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रंगों से होली खेलने में हानि व लाभ

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???होलिका दहन???

सोशल मीडिया की दुनिया के मित्रों ,
जय माता की।

आईये, आज आपसे होलिका दहन के बारे में कुछ चर्चा करते है कि यह क्यो मनाया जाता है ???
इसके पौराणिक व वैज्ञानिक आधार क्या है???
आदि आदि।

*होलिका दहन – फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को शुभ मुहूर्त में किया जाता है तदनुसार 20/3/2019 बुधवार को रात्रि 9 बजे के बाद किया जायेगा।*

हमारे पूर्वज ऋषि-मुनि शोधकर्ता वैज्ञानिक होते थे उन्होंने जो भी तीज त्यौहार उत्सव बनाये उनके पीछे कई वैज्ञानिक तथ्य व गूढ़ रहस्य छुपे हैं।

*होली दहन के पीछे का वैज्ञानिक कारण :*

होली के दिनों में ऋतु परिवर्तन होता है धीरे धीरे मौसम ठंड से गर्मी की ओर बढ़ता है जिससे शरीर में कफ पिघलकर जठराग्नि में आता है जिसके कारण अनेक बीमारियां होती हैं उससे बचने के लिए होलिका दहन के समय जलते हुए होलिका की 7 परिक्रमा करने पर आग की तपन से कफ जल्दी पिघल जाता है।
और
दूसरे दिन भाग दौड़ , कूद-फांद कर धुलेंडी खेलने (रंगोत्सव) से वह कफ विभिन्न माध्यम से शरीर से बाहर निकल जाता है जिसके कारण अनेक भयंकर बीमारियों से रक्षा होती है।

*होली के पीछे आध्यात्मिक कारण*

भगवान शंकर की समाधि अवस्था को दूर करने के लिए देवताओं की प्रार्थना करने पर कामदेव के द्वारा पुष्पबाण छोड़े गये ,भगवान ने रोष में क्रोधाग्नि से काम को भस्म कर दिया , इसी भस्म से भक्तों ने सबसे पहले होली खेली थी |

नृसिंह भगवान ने प्रह्लाद की रक्षा की और उसकी बुआ होलिका को भस्म किया ,और उसके भस्म से भक्तों ने होली खेली थी ।

द्वापर में आज के ही दिन भगवान कृष्ण ने पूतना का उद्धार किया था ,बाद में उसे भस्मीभूत किया गया उसके भस्म से होली खेली गई थी,

कुछ लोग जलती हुई होलिका में चना – गेहूं की बालियों को भूनते/सेंकते है।
वे लोग आज के दिन से ही नवान्न खाते है, उस अन्न को कोषागार या भण्डार में भी रखते है ,जिससे धन- धान्य की पूर्णता रहती है |

*होलिका दहन के प्राचीन स्वरूप*

प्राचीनकाल में होलीका दहन गाय के गोबर के कण्डों से किया जाता था। जिसमें से ऑक्सीजन निकलता था
तथा
रंगोत्सव ,पलाश (टेसू) के फूलों के रंग से खेली जाती थी जिससे आने वाले दिनों में गर्मी के कारण होने वाले रोगों से बचाव हो जाता था ।*

*होलिका दहन गाय के गोबर के कण्डों से ही करना चाहिए।*

कुछ क्षेत्रों में गाय के गोबर से भरभोलिए बनाने की परम्परा है।
भरभोलिए , गाय के गोबर से बने ऐसे उपले होते हैं जिनके बीच में छेद होता है। इस छेद में मूँज की रस्सी डाल कर माला बनाई जाती है। एक माला में सात भरभोलिए होते हैं।
शुभ मुहूर्त में माताएं बहने इस माला को अपने भाईयों के सिर के ऊपर से सात बार घूमा कर होलिका में डाल देती है। रात को होलिका दहन के समय यह माला होलिका के साथ जल जाता है।
इसका यह आशय है कि होली के साथ भाईयों पर लगी बुरी नजर भी जल जाए।
भारतीय जन मानस व संस्कृति में गाय के गोबर का अपना विशेष महत्व है। होली पर्व में भी इसका महत्व देखने को मिलता है।
गाय के गोबर को पवित्र माना जाता है।
आपने देखा होगा कि किसी भी धार्मिक कार्यों में गाय के गोबर से उस स्थान की लिपाई कर पवित्र किया जाता है। गाय के गोबर से ही प्रथम पूजक गणेश जी ( गौरी गणेश ) बनाया जाता है। गाय के गोबर से बने उपले से हवन कुण्ड की अग्नि जलाई जाती है। आज भी गांवों में महिलाएं सुबह उठकर गाय गोबर से घर के मुख्य द्वार को लिपती हैं। माना जाता है कि इससे लक्ष्मी का वास बना रहता है।
प्राचीन काल में मिट्टी और गाय का गोबर शरीर पर मलकर साधु संत स्नान भी किया करते थे।
गोबर भयानक रोगों को भी ठीक करने में सहायक है। इसलिए पुराने जमाने में जब भोजन गोबर के उपले से बनता था तो कई तरह की बीमारियां नहीं होती थी। गोबर का धुआं अपने आस-पास के वातावरण को भी शुद्ध रखता है। इसके धुएं से घर की सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है। इसलिए गोबर को बहुत पवित्र माना जाता है।

*गोबर का वैज्ञानिक महत्व*

इटली के प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो. जी.ई. बीगेड ने गोबर के अनेक प्रयोगों द्वारा सिद्ध किया है कि गाय के ताजे गोबर से टी बी तथा मलेरिया के कीटाणु मर जाते हैं। आणविक विकरण से मुक्ति पाने के लिये जापान के लोगों ने गोबर को अपनाया है। गोबर हमारी त्वचा के दाद, खाज, एक्जिमा और घाव आदि के लिये लाभदायक होता है।

एक समय था जब घर घर में गाय हुआ करती थी उस समय होली के दिनों में दोपहर में घर की महिलाएँ उपले और भरभोलिए बनाती थी लेकिन बदलते परिवेश ने इसमें फर्क डाला है। आज घर घर में गैस के चूल्हों ने जगह बना ली है और गाय का गोबर उपयोग में नहीं आता है। इस कारण भरभोलियों को घर में बनाना संभव नहीं हैं। लेकिन होली के अवसर पर इन्हें दूकान से ख़रीदा जा सकता है।

*क्या करें आप ?????*

आचार्य – पंडितों व ज्योतिषियों द्वारा निकाले गए मुहूर्त पर होलिका दहन किया जाता है। तब आप भी अपने परिवार सहित यथाशक्ति संख्या मे गाय के गोबर से बने कंडे व पूजन सामग्री लेकर जलते हुए होलिका के पास बैठकर पूजा करें फिर कम से कम सात परिक्रमा कर प्रणाम करें।

*?गोबर से कण्डों से होली जलाने के फायदे:-*

एक गाय करीब रोज 10 किलो गोबर देती है । 10.. किलो गोबर को सुखाकर 5 कंडे बनाए जा सकते हैं ।

एक कंडे की कीमत 10 रुपए रख सकते हैं । इसमें 2 रुपए कंडे बनाने वाले को, 2 रुपए ट्रांसपोर्टर को और 6 रुपए गौशाला को मिल सकते है । यदि किसी एक शहर में होली पर 10 लाख कंडे भी जलाए जाते हैं तो 1 करोड़ रुपए कमाए जा सकते हैं । औसतन एक गौशाला के हिस्से में बगैर किसी अनुदान के 60 लाख रुपए तक आ जाएंगे । लकड़ी की तुलना में लोगों को कंडे सस्ते भी पड़ेंगे ।

केवल 2 किलो सूखा गोबर जलाने से 60 फीसदी यानी 300 ग्राम ऑक्सीजन निकलती है ।
वैज्ञानिकों ने शोध किया है कि गाय के एक कंडे में गाय का घी डालकर धुंआ करते हैं तो एक टन ऑक्सीजन बनता है ।

गाय के गोबर के कण्डों से होली जलाने पर गौशालाओं को स्वाबलंबी बनाया जा सकता है, जिससे गौहत्या कम हो सकती है, कंडे बनाने वाले गरीबों को रोजी-रोटी मिलेगी, और वातावरण में शुद्धि होने से हर व्यक्ति स्वस्थ्य रहेगा ।

*इस तरह हम अपने स्वास्थ्य के साथ ही गोमाता की सेवा में भी सहभागी बन सकते है।*

*धुलेंडी (रंगोत्सव )खेलने के पीछे का वैज्ञानिक कारण :*

होली के समय ऋतु परिवर्तन होता है, सर्दी से गर्मी में प्रवेश होता है इसलिए गर्मी की तपन और गर्मीजन्य रोगों से बचने के लिए पलाश के रंगों से होली खेली जाती है । आध्यात्मिक कारण ये है कि हमे सालभर में किसी से भी कोई लड़ाई झगड़ा हुआ है उसको भूलकर मिलजुलकर होली खेलें ।

*पलाश रंग से धुलेंडी खेलने के फायदे:*

पलाश के फूलों से होली खेलने की परम्परा का फायदा बताते हुए हमारे हिन्दू संत कहते हैं कि ‘‘पलाश कफ, पित्त, कुष्ठ, दाह, वायु तथा रक्तदोष का नाश करता है । साथ ही रक्तसंचार में वृद्धि करता है एवं मांसपेशियों का स्वास्थ्य, मानसिक शक्ति व संकल्पशक्ति को बढ़ाता है ।*

*रंगों से होली खेलने में हानि व लाभ*

रासायनिक रंगों से होली खेलने में प्रति व्यक्ति लगभग 35 से 300 लीटर पानी खर्च होता है,
जबकि
प्राकृतिक रंगों से होली खेलने में प्रति व्यक्ति लगभग 30 से 60 मि.ली. पानी लगता है ।
इस प्रकार देश की जल-सम्पदा की हजारों गुना बचत होती है ।
पलाश के फूलों का रंग बनाने के लिए उन्हें इकट्ठे करनेवाले आदिवासियों को रोजी-रोटी मिल जाती है ।
पलाश के फूलों से बने रंगों से होली खेलने से शरीर में गर्मी सहन करने की क्षमता बढ़ती है, मानसिक संतुलन बना रहता है।

*प्राकृतिक रंग बनाने की सरल विधियाँ*

*केसरिया रंगः पलाश के फूलों से यह रंग सरलता से तैयार किया जा सकता है। पलाश के फूलों को रात को पानी में भिगो दें। सुबह इस केसरिया रंग को ऐसे ही प्रयोग में लायें या उबालकर होली का आनंद उठायें। यह रंग होली खेलने के लिए सबसे बढ़िया है। शास्त्रों में भी पलाश के फूलों से होली खेलने का वर्णन आता है। इसमें औषधीय गुण होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार यह कफ, पित्त, कुष्ठ, दाह, मूत्रकृच्छ, वायु तथा रक्तदोष का नाश करता है। रक्तसंचार को नियमित व मांसपेशियों को स्वस्थ रखने के साथ ही यह मानसिक शक्ति तथा इच्छाशक्ति में भी वृद्धि करता है।*

*सूखा हरा रंगः मेंहदी का पाऊडर तथा गेहूँ या अन्य अनाज के आटे को समान मात्रा में मिलाकर सूखा हरा रंग बनायें। आँवला चूर्ण व मेंहदी को मिलाने से भूरा रंग बनता है, जो त्वचा व बालों के लिए लाभदायी है।*

*सूखा पीला रंगः हल्दी व बेसन मिला के अथवा अमलतास व गेंदे के फूलों को छाया में सुखाकर पीस के पीला रंग प्राप्त कर सकते हैं।*

*गीला पीला रंगः एक चम्मच हल्दी दो लीटर पानी में उबालें या मिठाइयों में पड़ने वाले रंग जो खाने के काम आते हैं, उनका भी उपयोग कर सकते हैं।*

*अमलतास या गेंदे के फूलों को रात को पानी में भिगोकर रखें, सुबह उबालें।*

*लाल रंगः लाल चंदन (रक्त चंदन) पाउडर को सूखे लाल रंग के रूप में प्रयोग कर सकते हैं। यह त्वचा के लिए लाभदायक व सौंदर्यवर्धक है।*

*दो चम्मच लाल चंदन एक लीटर पानी में डालकर उबालने से लाल रंग प्राप्त होता है, जिसमें आवश्यकतानुसार पानी मिलायें।*

*पीला गुलाल : ४ चम्मच बेसन में २ चम्मच हल्दी चूर्ण मिलायें |*

*अमलतास या गेंदा के फूलों के चूर्ण के साथ कोई भी आटा या मुलतानी मिट्टी मिला लें |*

*पीला रंग : २ चम्मच हल्दी चूर्ण २ लीटर पानी में उबालें |*

*अमलतास, गेंदा के फूलों को रातभर भिगोकर उबाल लें |*

*जामुनी रंग : चुकंदर को उबालकर पीस के पानी में मिला लें* |

*काला रंग : आँवला चूर्ण लोहे के बर्तन में रातभर भिगोयें |*

*लाल रंग : आधे कप पानी में दो चम्मच हल्दी चूर्ण व चुटकीभर चूना मिलाकर १० लीटर पानी में डाल दें*

*२ चम्मच लाल चंदन चूर्ण १ लीटर पानी में उबालें |*

*लाल गुलाल : सूखे लाल गुडहल के फूलों का चूर्ण उपयोग करें |*

*हरा रंग : पालक, धनिया या पुदीने की पत्तियों के पेस्ट को पानी में भिगोकर उपयोग करें |*

*गेहूँ की हरी बालियों को पीस लें |*

*हरा गुलाल : गुलमोहर अथवा रातरानी की पत्तियों को सुखाकर पीस लें |*

*भूरा हरा गुलाल : मेहँदी चूर्ण के साथ आँवला चूर्ण मिला लें |*

इस होली में आप भी अपना बड़ा पन भूलकर छोटे बच्चों की तरह मस्ती में अपने संस्कृति परम्परा की धरोहर का आनन्द लें। ऐसा करके आपका मन प्रसन्न होगा साथ ही परिवारिक माहौल खुशनुमा होगा ,
मुझे गुलाल से या रंग से एलर्जी होता है ऐसा बोलकर अपने अपनो को मना न करें। बल्कि प्राकृतिक रंग खुद ही व्यवस्था करके रख लें।
इस बात का जरूर ध्यान रखें कि आपकी वजह से किसी की खुशी के रंग में भंग न पड़े बल्कि आपकी सहभागिता से अपनो की खुशी कई गुणा बढ़ जाय ।

इस तरह की होली आपके जीवन मे हमेशा बनी रहे ।
इसी शुभकामना के साथ

लेख – संकलन


पण्डित मनोज शुक्ला महामाया मन्दिर रायपुर 7804922620

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