छत्तीसगढ़

ग्राम मजगांव में दाऊ पारा के महिलाओं ने भी अपने केकती परिवार द्वारा निर्माण हुआ श्री राम जानकी मंदिर में बलराम जयंती एवं हलषष्ठी पर्व पर किया पूजा अर्चना

छत्तीसगढ़ बेमेतरा :- ग्राम मजगांव में दाऊ पारा के महिलाओं ने भी अपने केकती परिवार द्वारा निर्माण हुआ श्री राम जानकी मंदिर में बलराम जयंती एवं हलषष्ठी पर्व पर किया पूजा अर्चना और शुभलक्ष्मी साहू ने बताया प्रतिवर्ष भाद्रपद माह की छठी तिथि को हलषष्ठी का महिलाएं अपने पुत्र के दीर्घायु होने और उन्हें असामयिक मौत से बचाने के लिए हरछठ या हलषष्ठी व्रत करती हैं। इस दिन महिलाएं ऐसे खेत में पैर नहीं रखतीं, जहां फसल पैदा होनी हो और ना ही पारणा करते समय अनाज व दूध-दही खाती है।बलराम भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई थे पौराणिक ग्रंथों में इनकी महिमा इससे बहुत आगे है ।बलराम के शक्तिबल से सभी परिचित हैं मान्‍यता है कि इस दिन भगवान बलराम की पूजा करने से संतान की रक्षा होती है यही कारण है कि इस दिन महिलाएं बलशाली संतान पाने के लिए और उनके उज्‍जवल भविष्‍य की कामना लेकर व्रत रखती हैं और विशेष पूजा करती हैं इस व्रत को हलषष्‍ठी भी कहा जाता है।हलषष्ठी की पूजा विधि हलषष्ठी के दिन सुबह से नहा धोकर साफ कपड़े पहनकर गोबर से जमींन को अच्छे से पोत लें। इसके बाद वहां पर छोटे से तालाब का निर्माण करें। इसके बाद इस तालाब के आसपास झरबेरी और पलाश को लगा दें। इसके बाद पूजा में चना, जौ, गेंहू, धान, मक्का और मक्का से पूजा करें। इसके बाद हलछठ की कथा सुनाई जाती है। जिससे संतान की उम्र लंबी होती है। भैंस के दूध का होता है उपयोग हलषष्ठी के दिन गाय के दूध या दही का सेवन बिल्कुल भी नहीं किया जाता है। इस दिन भैंस का दूध और भैंस के दूध से बनी घी का प्रयोग किया जाता है। पसहर चावल का होता है विशेष महत्व इस दिन बिना हल लगे फल, सब्जी और अनाज का इस्तेमाल किया जाता है। इस दिन पसहर चावल जिसे छत्तीसगढ़ में लाल भात कहा जाता है। विशेष तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। पूजा स्‍थल और घर की साफ-सफाई का विशेष ध्‍यान रखें इस बात का ध्‍यान रखें कि इस दिन व्रत रखने वाले व्रती हल से जुते हुए अनाज और सब्जियों का सेवन न करें इस दिन गाय का दूध और दही का प्रयोग भी नहीं किया जाता है पूजा संपन्‍न होने के बाद भगवान की आरती करें और मिश्री और मक्‍खन के भोग के अलावा पीले रंग की मिठाई का भोग भी लगाएं पूजा के बाद पीली मिठाई गरीब बच्‍चों में बांट दें इससे भगवान प्रसन्‍न होते हैं और उनकी कृपा होती है हल षष्ठी की व्रतकथा निम्नानुसार है । प्राचीन काल में एक ग्वालिन थी। उसका प्रसवकाल अत्यंत निकट था। एक ओर वह प्रसव से व्याकुल थी तो दूसरी ओर उसका मन गौ-रस (दूध-दही) बेचने में लगा हुआ था। उसने सोचा कि यदि प्रसव हो गया तो गौ-रस यूं ही पड़ा रह जाएगा। यह सोचकर उसने दूध-दही के घड़े सिर पर रखे और बेचने के लिए चल दी किन्तु कुछ दूर पहुंचने पर उसे असहनीय प्रसव पीड़ा हुई। वह एक झरबेरी की ओट में चली गई और वहां एक बच्चे को जन्म दिया। वह बच्चे को वहीं छोड़कर पास के गांवों में दूध-दही बेचने चली गई। संयोग से उस दिन हल षष्ठी थी। गाय-भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर उसने सीधे-सादे गांव वालों में बेच दिया। उधर जिस झरबेरी के नीचे उसने बच्चे को छोड़ा था, उसके समीप ही खेत में एक किसान हल जोत रहा था। अचानक उसके बैल भड़क उठे और हल का फल शरीर में घुसने से वह बालक मर गया। इस घटना से किसान बहुत दुखी हुआ, फिर भी उसने हिम्मत और धैर्य से काम लिया। उसने झरबेरी के कांटों से ही बच्चे के चिरे हुए पेट में टांके लगाए और उसे वहीं छोड़कर चला गया।कुछ देर बाद ग्वालिन दूध बेचकर वहां आ पहुंची। बच्चे की ऐसी दशा देखकर उसे समझते देर नहीं लगी कि यह सब उसके पाप की सजा है। वह सोचने लगी कि यदि मैंने झूठ बोलकर गाय का दूध न बेचा होता और गांव की स्त्रियों का धर्म भ्रष्ट न किया होता तो मेरे बच्चे की यह दशा न होती। अतः मुझे लौटकर सब बातें गांव वालों को बताकर प्रायश्चित करना चाहिए। ऐसा निश्चय कर वह उस गांव में पहुंची, जहां उसने दूध-दही बेचा था। वह गली-गली घूमकर अपनी करतूत और उसके फलस्वरूप मिले दंड का बखान करने लगी। तब स्त्रियों ने स्वधर्म रक्षार्थ और उस पर रहम खाकर उसे क्षमा कर दिया और आशीर्वाद दिया बहुत-सी स्त्रियों द्वारा आशीर्वाद लेकर जब वह पुनः झरबेरी के नीचे पहुंची तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गई कि वहां उसका पुत्र जीवित अवस्था में पड़ा है। तभी उसने स्वार्थ के लिए झूठ बोलने को ब्रह्म हत्या के समान समझा और कभी झूठ न बोलने का प्रण कर लिया ।

सबका संदेश ब्युरो चीफ बेमेतरा टिकेश्वर साहू 9589819651

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