आदिवासियों की जमीन अपने कामगारों के नाम पर खरीद रहे गैर आदिवासीयों पर हो कार्यवाही- कृष्ण कुमार
28 june, 2020/सबका संदेश
कोंडागाँव/केशकाल। केशकाल के पूर्व विधायक कृष्ण कुमार ध्रुव ने आदिवासी की जमीन गैर आदिवासियों द्वारा अपने नौकर एवं विश्वसनिय ब्यक्ति नाम से खरीदी बिक्री करने पर गहरा रोष जाहिर करते इस पर पैनी निगाह रखने जांच एवं कार्रवाई की मांग किया है।
पूर्व आदिवासी विधायक ने जारी किये प्रेस विज्ञप्ति में यह उल्लेखित किया है कि छग सरकार के द्वारा आदिवासियों के हक एवं हितरक्षा के मूल मंशा से सभी रजिष्टार को इस आशय का पत्र प्रेषित कर यह आगाह किया गया है कि संपन्न गैर आदिवासी अपने आदिवासी नौकर के नाम से आदिवासी की जमीन खरीदने बेचने का काम कर रहे हैं। जिस पर अंकुश लगाया जाये, परन्तु इस पर गंभीरता से गौर नहीं किया जा रहा है। बगैर जांच पड़ताल के ही नहीं बल्कि यह हकिकत भलिभांति जानते हुए भी रजिष्टार खरिदी बिक्री संपन्न कराकर अपना सहयोग प्रदान कर रहे हैं।
श्री ध्रुव ने केशकाल तहसील कार्यालय के आसपास ही कई आदिवासी के सड़क किनारे की किमती जमीन गैर आदिवासियों के द्वारा अपने नौकर एवं कृपापात् खासमखास के नाम से खरीदी करने और बेचे जाने का दावा किया है। पूर्व विधायक का कहना है कि केशकाल के कुछ नामी गिरामी नव धनाढ्य गैर आदिवासी जमीन की बढ़ती उपयोगिता एवं तेजी से बढ़ते किमत का पूर्वानुमान लगाकर आदिवासियों के सड़क किनारे की जमीनों को आदिवासी के नाम खरीदी कर लेने और बिक्रि करने का धंधा राजस्व विभाग के अधिकारियों की जानकारी एवं शह पर कर रहे हैं। तहसील कार्यालय से चंद दूरी पर स्थित बोरगांव बटराली एवं आसपास के गांव में सड़क किनारे आदिवासियों की उपयोगी किमती डायवर्टेड/परिवर्तित भूमि एवं कृषि भूमि की जमीन खरीदी बिक्री कर लिया गया है। जनसामान्य को भी यह भलिभांति मालूम है कि यह जमीन आदिवासी के नाम पर फलां सेठ और फलां नेता ने खरीदा है। आदिवासी की जमीन आदिवासी के नाम से चल रहे खेल का खुलासा करते बताया है कि ग़रीबी रेखा के नीचे जीवन गुजर बसर कर रहे गरीब आदिवासी के खाते में अचानक जमीन रजिस्ट्री के एक दो दिन पहले उतना ही पैसा डाल दिया जाता है जितना उक्त जमीन का बाजार मूल्य एवं खरिदी मूल्य रजिष्ट्री में दर्शाना जरुरी होता है और रजिष्ट्री राशि भुगतान हो जाने के बाद फिर वो आदिवासी और उसका बैंक खाता गरीब हो जाता है। कुछ दिनों बाद जब उस जमीन का कोई संपन्न आदिवासी खरीददार मिल जाता है और जमीन का रजिष्ट्री हो जाता है तब रजिष्ट्री में दर्शित बाजार मूल्य का चेक प्राप्त करके मात्र खाते में राशि जमा होते तक वो आदिवासी महज एक दो दिन के लिए लखपति हो जाता है। क्योंकि आदिवासी के नाम से आदिवासी की जमीन खरीदने बेचने का गोरखधंधा करने वाला गैर आदिवासी खरीदने के लिए जिस तरह से रजिष्ट्री के एक दो दिन पहले लाखों रूपया दिलेरी से आदिवासी के नाम से डाल दिये रहता है उसी तर्ज पर जमीन बिकते ही पैसा निकाल लेता है और बदले में बेचारे आदिवासी को शाब्बासी देकर और बस कुछ पैसा देकर चंद मिनट अपनी लक्झरी कार में पास बैठाकर अपने एहसान तले दबाकर उपकृत कर देता है। बैंक के खाते में अचानक लाखों का आसामी बनकर लाखों की जमीन खरीद लेने और जमीन बेचकर लखपति बनने के दो दिन बाद फिर फकिर याने गरीब बन जाने वाले आदिवासी को यह एहसास भी नहीं हो पाता की वो इस तरह का कृत्य करके अपने ही आदिवासी समाज के हित एवं हक की रक्षा के लिए बनाये गये नियम कानून में सेंध लगाकर अपने ही आदिवासी समाज के हक एवं हित का गला घोंटने का दूरगामी दुष्परिणामी अक्षम्य अपराध जाने अनजाने में कर रहा हैं। श्री ध्रुव ने ग्राम बटराली के खसरा न.3/188 रकबा 0.4050हैक्टेयर की भूमि के खरीद फरोख्त का और बोरगांव के खसरा न.19 में से राष्ट्रीय राजमार्ग 30के पूर्व स्थित भूमि का बडेराजपुर ब्लाक के एक गरीब आदिवासी के नाम से खरीदी और खरीदी के चंद दिनों के भीतर बिक्रि की जांच होने से आदिवासी के आड़ में चल रहे गोरखधंधे का खुलासा हो जाने का दावा किया है। श्री ध्रुव ने इसी कड़ी में बोरगांव के उपकरण खसरा न.19 के एक टूकडे का 15 जून को हुये रजिष्ट्री पर सवाल उठाते हुते कहा है कि अचानक लाखों रूपये की जमीन खरीदी करने वाले आदिवासी के नाम से कोई और ही जमीन का मालिक बन बैठा है। बोरगांव में आई टी आई जाने के मार्ग किनारे खसरा नं.77/82 रकबा लगभग 60 डिसमिल जमीन का भी बेनामी खरीदी कर उस पर बेनामी कब्जा आज भी कायम है। पूर्व विधायक का कहना है कि यह तो महज कुछ उदाहरण भर है इसी तरह का अनेकों मामला है जिस पर भी निष्पक्ष जांच और परिणांमजनक कार्यवाही जरूरी है। पूर्व विधायक ने अपने आदिवासी समाज के सहजता सरलता एवं भोलेपन पर अफसोस जाहिर व्यक्त करते कहा कि यही खासियत अब अभिशाप बन रहा है। लोग समाज के लोगों के भोलेपन का लाभ उठाकर चुस्त चालाक शातिर नवधनाढ्य गैर आदिवासी उठाकर मालामाल होते जा रहे हैं और हमारे आदिवासी समाज के लोगों की हालत दिन ब दिन खराब होते जा रही है। सरकारी महकमा एवं हमारे समाज के शुभचिंतक भी सच को जानते हुये मौन साधे हुये हैं यह बड़ी विडंबना है।