देश दुनिया

आखिर क्यों PM नरेंद्र मोदी ने कांग्रेसी नरसिंह राव के कसीदे गढ़ें? | – News in Hindi

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने अपने दूसरे कार्यकाल के मन की बात की 13वीं कड़ी में कांग्रेस नेता और देश के पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव की खूब तारीफ की. वैसे तो 28 जून को उनका जन्मदिन होता है, लेकिन इस बार मौका था उनके जन्म शताब्दी वर्ष का. और नरेंद्र मोदी को जानने वाले इससे जरूर वाकिफ होंगे कि मोदी अपने हाथ से कोई मौका नहीं जाने देते. मन की बात कार्यक्रम में मोदी ने नरसिंह राव के लिए जो कहा उसे पढ़ने-सुनने में तथ्यात्मक तौर से हर बात सही है, लेकिन हर शब्द के पीछे राजनैतिक निहातार्थ भी हैं. ट्विटर पर साझा किए गए मोदी के मन की बात की 30 स्लाइड में चार तो सिर्फ नरसिंह राव पर केंद्रित है. निश्चित तौर से कांग्रेस के पूर्व नेता की तारीफ कुछ लोगों के मन में कौतूहल भी पैदा कर सकती है, लेकिन यह कोई पहला मौका नहीं है जब भगवा खेमे से नरसिंह राव की तारीफ हुई हो.

अगर 2005 में तत्कालीन संघ प्रमुख के.एस. सुदर्शन का इंटरव्यू याद करेंगे तो तस्वीर साफ हो जाएगी. उस इंटरव्यू में आजाद भारत के तीन बेहतरीन नेताओं के तौर पर सुदर्शन ने जिन नामों का जिक्र किया था, उसमें उन्होंने परिवार से इंदिरा गांधी तो परिवार के बाहर से नरसिंह राव को बेहतरीन बताया था. तीसरे नेता के तौर पर तब उन्होंने भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी का जिक्र किया था.

आखिर मोदी ने राव के लिए कहा क्या
मोदी के ‘मन की बात’ के मायने क्या है, उससे पहले मोदी ने राव के लिए क्या कहा, उसका जिक्र करना जरूरी है. मोदी ने ‘मन की बात’ में कहा- “आज 28 जून को भारत अपने एक पूर्व प्रधानमंत्री को श्रद्धांजलि दे रहा है, जिन्होंने नाजुक दौर में देश का नेतृत्व किया था. हमारे पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव की जन्म शताब्दी वर्ष की शुरुआत का दिन है. जब हम राव के बारे में बात करते हैं तो स्वाभाविक रूप से राजनेता के रूप में उनकी छवि हमारे सामने उभरती है. वे अनेक भाषाओं को जानते-बोलते थे. वे इतिहास को भी अच्छी तरह समझते थे. बहुत ही साधारण पृष्ठभूमि से उठकर उनका आगे बढ़ना, शिक्षा, सीखने की प्रवृत्ति और उनकी नेतृत्व क्षमता स्मरणीय है. मेरा आग्रह है कि जन्म शताब्दी वर्ष में उनके जीवन और विचारों के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने का प्रयास करें.’

मोदी ने आजादी के आंदोलन में राव की भूमिका का भी जिक्र किया, “किशोरावस्था में हैदराबाद के निजाम ने वंदे मातरम गाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया तो महज 17 साल की उम्र में उन्होंने आंदोलन कर दिया. छोटी उम्र से ही वे अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने में आगे थे. वे एक ओर भारतीय मूल्यों में रचे-बसे थे तो दूसरी ओर उन्हें पाश्चात्य साहित्य और विज्ञान का भी ज्ञान था, वे भारत के सबसे अनुभवी नेताओं में से एक थे, लेकिन उनके जीवन का एक और पहलू भी है, और वो उल्लेखनीय है, हमें जानना भी चाहिए.”

लद्दाख मसले से उपजे माहौल से जुड़ी है ‘मन की बात’
मोदी के ‘मन की बात’ को समग्रता में देखें तो मौजूदा दौर में राव के बहाने उन्होंने सीधे कांग्रेस को निशाने पर लिया है. लद्दाख में भारत-चीन सैनिकों की झड़प में 20 वीर सपूतों की शहादत पर पहले दिन ही सियासत शुरू हो गई थी, जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सवाल उठाया था. जिसके बाद से कांग्रेस के कई नेता और फिर कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी सरकार पर सवाल उठाए थे. कांग्रेस की ओर से आरोप लगा कि मोदी सरकार ने चीन की आक्रामक नीति के आगे सरेंडर कर दिया है. लेकिन जब 19 जून को इस मसले पर सर्वदलीय बैठक हुई तो नरसिंह राव सरकार में रक्षा मंत्री रह चुके एनसीपी नेता शरद पवार ने कांग्रेस को आइना दिखाया था.राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े ऐसे संवेदनशील मसलों पर राजनीति नहीं करने की नसीहत भी दी थी. पवार ने राहुल गांधी की ओर से लगाए गए मोदी सरकार पर आरोपों पर न सिर्फ कड़ा एतराज जताया था. कांग्रेस नेतृत्व को याद दिलाया था कि 1962 में चीन को कैसे 45000 वर्ग किमी जमीन कब्जाने दिया गया था, यह नहीं भूलना चाहिए. जब राव प्रधानमंत्री थे तब पवार ने रक्षा मंत्रालय की कमान संभाली थी और राव भी पहले रक्षा मंत्री की भूमिका निभा चुके थे.

‘परिवार’ बनाम ‘परिवार से बाहर की कांग्रेस’ की पटकथा तैयार
कांग्रेस के मौजूदा नेतृत्व ने जिस तरह से भारत-चीन मसले पर प्रधानमंत्री मोदी को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की, उसे राव की तारीफ के जरिए परिवार की सीमित सोच का हिस्सा साबित करना भी राजनीतिक मकसद के तौर पर दिखता है. मोदी और भाजपा लगातार यह कहते रहे हैं कि परिवार के बाहर के नेतृत्व को नेहरू-गांधी खानदान ने कभी कबूल नहीं किया. इसलिए कांग्रेस राव को कभी याद भी नहीं करती है, जबकि उन्होंने नाजुक परिस्थिति में कांग्रेस और देश का नेतृत्व संभाल अल्पमत की सरकार को भी पांच साल तक अपनी कुशलता से चलाया था.

मोदी ने जब राव की योग्यता और उनके जिक्र पर जेहन में स्वाभाविक रूप से राजनेता की छवि उभरने की बात की, तो उनका राजनीतिक संदेश मौजूदा कांग्रेस नेतृत्व की तरफ था. जब मोदी ने राव के बारे में लोगों को ज्यादा जानने की अपील की तो उसका मकसद साफ था कि परिवार ने राव जैसे नेता के साथ किस तरह से दोयम दर्जे का व्यवहार किया, उसे उभारना था.

राव के आजादी के आंदोलन में शामिल होने और अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करने की इच्छाशक्ति के जरिए मोदी ने राष्ट्रीयता के मुद्दों पर कैसे एकजुटता के साथ देश के लिए खड़ा हुआ जाता है, यह भी राव से ही सीखने का संदेश दिया. नरसिंह राव के अनुभवों का जिक्र करते हुए मोदी ने याद दिलाया कि कैसे उन्होंने अनुभव से देश को नई दिशा में ले जाने की कोशिश की थी, लेकिन परिवार ने उनके योगदान को न सिर्फ भुलाया, अंतिम समय में भी देश के पूर्व प्रधानमंत्री को उचित सम्मान नहीं मिला. उनके पार्थिव शरीर को लेकर भी जिस तरह से व्यवहार हुआ था, उसका जिक्र उस समय मीडिया की सुर्खियों में रहा था.

मोदी ने इसका जिक्र स्पष्ट तौर पर नहीं किया, लेकिन इतना जरूर कहा कि उनके जीवन का एक और पहलू भी है जो उल्लेखनीय है और सबको जानना चाहिए. राव के समय हुए आर्थिक सुधारों की नई दिशा के अलावा कांग्रेस के परिवार की ओर से जिस तरह का व्यवहार किया गया, उसे उभारकर मोदी ने आने वाले समय में राजनीतिक लड़ाई का आधार दे दिया है. 28 जून को जन्म शताब्दी वर्ष की शुरुआत हुई है. यानी आने वाले एक साल तक अब नरसिंह राव की राजनीतिक जीवन यात्रा मोदी और भाजपा के जुबां पर होगी तो कांग्रेस के लिए निश्चित तौर से यह स्थिति असहज करने वाली होगी.

अब अगर बदली हुई नए युग की भाजपा की रणनीति को समझना हो तो यह देखना होगा कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह की कार्यशैली क्या है? मोदी जब गुजरात में संगठन मंत्री के तौर पर काम देख रहे थे तब भाजपा वहां मजबूत नहीं थी. लेकिन उन्होंने बेहद चतुराई के साथ कांग्रेस की मजबूती पर फोकस करने की बजाए संगठनात्मक कमजोरी और समाज के उन वर्ग पर फोकस करना शुरू किया था जिसकी परवाह कांग्रेस नहीं करती थी. इस तरह से गुजरात में भाजपा ने संगठन का आधार तैयार करना शुरू किया था. बाद में इस तैयारी में मोदी ने अपने सहयोगी के तौर पर मौजूदा गृह मंत्री अमित शाह को जोड़ा था. जिसने गुजरात में ऐसा आधार खड़ा किया कि आज वह भाजपा की प्रयोगशाला कही जाने लगी है.

शायद मोदी की रणनीति और मौजूदा दौर में स्वीकार्यता को कांग्रेस के शशि थरूर, जयराम रमेश, अभिषेक मनु सिंघवी, मिलिंद देवड़ा जैसे कई नेताओं ने भांप लिया है. अगर अनुच्छेद 370 हटाने के समय कांग्रेस नेताओं के बयान को याद करेंगे तो अंतर्विरोध स्पष्ट तौर पर सामने आया था. मोदी को हमेशा ‘खलनायक’ की तरह बताने की कांग्रेस नेतृत्व की नीति को लेकर कई नेताओं ने गलत बताया था. थरूर ने तो कहा था कि जब मोदी कुछ अच्छा करते हैं तो उनकी तारीफ भी की जानी चाहिए.

लेकिन कांग्रेस ने जब भी राष्ट्रीयता से जुड़े मुद्दों पर मोदी को घेरने की कोशिश की है, उसे मुंह की खानी पड़ी है. कांग्रेस को अब मंथन करना होगा कि सिर्फ विरोध के लिए विरोध उसके लिए घातक साबित हो रहा है. मोदी-शाह की जोड़ी आक्रामकता के साथ इसका राजनीतिक फायदा उठाना बखूबी जानती है.

दरअसल, मोदी-शाह की कार्यशैली अपने विरोधियों की मजबूती को कमजोर करने की बजाए उसकी कमजोरी को अपनी मजबूती बनाने पर जोर देने की रही है. नरसिंह राव पर मोदी के ‘मन की बात’ निश्चित तौर से फिलहाल इसी रणनीतिक कड़ी के तौर पर दिख रही है, जिसका जवाब देना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा, जो हमेशा से इतिहास की गलतियों का ठीकरा परिवार से बाहर के कांग्रेसी नेताओं पर फोड़ती रही है.

ब्लॉगर के बारे में

संतोष कुमार वरिष्ठ पत्रकार

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। रामनाथ गोयनका, प्रेस काउंसिल समेत आधा दर्जन से ज़्यादा पुरस्कारों से नवाज़ा जा चुका है। भाजपा-संघ और सरकार को कवर करते रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव पर भाजपा की जीत की इनसाइड स्टोरी पर आधारित पुस्तक “कैसे मोदीमय हुआ भारत” बेहद चर्चित रही है।

और भी पढ़ें



Source link

Related Articles

Back to top button