बस्तर में प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी दशहरे का आगाज हरेली अमावस के पाट जात्रा की रस्म से हुआ
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बस्तर में प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी दशहरे का आगाज हरेली अमावस के पाट जात्रा की रस्म से हुआ-
राजा ध्रुव जगदलपुर – बस्तर में प्रत्येक वर्ष की तरह इस साल भी दशहरे का आगाज हरेली अमावस को पाट जात्रा की रस्म से हो चुका है। बस्तर में बीते छः सौ साल से दशहरा मनाया जा रहा है। यहां के दशहरा कुल 75 दिनों तक चलता है जो कि पुरे विश्व का सबसे लंबा दशहरा है।
दशहरा में पूरे भारत में जहां रावण के पुतले जलाये जाने की परंपरा है वही बस्तर रावण के पुतले ना जलाये जाकर दशहरा में रथ खींचा जाता है।बस्तर दशहरा 1408 ई से आज तक बड़े ही उत्साह एवं धुमधाम से जगदलपुर शहर में मनाया जा रहा है। इसमें प्रत्येक पुरे बस्तर के लाखो आदिवासी सम्मिलित होते है। दशहरा की रस्म 75 दिन पूर्व पाट जात्रा से प्रारंभ हो जाती है। दशहरे में दो मंजिला रथ खींचा जाता है। जिसमें मां दंतेश्वरी का छत्र सवार रहता है। दंतेवाड़ा से प्रत्येक वर्ष माईजी की डोली दशहरा में सम्मिलित होने के लिये जाती है।
बस्तर दशहरा बस्तर का सबसे बड़ा पर्व है। इसी पर्व के अंतर्गत प्रथम रस्म के तौर पर पाटजात्रा का विधान पुरा किया गया है। बस्तर दशहरा निर्माण की पहली लकड़ी को स्थानीय बोली में टूरलु खोटला एवं टीका पाटा कहते हैं।बस्तर दशहरे के लिए तैयार किए जाने वाली रथ निर्माण की पहली लकड़ी दंतेश्वरी मंदिर के सामने ग्राम बिलौरी से लाई गई।परंपरानुसार विधि.विधान के साथ रथ निर्माण करने वाले कारीगरों एवं ग्रामीणों के द्वारा माँझी चालाकी मेम्बरीन के साथ बस्तर सांसद दीपक बैज की मौजूदगी में पूजा विधान एवं बकरे की बलि के साथ पाट जात्रा की रस्म संपन्न हुई।
पाट जात्रा पूजा विधान में झार उमरगांव बेड़ा उमरगांव के कारीगर जिनके द्वारा रथ का निर्माण किया जाना है। वे अपाने साथ रथ बनाने के औजार लेकर आते है तथा रथ बनाने की पहली लकड़ी के साथ औजारों की पूजा परंपरानुसार