संस्कृति और परम्परा का पुनर्मिलन – धुमकुरिया

संस्कृति और परम्परा का पुनर्मिलन – धुमकुरिया
संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत ने धुमकुरिया को प्रोत्साहित करने के लिए 30 हज़ार देने की घोषणा की
रायपुर – विश्व आदिवासी दिवस के उपलक्ष्य में छत्तीसगढ़ उरांव आदिवासी युवा संगठन के द्वारा वर्चुअल प्रतियोगिता कार्यक्रम का आयोजन किया गया है. कोरोना महामारी की वजह से विभिन्न क्षेत्रों में लॉकडाउन की स्थिति बनी हुई है. इस बात को ध्यान में रखते हुए कोई बड़ा सम्मलेन ना करते हुए ऑनलाइन माध्यम से आदिवासी समुदाय को एक मंच प्रदान करने के उद्देश्य से प्रदेश के आदिवासी उरांव समाज के युवाओं के द्वारा धुमकुरिया संगठन के बैनर तले प्रश्नोंतरी और फोटोशूट प्रतियोगिता रखी गई है.
बता दें कि आदिवासी संस्कृति के इतिहास में धूमकुरिया उरांव जनजाति में एक समान युवा-केंद्रित छात्रावास हुआ करता था. किसी भी अन्य आश्रम की तरह, सदस्य गायन और नृत्य में संलग्न होते थे और धूमकुरिया के बुजुर्ग समूह के युवा सदस्यों को सामाजिक-सांस्कृतिक, राजनीतिक-आर्थिक और धार्मिक आधार पर प्रशिक्षण प्रदान करते थे. धूमकुरीया के माध्यम से सहयोगवाद और सामूहिकता को प्रोत्साहित किया जाता था.
आज की वर्चुअल दुनिया में आदिवासी संस्कृति विलुप्त होती जा रही है. नयी पीढ़ी अपनी मूल पहचान के बारे में ज्यादा नहीं जान पाते है इसलिए परम्परा को आगे बढ़ाने के लिए प्रदेश के आदिवासी उरांव युवाओं ने मिलकर धुमकुरिया की शुरुआत की है. वर्चुअल कार्यक्रम 9 अगस्त को होगी इसकी जानकारी फेसबुक और इंस्टाग्राम में उपलब्ध है.
प्रदेश के संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत ने उरांव आदिवासी युवाओं की पहल की सराहना करते हुए कहा की धुमकुरिया बहुत अच्छी शुरवात है. इससे आदिवासी संस्कृति और परंपरा पुनः जीवंत होगी. आने वाले समय में यह आदिवासी समुदाय को मजबूती प्रदान करेगा. उरांव समाज के युवाओं को प्रोत्साहित करने के लिए धुमकुरिया संगठन को 30 हज़ार रूपये देने की घोषणा की है.