शी जिनपिंग के लिए बहुत बड़ी गलती साबित होगा भारत-चीन का टकराव – India-China clash will prove to be a big mistake for president Xi Jinping | knowledge – News in Hindi
ताइवान के बजाय चीन का अगला निशाना हो सकता है भारत
चीन ताइवान (Taiwan) को भी अपना अभिन्न अंग बताता रहा है. हालांकि, इस मामले में इतिहास ही चीन के आड़े आ रहा है. इतिहास के मुताबिक, पिछली चार सदियों में चीन सिर्फ अपने क्षेत्र पर पर ही शासन कर रहा था. इसका विस्तार नहीं हुआ था. चीन में चिंग वंश (Qing Dynasty) का शासनकाल 1683 से 1895 तक रहा था. चीन का शासन कुछ दशकों तक सिर्फ सैद्धांतिक तौर पर कुछ जगहों पर फैला था. ताइवान जाने पर आसानी से पता चल जाता है कि दोनों देश सांस्कृतिक (Culture) तौर पर पूरी तरह से अलग हैं. दोनों में कोई समानता नहीं है. वहीं, ये भी हो सकता है कि चीन का अगला निशाना ताइवान के बजाय भारत हो. तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा को 1959 में भारत में राजनीतिक शरण देने के बाद से चीन कई बार सीमा पर हमले कर चुका है.
कश्मीर विवाद सिर्फ भारत और पाकिस्तान के बीच का मसला नहीं है. इस क्षेत्र के 17 फीसदी हिस्से पर चीन ने भी कब्जा जमा रखा है.
चीन का कश्मीर में दो मैसाचुसेट्स के बराबर हिस्से पर है कब्जा
चीन की सेना ने 20 अक्टूबर 1962 को भारत और तिब्बत (Tibet) को बांटने वाली मैक्मोहन सीमा रेखा पर एक के बाद एक कई हमले किए थे. ब्रिटेन ने 1914 में शिमला कांफ्रेंस के दौरान ये रेखा खींची थी. भारत के खिलाफ 1962 में छेड़े युद्ध के दौरान चीन को हर मोर्चे पर सफलता मिली थी. इसके बाद भारतीय सेना ने मौलिक रूप से अपनी रणनीति पर पुनर्विचार किया. चीन ने 1962 में लद्दाख पर भी हमला किया था. बता दें कि पश्चिमी मीडिया कश्मीर विवाद (Kashmir Dispute) को अमूमन भारत और पाकिस्तान के बीच का मसला बताती है, जबकि इस क्षेत्र के 17 फीसदी हिस्से पर चीन का कब्जा है. चीन के कब्जे वाला भारत का हिस्सा करीब दो मैसाचुसेट्स (Massachusetts) के बराबर है. पिछले कुछ हफ्तों में वास्तविक नियंत्रध्ण रेखा पर भारत और चीन के सैनिकों के बीच कई झड़पें हो चुकी हैं.
पहले की झड़पों के मुकाबले बड़े पैमाने पर हुई हैं हाल की घटनाएं
पूर्वी लद्दाख (Ladakh) में 2019 में भारत और चीन के बीच करीब 500 छोटी-बड़ी झड़पें हुई हैं. हाल में हुई घटनाएं 2019 या उससे पहले हुई झड़पों के मुकाबले बड़े पैमाने (Large Scale) पर और बेहतर समन्वय (Better Co-Ordination) के साथ हुई हैं. चीन की सेना ने गलवान घाटी और लद्दाख के दमोचौक में अपने सैनिकों की तादाद बढ़ा (Reinforced) दी है. पिछले महीने भारत के पूर्व नॉर्दन आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) दीपेंदर सिंह हुड्डा ने अपने एक लेख में लिखा था कि हाल में भारत-चीन पर हुई झड़पें बीजिंग के इशारे पर हुई हैं. ऐसा लगता है कि ये घटनाएं स्थानीय कमांडर की आमतौर पर की जाने वाली हरकत नहीं है. चीन इस बात से खफा है कि भारत क्षे. में सड़क निर्माण कर रहा है. इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीन 1962 वाला खेल फिर से खेल रहा है, जबकि वो ये नहीं जानता कि तब से अब तक भारत कितना बदल चुका है.
1962 के मुकाबले अब हर मामले में बहुत बदल चुका है भारत
भारत की पारंपरिक सेना (Indian Army) के पास पिछली आधी सदी में आधुनिक हथियारों का जखीरा इकट्ठा हो चुका है. वहीं, 1971 से भारत परमाणु शक्ति संपन्न देश (Nuclear Power Nation) भी बन चुका है. द नेशनल इंटरेस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की अंदरूनी नाकाबिलियत, उलझी नौकरशाही और संरक्षणवाद के बाद भी अर्थव्यवस्था (Economy) 1962 के मुकाबले बहुत बेहतर स्थिति में है. इसके अलावा भारत में चीन के जैसा जनसांख्यिकी संकट भी नहीं है, जो उसे दशकों लागू रहे एक संतान नीति के कारण भुगतना पड़ रहा है. इसके अलावा अब दुनिया भी पहले के मुकाबले बहुत बदल गई है. जब चीन ने शुरुआत में भारतीय सीमा में घुसपैठ की थी तो अमेरिका के राष्ट्रपति जॉन एफ. केनेडी ने कुछ हथियारों की पेशकश की थी.
भारत फिलीपींस की तरह कुछ युआन के लिए दक्षिण चीन सागर में बढ़ते हुए चीन के दखल का समर्थन भी नहीं करेगा.
दक्षिण चीन सागर में चीन की हरकतों का भारत पर होगा असर
अमेरिका ने 1962 में बहुत देरी से और काफी कम हथियारों की पेशकश की थी. साथ ही अमेरिका आधिकारिक तौर पर निष्पक्ष दिखना चाहता था. ऐसे में भारतीय नेता तब के सोवियत संघ की ओर झुक गए. इसके उलट आज भारत औरर अमेरिका के संबंध काफी मजबूत माने जाते हैं. दोनों देशों के बीच के संबंध दबे-छुपे नहीं हैं. आज दोनों देश एकदूसरे का खुलकर समर्थन करते हैं. चीन को ये भरोसा हो सकता है कि दक्षिण चीन सागर (South China Sea) में उसकी हरकतों का भारत पर कोई असर नहीं होगा, लकिन ये उसका गलत आकलन भी साबित हो सकता है. भारत को फिलीपींस समझना जिनपिंग की सबसे बड़ी भूल साबित हो सकता है. भारत कुछ यूआन के लिए उसका साथ देने को तैयार नहीं होगा.
अमेरिका युद्ध की स्थिति में भारत की हर जरूरत को करेगा पूरा
जिनपिंग को भरोसा हो सकता है कि वह हॉन्ग कॉन्ग की आजादी खत्म कर सकते हैं, लेकिन उनका भारत को कमजोर समझना उनकी गलती साबित हो जाएगी. मौजूदा हालात में डोनाल्ड ट्रंप के शासनकाल में भारत पर चीन की ओर से कोई भी हमला होने पर अमेरिका का चुप बैठना नामुमकिन है. इसके उलट चीन और भारत के टकराव की हालात में राष्ट्रपति डोनालड ट्रंप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की हरसंभव मदद करेंगे. माना जा रहा है कि चीन को हराने और अपनी रक्षा के लिए भारत की ओर से मांगी जाने वाली हथियार या किसी भी तरह की इंटेलिजेंस मदद मुहैया कराने के लिए अमेरिका तत्काल आगे आएगा. ऐसे में साफ है कि शी जिनपिंग का भारत से किसी भी तरह का टकराव खुद उनके लिए ही बड़ी मुसीबत और गलती साबित हो जाएगा.
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