कोंडागांव/केशकाल। श्रावंण में पड़ने वाले सोमवार शिवजी का परमप्रिय मास एवं दिन माना जाता है। इसलिए भगवान शंकर के मंदिरों एवं प्रसिद्ध प्राचिन शिव धामों में पंहुचने वाले श्रद्धालु शिवभक्तों की संख्या अन्य दिनों की अपेक्षा बहुत अधिक बढ़ जाती है। इन्हीं शिव धामों में से जिला अंतर्गत अपने जमाने के गढ़ रहे गढधनौरा तथा आश्रित ग्राम गोबरहीन को शिवधाम के तौर पर लोग जानते हैं और बारहों मास यंहा पर दूर दूर से लोग दर्शन पर्यटन के लिए पंहुचते ही रहते हैं।
कोंडागांव जिला मुख्यालय से लगभग 60 किमी, कांकेर जिला मुख्यालय से 28 किमी और केशकाल से मात्र 3 किमी दूरी पर स्थित है बस्तर संभाग के प्रसिद्ध पर्यटन एवं धार्मिक स्थलों की सूची में विशिष्ट आकर्षक स्थान रखने वाला गढधनौरा/गोबरहीन। साल भर यहां अपने घर परिवार एवं मित्रों के सांथ लोग शिव दर्शन को पहुँचते है। श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को सुबह से ही दूर दूर से आये श्रद्धालु शिवभक्तों का तांता लगा रहता है। यंहा पर खुले आसमान तले विराजमान देवाधिपति देव महादेव के भव्य अलौकिक शिवलिंग का दर्शन करके आगंतुक शिवभक्त मुग्ध हो जाते हैं। दर्शन पूजन करते हुए यंहा पंहुचने वाले अपने दोनो बांहों को फैलाकर शिवलिंग को अपने सीने से चिपकाकर अपने हांथ की उंगलियों को मिलाने की कोशिश करते अपने भाग्य को आजमाते नजर आते है। यह धारंणा है कि शिवलिंग जिनके बाँहो में समा जाते हैं वो बहुत भाग्यशाली होता है। प्राचिन समय मे बने ईंट के ऊंचे विशाल किले पर विराजे इस शिवलिंग का दर्शन पूजन करने के बाद आगंतुक पुरातत्त्व विभाग के द्वारा निकले गये मलमा से मंदिरों के भग्नावशेषों एवं उसमें से निकली प्राचिन मूर्तियों को देखते हुए साल के विशालकाय पेड़ों के बीच मिले जोड़ा लिंग का दर्शन पूजन करने पंहुचते हैं। शिव और शक्ति के समन्वित रूप के तौर पर एक सांथ स्थापित दो लिंग को दुनिया का दुर्लभ लिंग माना जाता हैं। क्योंकि छोटा बडा शिवलिंग और एक ही जगह पर कई लिंग मिलने का प्रमांण तो मिलता है पर एक सांथ दो लिंग होने की अभी तक कोई जानकारी सामने नही आया है। इसलिए इसे अद्भूत बेमिसाल लिंग के तौर पर माना जाता है। यहां पर दूर दूर तक मिले हुए प्राचिन पुरावशेषों को देखकर यह माना जाता है कि यहां पर कभी किसी महान शिवभक्त राजा महाराजा ने अपने गढ़ की स्थापना करके बहुत बड़ी संख्या में देवी देवताओं के मंदिरों का निर्माण करवाया रहा होगा। इतिहासकारों एवं पुरातत्व वेत्ताओं द्वारा यंहा पर मिले मंदिरों व मूर्तियों के निर्मांण कला को देखते हुए यह माना जा रहा है कि यहां पर नलवंशी, नागवंशी राजाओं के द्वारा गढ़ स्थापित करके मंदिरों का निर्मांण कराकर मूर्तियों को स्थापित किया गया रहा होगा। वंही भगवान श्री राम के वन गमन मार्ग पर शोध करने वालों का यह मानना है कि भगवान श्रीराम दंण्डकारंण्य वन में प्रवेश करते हुए यंहा पर पधारकर भगवान शिव की पूजा अराधना कर कुछ दिन विश्राम करने के बाद आगे प्रस्थान किये थे। भगवान श्री राम के वन गमन मार्ग से जुड़ जाने से इस स्थान पर लोगों की आस्था और लोगों का आकर्षंण बढ़ गया है।
यही पास में ही प्रसिद्ध नारना शिवलिंग भी है जो केशकाल से लगभग 8 किमी की दूरी पर एक गांव है नारना में स्थित है। यहाँ पर भी अति प्राचीन शिव लिंग है जिसकी पूजा अराधना करने बहुत दूर दूर से श्रद्धालु शिव भक्त पंहुचते रहते हैं। माघ पूर्णिमा महाशिवरात्रि पर और श्रावंण सोमवार को यहां पर बहुत भारी संख्या में श्रद्धालु पंहुचते हैं।