गुस्से में हैं बिहारी युवा और वे ये हालात ज्यादा दिन नहीं झेल सकते । Millennial Biharis are Mad as Hell and They Can not Take it Anymore | nation – News in Hindi

एक ‘बिहारी’ (Bihari) एक हजार शब्द की थीसिस (Thesis) को एक शब्द से खारिज कर सकता है. और यह एक शब्द संयुक्त रूप से हिंदी के सभी अक्षरों (all of the Hindi alphabets) से ज्यादा बिहारी होगा. जैसे ‘जुझारूपन’, एक शब्द जिसे हिंदी पट्टी (Hindi Belt) में बहुत से लोग जानते भी नहीं हैं, लेकिन यह उन दर्जनों शब्दों में से एक है जिससे बिहारी वह बात कहते आए हैं, जो एक हजार शब्द नहीं कह सकते. ऐसा लगता है कि नया बिहार (Bihar), केवल एक तरह का जिद्दीपना है. इसका कभी हार न मानने वाला स्वभाव, टूटे वादों, जंगल राज के सालों, यहां तक कि जबरदस्त उदासीनता को छिपा लेता है.
यहां तक कि जब राज्य एक अभूतपूर्व वैश्विक महामारी (Global Pandemic) का सामना कर रहा है, ‘जुझारू बिहारी’ ’अपनी झुंझलाहट’ (हताशा) को दूर करने के लिए नए तरीके खोज रहा है. जाति के आंकड़ों से दूर एक नए राजनीतिक नैरेटिव और सिर्फ ‘बिजली, पानी और सड़क’ नहीं, बल्कि इससे ज्यादा की भूख ने एक नए और पेचीदा फायरब्रांड (युवाओं) को जन्म दिया है, जो टिकटॉक और यूट्यूब (TikTok and YouTube) जैसे माध्यमों से, नेतृत्व और विपक्ष (Opposition) दोनों को निशाना बना रहा है. और इन माध्यमों पर वे (युवा) इसे ‘आलसी रजनीति’ या थकी हुई और हैक की गई राजनीति कहते हैं.
रोजगार की कमी और पहचान के चलते निशाना बनाया जाना बिहारी युवाओं के दो अनुभवजीवन के विभिन्न अनुभवों के बीच, इस युवा ब्रिगेड के पास दो चीजें हैं: राज्य में रोजगार की कमी के कारण विस्थापन की मजबूरी और उनकी पहचान के लिए लगातार नीचा दिखाया जाना.
20 मई को, #IndustriesInBihar के नाम से एक नेशनल ट्विटर ट्रेंड चला, जिसमें लगभग सभी प्रमुख संगठन राज्य में औद्योगिक विकास की आवश्यकता पर अपनी बात रखने के लिए आगे आए. इस ट्रेंड ने कई लोगों को कई दिनों के लिए सोचने पर मजबूर कर दिया क्योंकि इससे पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था कि किसी भी राजनीतिक समर्थन के बिना इतने बड़े स्तर पर साथ मिल एकजुट आवाज उठाई गई हो. इसके पीछे रहे मेन प्लेयर्स में से एक मिथिला छात्र संघ था.
उन चीजों के उत्पादन में मूकदर्शक बना बिहार, जिनमें कभी सबसे आगे था
मिथिला छात्र संघ के नेता आदित्य मोहन कहते हैं, “हम एक बड़े संगठन हैं. हमने अपने हजारों सदस्यों को ट्विटर पर इकट्ठा किया. युवा नेताओं के साथ कई अन्य समूह एक साथ आए और हम आम सहमति पर पहुंचे कि हमें उस हैशटैग के लिए जोर लगाना चाहिए. दोपहर तक, 2 लाख से अधिक ट्वीट हो गये थे.”
मोहन ने जोर देकर कहा कि वे केवल खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों आदि जैसे पारंपरिक उद्योगों के लिए ही मांग नहीं कर रहे हैं. उन्होंने कहा, “हम मनोरंजन क्षेत्र में उद्योग चाहते हैं, हम शिक्षा क्षेत्र में काम करना चाहते हैं, अधिक निजी कॉलेज चाहते हैं. आम और लीची का उत्पादन यहां बहुतायत में किया जाता है, लेकिन यहां जूस की ईकाईयां नहीं हैं.”
यह भी पढ़ें: ‘जब लोग लॉकडाउन के दौरान पैदल घरों को निकल पड़े थे, हमें बहुत दुख हुआ था’
जो राज्य कभी बागवानी उत्पादन के 50 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार था, चीनी का 25 प्रतिशत और चावल और गेहूं के उत्पादन का 29 प्रतिशत जहां होता था, अब ज्यादातर क्षेत्रों में मूक दर्शक बन गया है, जिनमें कभी वह हावी था.