यहां पर वही कहावत चरितार्थ होती है कि मेहनत करें मुर्गा और अंडा खाये फकीर नेताओं को मिले लाल बत्ती और कार्यकर्ताओं के हाथों में झंडो की लकीर। जो पहले से ही विधायक या सांसद बन चुके हैं सरकार उन्हें हर महीने लाखों रुपये वेतन देगी और पांच साल तक आउटसोर्स से अलग करोड़ो रूपये जमा कर लेंगे उसके बावजूद उन्हें लाल बत्ती या फिर केबिनेट मंत्री बनाकर उन्हें कमाई का और जरिया दे देते हैं लेकिन गरीब कार्यकर्ता जो अपने परिवार की भूख प्यास की चिंता किये बिना पार्टी के प्रति समर्पित होकर चल पड़ते हैं झंडे लेकर उन्हें ऊपर उठाने का या उन्हें आय का कोई जरिया ना देकर उन्हें नीचे ही दबाकर रखा जा रहा है जो ऊपर है उसे और ऊपर उठाया जा रहा है।

झुग्गी झोपड़ी प्रकोष्ठ के प्रदेश सचिव व डोंगरगढ शहर कांग्रेस कमेटी के सचिव प्रकाश महानदी ने बड़े नेताओं से अपील है कि अभी भी समय है कार्यकर्ताओं से सर्वे करवा लें उसके बाद ही मेहनती कार्यकर्ताओ को आने वाली लिस्ट में जगह दे।

 

 


उन्होंने बताया कि 20वर्षों से डोंगरगढ़ में कांग्रेस के दबंग पार्षद और कांग्रेस के मज़बूत कार्यकर्ता शिव निषाद इतने साल से पार्षद होने के बाद भी अपना मूल काम नहीं छोड़े है ऐसे कार्यकर्ता को भी निगम मंडलो में जगह देना चाहिए। शिव निषाद वो कर्मठ कार्यकर्ता है जिन्होंने 15 साल के विपक्ष कार्यकाल के बावजूद अपने वार्ड व डोंगरगढ शहर में कांग्रेस का झंडा झुकने नहीं दिया और लगातार अपने वार्ड से जीत दर्ज करते हुए लगातार चौथी बार पार्षद चुनकर आये हैं। यही नहीं इसके पूर्व कार्यकाल में नगर पालिका उपाध्यक्ष व कार्यकारी अध्यक्ष बनकर कांग्रेस का झंडा ऊंचा किया है और अपने सहज व मिलनसार व्यक्तित्व के कारण जमीनी कार्यकर्ताओं से सदैव जुड़े रहते हैं इसलिए ऐसे कार्यकताओं को ऊपर उठाने की आवश्यकता है।

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