जेल के सिपाही ने सरकारी जमीन पर किया कब्जा, मंदिर निर्माण के चंदे से बनाया लाखों का मकान,
जेल के सिपाही ने सरकारी जमीन पर किया कब्जा, मंदिर निर्माण के चंदे से बनाया लाखों का मकान, पति पत्नी दोनों सरकारी कर्मचारी, पति को आबंटित हुआ सरकारी क्वार्टर, सरकारी क्वाटर को दिया किराये पर, शासन से ले रहे किराया भाड़ा पार्ट- 1
डोंगरगढ- आज हम आपको डोंगरगढ उप जेल के ऐसे सिपाही की काली करतूतों से अवगत कराने जा रहे हैं जो पिछले कई वर्षों से उप जेल डोंगरगढ में पदस्थ रहकर भ्रष्टाचार का साम्राज्य फैला रहा है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार तिलकचंद कचलरिया उप जेल डोंगरगढ में जेल सिपाही के पद पर कार्यरत हैं लेकिन एक शासकीय कर्मचारी होते हुए भी वार्ड नं 21 में जेल लाईन से लगी हुई सरकारी जमीन लगभग 4 हजार स्क्वेयर फिट में ना सिर्फ अवैध रूप से कब्जा किया बल्कि बिना अनुमति के लाखों रुपए का मकान निर्माण भी कर लिया साथ ही कब्जा को आने जाने के रास्ते की बढाकर कार रखने का पोर्च बनवा लिया है जिसके कारण वाहनों का आवागमन बाधित हो रहा है।
सूत्र बताते है कि तिलकचंद कचलरिया एक शासकीय कर्मचारी है और इनकी पत्नी देवकी कचलरिया प्राथमिक शाला कण्डरापार डोंगरगढ में शिक्षिका के पद पर कार्यरत है लेकिन दोनों शासकीय कर्मचारी होने के बाद भी सरकारी घास जमीन पर कब्जा किये हैं। तिलकचंद कचलरिया द्वारा उक्त घास जमीन पर अपने पिताजी का कब्जा बताया जाता है जबकि इनके पिता यहाँ रहते ही नहीं है बल्कि इनके पैतृक गांव बड़गांव तहसील लांजी जिला बालाघाट मध्यप्रदेश में रहते हैं जहां पर इनके व इनके पिता के नाम से कच्चा, पक्का मकान व कई एकड़ खेती, प्लाट है इसके बावजूद डोंगरगढ में सरकारी जमीन पर कब्जा कर मकान निर्माण करवाया गया है जो नियम विरूद्ध है क्योंकि जब तिलकचंद व उनके पिता के नाम मध्यप्रदेश में मकान व जमीन है तो छत्तीसगढ़ में उनका कब्जा अमान्य है तो फिर किस अधिकार से कब्जा किया गया है।
जेल सिपाही तिलकचंद कचलरिया द्वारा वर्ष 2002 में 45 हजार रुपये भूखंड क्रय करने के लिए पार्ट फायनल निकाला गया था किंतु भूखंड क्रय नहीं किया गया जिसका प्रमाण वार्षिक अचल संपत्ति में मिलता है क्योंकि वार्षिक अचल संपत्ति विवरण में भूखंड खरीदी का कही उल्लेख नहीं है।इससे यह प्रतीत होता है कि या तो पार्ट फायनल फर्जी तरीके से निकाला गया है या फिर भूखंड खरीदी की जानकारी शासन से छुपाई गई है दोंनो ही बातें शासन के विपरीत है।
पति पत्नी दोनों को आबंटित हुआ है सरकारी क्वार्टर- सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जेल सिपाही कचलरिया को जेल लाईन डोंगरगढ़ में सरकारी क्वार्टर आबंटित हुआ है लेकिन उसके बाद भी यह वहां नहीं रहते बल्कि कब्जा की हुई जमीन में मकान बनाकर रहते हैं जबकि नियम के अनुसार जेल लाईन के बाहर रहने के लिए अनुमति लेना पड़ता है बिना अनुमति के ही रह रहा है। चूंकि दोनों पति पत्नी शासकीय कर्मचारी है इसलिए दोनों ने शासन को गुमराह किया है और किराये के मकान में रहते हैं दर्शाकर प्रति माह किराया भाड़ा ले रहे हैं जबकि दोनों किराये के मकान में ना रहकर अवैध कब्जा वाली जमीन पर बने मकान में एक साथ रहते हैं। यहां पर हैरानी वाली बात तो यह है कि जब शासन का नियम है कि जब पति पत्नी दोनों शासकीय कर्मचारी हो तो किसी एक को ही किराया भाड़ा दिया जायेगा लेकिन उसके बावजूद जेल विभाग व शिक्षा विभाग दोनों को अंधेरे में रखकर दोनों मकान किराया शासन से ले रहे हैं और जेल सिपाही को आबंटित सरकारी क्वार्टर को किराये में देकर अलग किराया वसूला जा रहा है।
मंदिर निर्माण के नाम पर वसूला लाखों रुपये का चंदा, चंदे में किया गबन और बनाया आलीशान मकान- सूत्रों ने बताया कि जेल सिपाही कचलरिया ने फर्जी रसीद छपवाकर जेल लाईन में शिव मंदिर निर्माण के नाम पर ना सिर्फ लाखों रुपये का चंदा इकट्ठा किया बल्कि उसी चंदे में गबन कर सरकारी जमीन पर लाखों रुपये का मकान बनाया। इन्होंने फर्जी रसीद छपवाकर जेल विभाग के कर्मचारियों, डोंगरगढ शहर, आसपास के गांव सहित बालोद, बेमेतरा, राजनांदगांव व दुर्ग जेल के स्टॉफ से भी चंदा इकट्ठा किया जिसकी रसीद भी कई दानदाताओ को नहीं दी गई। इसके अलावा मंदिर निर्माण के लिए भी सरकारी घास जमीन का उपयोग बिना किसी अनुमति के किया गया साथ ही मंदिर निर्माण के लिए कोई समिति भी नहीं बनाई गई और स्वंम ही सर्वेसर्वा बनकर फर्जी तरीके से चंदा वसूली करता रहा। लाखों रुपये चंदा इकट्ठा होने के बाद भी मंदिर का निर्माण किसी ठेकेदार या मजदूर से नहीं बल्कि जेल के ही कैदियों से करवाया इसकी पुष्टि 2005 से कार्यरत रहे कर्मचारियों से हो सकती है। कुछ दानदाताओ के द्वारा मंदिर निर्माण के लिए सामान भी उपलब्ध करवाया गया था उसे भी इनके द्वारा बेच दिया गया। आखिर एक शासकीय कर्मचारी ने चंदा
कैसे वसूला और सरकारी जमीन पर मंदिर कैसे बना लिया गया, चंदे के पैसे का कोई हिसाब किताब नहीं मिलना बड़े पैमाने पर किये गए भ्रष्टाचार की ओर इशारा करता है जिसकी सूक्ष्मता से जांच की जाये तो बड़े खुलासे हो सकते हैं। जांच के पूर्व हो स्थानांतरण- चूंकि उक्त सिपाही 1993 से उप जेल डोंगरगढ़ में पदस्थ है लगभग 15 वर्षो बाद वर्ष 2008 -09 में एक डेढ़ साल के लिए केन्द्रीय जेल दुर्ग में स्थानांतरण किया गया था लेकिन उसके बाद आधिकारिक सरक्षण के चलते वापस डोंगरगढ आ गया। इसलिए इसके उप जेल डोंगरगढ़ के सम्पूर्ण पदस्थापना अवधि की जांच भी कराई जानी चाहिए। यदि वास्तविक जांच करनी है तो उक्त सिपाही को पहले इस जेल से हटाकर अन्यत्र जेल भेजा जाए। जिससे ये जांच को प्रभावित न कर सके।