पत्रकारो की हत्या करने वाले हत्यारो को कड़ी से कड़ी सजा हो -शहनवाज
पत्रकारो की हत्या करने वाले हत्यारो को कड़ी से कड़ी सजा हो -शहनवाज
दन्तेवाडा-: दिल्ली से सटे जिला गाजियाबाद के विक्रम जोशी पत्रकार की हत्या एक दर्दनाक हादसा है जो एक महिला के इंसाफ़ दिलाने कि बात कर रहा था गाजियाबाद के पत्रकार विक्रम जोशी की बडी दर्दनाक तरीके से हत्या कर दी गयी यह एक बहुत बड़े अफ़सोस की बात है जो हमारे भारत का लोकतंत्र का चौथा स्तंभ पत्रकार कहलाते है उसकी बेरहमी से हत्या कर दी जाती है आज पत्रकार जनता की आवाज उठाने के लिए सरकार की उपलब्धिया दिखाते है हर किसी की आवाज हो या कोई क्राईम हो हर जगह अकेले निडर होके जाते है जो अपने परिवार की अपने रिश्तेदारो कि किसी की परवाह नही करते है हर घण्टा समाज की सेवा मे लगे रहते है हक और सच की आवाज को दिखाने के लिए वह अपनी कडी मेहनत से अखबारो और चैनलो पर सत्य से सभी को रुबरु करवाते है
वही एक सच्चे और इमानदार पत्रकार की हत्या होना यह एक बहुत बड़ा अफ़सोस का मकाम है पुरे भारत मे यह घटनाए बडती जा रही है बीते छः साल 2014 से लेकर 2020 तक मे भारत मे पत्रकरो पर 220 से अधिक गम्भीर हमले हुए है जिसमे 42 पत्रकरो कि हत्या उनकी पत्रकारिता की वजह से हुयी है अगर बात सविधान और इंसाफ़ की करे तो पिछली 10 वर्ष 2010 से लेकर अब तक 30 से अधिक पत्रकारो की मौत के मामले मे सिर्फ़ तीन को दोषी ठहराया गया है जिसमे 2011 मे पत्रकार जे.डे., 2012 मे पत्रकार राजेश मिश्रा, और 2014 मे पत्रकार तरुण आचार्य की हत्या के मामले है
अध्ययन के मुताबिक इन हत्याओ और हामलो के दोषियो मे सरकारी एजेंसियां, सुरक्षाबल, नेता, धार्मिक गुरू छात्र संगठन के नेता और आपराधिक गैंग से जुड़े लोग और स्थानीय माफ़िया शामिल है वही 2014 के बाद अब तक भारत मे पत्रकारो पर हमले के मामले मे एक भी आरोपी को दोषी नही ठहराया गया है
यह भी पता चला है की बीते कुछ समय मे फ़ील्ड रिपोर्टिन्ग करने वाली महिला पत्रकारो पर भी हामले बड़े है सबरीमला मंदिर मे महिलाओ के प्रवेश को कवर करने वाली महिला पत्रकारो पर भी हामले शामिल है इस दौरान 19 महिला पत्रकारो पर हमले किए गए थे
एक रिपोर्ट के मुताबिक मीडिया के भीतर बड रहा ध्रुवीकरण भी एक चिंता का कारण है राजनीतिक दलो द्वारा चलाए जा रहे या इनके करीबी मीडिया संस्थान का रुख बहुत स्पष्ट होता है को भारत मे पत्रकारो पर हमले मे बडी भूमिका निभाता है
वही अगर बात करे तो बेन्गलुरू मे सम्पादक गौरी लंकेश,श्रीनगर मे शुजात बुखारी की हत्या और छत्तीसगढ़ मे सुरक्षाबलो पर मोओवादियो के हमले मे दूरदर्शन के कैमरापर्सन अच्चुतानन्द साहू की मौत के अलावा पत्रकारो की हत्या के अन्य मामले किसी क्षेतत्रीय भाषाई प्रकाशन के लिए काम नियमित या स्ट्रिन्गर के तौर पर काम कर रहे या देश के दूरदराज के किसी इलाके मे अपराध और भ्रष्टाचार को लेकर रिपोर्टिन्ग कर रहे पत्रकारो के हैं
और सात मामले रेत माफ़िया, अवैध शराब की तस्करी, भुमाफ़िया, जलमाफ़िया सहित अवैध गतिविधियो की रिपोर्टिन्ग कर रहे पत्रकारो की हत्या के है
अगर बात नागरिकता कानून और एनआरसी के विरोध में हो रहे प्रदर्शन के मद्देनजर पत्रकारो पर ताजा हमलो को लेकर शोधकर्ताओ का शोध कहलाता है इन अन्याय की जवाबदेही तय करने और इसमे समाप्त करने की थोड़ी बहुत सम्भावना है बीते छः सालो मे इस सम्बन्ध मे न्याय नही मिलने का दयनीय रिकार्ड है
मै भारत सरकार से अपिल करना चाहता हूँ लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहलाने वाले पत्रकारो की सुरक्षा का जिम्मा ले और उनपर हो रहे हमले और हमले करने करने आरोपी को सख्त से सख्त कारवाही की मांग करते है और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री जी से अपील करना चाहता हूँ विक्रम जोशी को इंसाफ मिलना चाहिए और हत्यारो को कडी से कडी सजा मिलनी चाहिए या अन्य किसी किसी पत्रकार की हत्या ना हो विक्रम जोशी के परिवार के सदस्य को उस पत्रकार विभाग में नौकरी मिलनी चाहिए, विक्रम जोशी परिवार को सरकार की तरफ़ से आर्थिक सहायता की मदद मिलनी चाहिए l