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जब भारत के इस राज्य में हुआ था मौत का तांडव, महज 7 घंटे में 3000 से अधिक लोगों को गई थी जान

भारत की आजादी के बाद देश में कई बार कई स्थानों में हिंसा हुई जिसमें अभी तक हजारों लोग जान गंवा चुके हैं. यह हिंसा अलग अलग कारणों से हुई. लेकिन 18 फरवरी, 1983 की सुबह असम में जो हुआ उसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. असम के नेली क्षेत्र के 14 गावों में रहने वाले लोगों को स्थनिय आदिवासियों ने मौत के घाट उतार दिया. कहा जाता है कि जितने भी लोगों ने जान गंवाई सभी बांग्लादेशी थे. सरकारी फाइलों में मौत का आंकड़ा 2 हजार तक है लेकिन गैर सरकारी आंकड़ो के अनुसार यह आंकड़ा तीन हजार से अधिक है.

दरअसल, भारत की आजादी के बाद से ही बांग्लादेश(पूर्वी पाकिस्तान) से लोग पलायन करके भारत की सीमा में आने लगे. असम क्योंकि सबसे पास था, तो लोग सीधा वहीं जाने लगे, कुछ पश्चिम बंगाल भी गए. वहीं जो लोग अवैध तरीके से भारत में आए थे, उन्होंने धीरे-धीरे अपने सारे सरकारी कागज बना लिए और वोटिंग का अधिकार भी हासिल कर लिया. असम के आदिवासियों के लिए यह चिंता का विषय बन गया था, जिसके खिलाफ वो लगाताक विरोध करते रहे. राज्य में एक दशक से भी अधिक समय तक आंदलोन चला था, जिसने 18 फरवरी, 1983 को भयावह रूप ले लिया था.

18 फरवरी, 1983 को असम के हजारों आदिवासियों ने नेली क्षेत्र के 14 गांवों में रहे रहे बांग्लादेश से आए लोगों को घेर लिया और महज सात घंटे में 3 हजार से अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया. कहा जाता है कि इस नरसंहार में ज्यादातर महिलाओं और बच्चों की मौत हुई थी जो जान बचाकर भाग नहीं पाए थे. इस नरसंहार का नजारा बेहद डरावान था. नेली क्षेत्र में चारों तरफ लाशें ही लाशें दिखाई दे रही थी. कई क्षेत्रों में 200-300 लोगों को एक साथ लाश दिखी थी. यह बेहद ही दर्दनाक मंजर था.

नेली नरसंहार को लेकर कई रिपोर्ट दर्ज हुई, इसको लेकर कई लोगों को गिरफ्तार भी किया गया लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इस नरसंहार में किसी भी व्यक्ति को कोई सजा नहीं मिली. लोगों के खिलाफ मुकदमा भी नहीं चला. लेकिन सरकार ने नरसंहार में मारे गए लोगों को पांच पांच हजार रूपये का मुआवजा दिया था.

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