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Opinion: चुनौती को अवसर में बदलता मोदी मंत्र कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन – Modi 2.0: Prime minister Narendra Modi turned each challenge into opportunities | – News in Hindi

भारत जब आजादी की 74वीं वर्षगांठ मना रहा होगा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लालकिले की प्राचीर से देश को संबोधित कर रहे होंगे उससे पहले ही उनके नाम एक और रिकाॅर्ड बन चुका होगा. भाजपा और संघ पृष्ठभूमि के वे एकमात्र नेता होंगे जो सबसे अधिक समय तक प्रधानमंत्री की कुर्सी पर होने का रिकॉर्ड बनाएंगे. इससे पहले अटल बिहारी वाजपेयी 13 दिन, 13 महीने और पूरे पांच साल के कार्यकाल को मिलाकर कुल 2268 दिन प्रधानमंत्री की कुर्सी पर रहे, जबकि अपने दूसरे कार्यकाल का पहला साल पूरा कर चुके मोदी 2195 दिन से इस पद पर हैं, लेकिन 12 अगस्त को वे वाजपेयी की बराबरी कर लेंगे. लेकिन एक दीर्घकालिक दृष्टि के साथ दूसरे कार्यकाल के पहले साल की उपलब्धियों को मोदी सरकार जनता के सामने रख चुकी है. अगर उसके साल दर साल बदलते नारे को ही देखें तो मोदी की सोच ही नहीं, सरकार की पूरी रणनीति की ओर इशारा कर देते हैं. इस साल सरकार ने आत्मनिर्भर भारत को अपना थीम बनाया और संदेश दिया कि जब आप ये जंग जीतेंगे, तभी देश जीतेगा.

यानी कोरोना वैश्विक महामारी से उपजी चुनौती को मोदी ने किस तरह अवसर में बदलने और उसमें जनता की भागीदारी सुनिश्चित की है, उसे समझना होगा. मोदी सरकार ने जश्न मनाने के बजाए अपने छठे साल की उपलब्धियों को जनता तक पहुंचाने के विभिन्न माध्यमों का सहारा लिया है. जिसमें सबसे अहम- प्रधानमंत्री का देश की जनता के नाम पत्र है. जिसमें उन्होंने कोरोना के खिलाफ मुहिम में विकसित देशों के मुकाबले भारत की बेहतर स्थिति का जिक्र तो किया ही, मजदूरों और अन्य लोगों को हुई परेशानियों का भी जिक्र खुले मन से किया है. लेकिन संकट की इस घड़ी में बाकी जिंदगी को सुकुन भरा बनाने के लिए होने वाली थोड़ी परेशानी से इनकार नहीं किया जा सकता. कोरोना पर भारत की जंग की वैश्विक सराहना तो हुई ही, मोदी ने देश के साथ-साथ दुनिया के देशों के साथ भी समन्वय कर लीडरशिप की भूमिका संभाल ली. उनकी ही पहल पर सार्क, जी-20, गुट निरपेक्ष देशों की वर्चुअल मीटिंग हुई और विश्व कोरोना के खिलाफ जंग में एकजुट हुआ. इस चुनौती को अवसर में बदलने की इच्छाशक्ति के साथ ही मोदी ने इस साल का नारा कोरोना संकट को ध्यान में रखते हुए गढ़ा, जिसके निहितार्थ आत्मनिर्भरता की ओर ले जाना है. अगर मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के पांच साल के नारों को देखेंगे तो समझ आएगा कि किस तरह निरंतरता बनाए रखी गई है.

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मोदी सरकार ने अपने छठे साल की उपलब्धियों को जनता तक पहुंचाने के पत्र लिखा है.

मोदी सरकार ने विकास की गति और संदेश के साथ हर साल नया नारा गढ़ायह निरंतरता ठीक उसी तरह है जैसे एक मकान की नींव, दीवार, छत, प्लास्टर और रंगाई-पुताई तक का काम होता है. अमूमन नारों को लेकर एक धारणा होती है कि उसे आकर्षक बनाया जाए जो लोगों की जुबां पर चढ़े. लेकिन मोदी सरकार ने विकास की गति और संदेश के साथ हर साल नया नारा गढ़ा. 2015 में सरकार का एक साल पूरा होने पर काम शुरू करने का संदेश दिया- साल एक, शुरुआत अनेक. दूसरे साल 2016 में उस शुरुआत से देश में बदलाव और विकास की गति बढ़ने का संदेश दिया- मेरा देश बदल रहा है, आगे बढ़ रहा है. तीसरे साल 2017 में नोटबंदी के फैसले के बाद से जिस तरह सवाल उठ रहे थे, लेकिन नोटबंदी के बाद ओडिशा पंचायत चुनाव में जीत और उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की ऐतिहासिक जीत ने सुकून दिया तो नारा दिया- साथ है, विश्वास है. हो रहा विकास है. चौथे साल 2018 में जब लाभ से जुड़ी सामाजिक आर्थिक योजनाएं गति पकड़ चुकी थी और इसी साल वामपंथी गढ़ त्रिपुरा में भाजपा ने बड़ी जीत हासिल की तो नया नारा बना- साफ नीयत, सही विकास. 2019 का साल चुनावी था और अधिसूचना से पहले जिस तरह देश में पुलवामा ने माहौल बदला और मोदी सरकार ने बालाकोट में एयर स्ट्राइक किया उसका असर था नामुमकिन अब मुमकिन है जो एक ऐसा नारा बना जिसने देश की जनता का भरोसा नरेंद्र मोदी के प्रति बढ़ाया. जिसका नतीजा था कि 2019 के चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा को 2014 के मुकाबले ज्यादा बड़ा बहुमत मिला.

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ बात करते पीएम मोदी. (File Photo)

सरकार ने एक साल में लिए ताबड़तोड़ फैसलेइस बहुमत ने राजनैतिक फिजा ही नहीं, विचारधारा को भी बड़ी मजबूती दी थी. जिसका नतीजा हुआ कि सरकार ने वह सारे फैसले ताबड़तोड़ लिए जिसके लिए जनसंघ और फिर भाजपा आजादी के बाद से ही लड़ती आ रही थी. जम्मू-कश्मीर मेें लागू आर्टिकल 370 को खत्म कर एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान की अवधारणा को पूरी तरह से खत्म कर दिया. जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश और लद्दाख को अलग केंद्र शासित राज्य बनाना, मुस्लिम बहुल पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान जैसे पड़ोसी देशों में गैर मुस्लिमों को अत्याचार से बचाने के लिए भारत में नागरिकता देने के प्रावधान में लचीलापन लाने के लिए नागरिकता कानून में संशोधन जिसकी मांग वाजपेयी सरकार के समय से संघ परिवार करता आ रहा था, ट्रिपल तलाक रोकने का कानून बनाना और सबसे अहम अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करना, मोदी 2.0 की बड़ी उपलब्धियों में शामिल है.

मोदी सरकार को सीएए पर भारी विरोध का भी सामना करना पड़ा
हालांकि इस बार मोदी सरकार को सीएए पर भारी विरोध का भी सामना करना पड़ा. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की कार्यशैली की बारीकियों को जाने बिना उनके राजनैतिक कदमों के निहितार्थ को समझना मुश्किल है. प्रधानमंत्री मोदी 17 मई 2019 को सार्वजनिक तौर पर कह चुके हैं कि कोई भी काम बिना रणनीतिक सोच के नहीं करते. यह बात सिर्फ सच नहीं, तथ्य से भी लैस है. मोदी की कार्यशैली का अहम हिस्सा है कि नतीजों की परवाह किए बगैर निर्णायक तरीके से कदम उठाना, भले भविष्य में लिखा जाने वाला इतिहास उसका जो भी आकलन करे. किसी जीत से अति उत्साह में नहीं आना तो हार से हताश नहीं होना मोदी-शाह की जोड़ी की नीति रही है. आलोचनाओं से बेपरवाह रहने वाली मोदी-शाह की जोड़ी की खासियत गुजरात से ही समय आने पर अपने काम से माकूल जवाब देने की रही है. यही वजह है कि गुजरात में मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी पर तमाम हमले हुए लेकिन विचलित होने की बजाए उन्होंने अपना काम इस तरह किया कि उसे आज मोदी की सफलता का सूत्र भी कहा जाता है.

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प्रधानमंत्री मोदी के दूसरे कार्यकाल का पहला साल पूरा हो गया है.

लॉकडाउन में 21 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज का किया एलान
अब जब दूसरे कार्यकाल के पहले साल में ही कोरोना जैसी महामारी ने दस्तक दी तो मोदी ने उन तमाम आशंकाओं को निर्मूल साबित कर दिया कि इस आपदा को घनी आबादी वाला भारत झेल नहीं पाएगा. अर्थव्यवस्था को लेकर पहले से ही चली आ रही आशंकाओं के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी ने लॉकडाउन जैसे कठोर फैसले लिए, तो लॉकडाउन से मंद आर्थिक गति को रफ्तार देने के लिए 21 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज का एलान भी किया. इस चुनौती को अवसर में बदलते हुए भारत को आत्मनिर्भरता की ओर ले जाने का एलान कर भविष्य की नीतिगत पटकथा भी बता दी. लॉकडाउन में जब लोग घरों में बंद थे और गरीब इस संकट से जूझ रहा था तब सरकार ने तो नीतिगत फैसले लिए ही, भाजपा और संघ परिवार ने जिस तरह से सेवा का संकल्प हाथ में लिया, उसे राजनीति के चक्कर में नकारा नहीं जा सकता. संघ के पांच लाख से ज्यादा स्वयंसेवक 85 हजार से ज्यादा जगहों पर मजदूरों और जरुरतमंदों की सेवा में लगे थे जिसमें भोजन से लेकर अन्य सभी तरह की मदद करना शामिल था. भाजपा ने भी 8 लाख से ज्यादा कार्यकर्ताओं की मदद से 19 करोड़ फूड पैकेट, 5 करोड़ राशन किट, मास्क आदि बांटे। यानी संकट की इस घड़ी में भी भाजपा सक्रिय थी.

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मोदी सरकार ने लॉकडाउन से मंद आर्थिक गति को रफ्तार देने के लिए 21 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज का एलान भी किया.

जीजीविषा और दृढ़ इच्छाशक्ति है, मोदी-शाह की नीति का अहम सूत्र
दरअसल भाजपा और संघ परिवार आज इस मुकाम पर है तो निश्चित तौर से इसमें काम करने की जीजीविषा और दृढ़ इच्छाशक्ति है, मोदी-शाह की नीति का अहम सूत्र यह भी है कि संगठन हो या सरकार, उसमें ठहराव नहीं होना चाहिए बल्कि नदी के बहाव की तरह गतिमान होना चाहिए. इस नीति ने ही भाजपा और विचार परिवार की ऐसी संगठनात्मक मशीनरी खड़ी कर दी है कि पार्टी ने पहला साल पूरा होने के अभियान के तहत आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को लेकर कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते हुए 10 करोड़ घरों तक व्यक्तिगत संपर्क करने का लक्ष्य रखा है. मंडल स्तर पर कोरोना से बचाव के उपकरण बांटने, बूथ तक डिजिटल संपर्क, हर प्रदेश में दो रैली वर्चुआल माध्यम से करने, वीडियो कांफ्रेंस आदि की रणनीति को अंजाम दे रही है. इस दौर में भी भाजपा ने बिहार चुनाव अभियान को गति दी है तो मोदी सरकार के छठे साल की उपलब्धियों को जनता तक ले जाने के लिए अपने बेहतर संगठनात्मक ढांचे के जरिए डिजिटल रैलियों के माध्यम से सक्रियता कम नहीं होने दी है. यानी माहौल को अपने पक्ष में करने के लिए पूरी तरह से अपनी सक्रियता के जरिए पार्टी हमेशा काम में जुटी रहती है, भले नतीजे पक्ष में आए या खिलाफ. लेकिन इससे शायद ही कोई इनकार कर सकता है कि आज बेहतर संगठनात्मक ढांचे और हर काम को एक खास रणनीति के साथ करने की इच्छाशक्ति आज के दौर में भाजपा और उसके मौजूदा नेतृत्व नरेंद्र मोदी को बाकी पार्टियों और नेताओं से अलग करती है.



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