अखाड़ों का शहर रायपुर, बेटियां भी लहरा रही है परचम
सबका संदेश न्यूज छत्तीसगढ़ रायपुर- पुराने समय में अखाड़ों की अलग पहचान हुआ करती थी। छोटे-बड़े सभी अखाड़ों के दंगल देखने के लिए काफी भीड़ जुटा करती थी। आज जिस तरह क्रिकेट के प्रति लोगों में जुनून है और इसकी लोकप्रियता है, कुश्ती को लेकर भी यही जुनून हुआ करता था। ‘माटी’ के पहलवानों को देखने के लिए धक्का-मुक्की तक की स्थिति बन जाती थी। वक्त के साथ लोकप्रिय खेलों की सूची भी बढ़ती गई, लेकिन कुश्ती आज भी इस शहर में जिंदा है।
अपने पुराने रूतबे के साथ। शहर में ऐसे कई अखाड़े हैं, जहां आज भी कुश्ती के दांव-पेंच सीखने, अपना दमखम दिखाने पहलवान जुटते हैं। खास बात यह कि इनमें शहर की बेटियां भी होती हैं। इन अखाड़ों से निकले पहलवान राष्ट्रीय स्तर पर अपना परचम लहरा चुके हैं। नागपंचमी पर आज भी हर साल शहर में कई स्थानों पर दंगल होते हैं, जहां हजारों रुपये का इनाम रखा जाता है।
शहर के नामी पहलवान कहते हैं कि अखाड़े में एक पहलवान के लिए सिर्फ ताकत और शारीरिक सौष्ठव दिखाना ही सबकुछ नहीं होता बल्कि उसे फुर्ती और धैर्य के साथ प्रतिद्वंद्वी पहलवान का मन भी पढ़ना पड़ता है। मौका मिलते ही चौका लगा देने वाला ही सही पहलवान होता है।
सभी पहलवानों का अपना एक खास दांव होता है, जिसमें उसे सिद्घता हासिल होती है। उसी दांव की बदौलत वह ज्यादातर कुश्तियां जीतता है। मुकाबले के समय प्रतिद्वंद्वी सामने वाले पहलवान के खास दांव को लेकर पूरी तरह सतर्क रहता है।
शहर के नामी पहलवान
चिरआ साहू एनआइएस कोच कुश्ती, इन्होंने पहले राष्ट्रीय स्तर पर बड़े-बड़े पहलवानों को मात दी। अब यह कोच के रूप में खिलाड़ी तैयार कर रहे हैं। पीतांबर पटेल (राष्ट्रीय पहलवान), विनय यादव (35 वर्ष राष्ट्रीय पहलवान), संतराम ध्रुव (34 वर्ष राष्ट्रीय पहलवान), विमसरन यादव (23 वर्ष राष्ट्रीय पहलवान)।
लड़कियों चटा रहीं धूल
‘दंगल’ फिल्म में जो दिखाया गया है, वह सच्चाई के बिल्कुल करीब है। शहर की बेटियों ने भी जब कुश्ती जैसे खेल की ओर दिलचस्पी दिखाई, उन्हें समाज, रिश्तेदार व परिचितों से बहुत कुछ सुनना पड़ा। लेकिन उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। शहर की कई बेटियां आज कुश्ती जैसे खेल में अपनी सफलता का डंका बजा रही हैं। जो लोग पहले इन्हें ताने देते थे, आज गर्व के साथ उनकी चर्चा करते हैं।
रायपुर की संती बागमार (28 वर्ष) राष्ट्रीय प्रतियोगिता में मेडल जीतकर राज्य का नाम रोशन किया है। वर्तमान में वे एक प्राइवेट जिम में ट्रेनर हैं। 25 वर्षीय नेहा यादव ने अपनी एक अलग पहचान बनाई है। उन्हें बचपन से ही पहलवानी पसंद थी। पहले शौक के रूप में खेला करती थीं। आज राष्ट्रीय पहलवान हैं।
उन्हें खेल अलंकरण से भी सम्मानित किया जा चुका है। मेहंदी यादव ने 21 वर्ष की उम्र में ही इस खेल में अपनी छाप छोड़ दी है। वे कई दिग्गज पहलवानों को पटखनी दे चुकी हैं। 18 वर्षीय कुमकुम पटनायक भी कई बड़े पहलवानों धूल चटा चुकी हैं।
और प्रोत्साहन की जरूरत
शहर के पहलवानों का कहना है कि इस खेल को और बढ़ावा देने की जरूरत है। यह काफी श्रमसाध्य खेल है। इसलिए इसके खिलाड़ियों को सही डाइट की जरूरत होती है। जिन खिलाड़ियों के सामने आर्थिक तंगी की स्थिति होती है, उनके लिए इस खेल में बढ़ना मुश्किल हो जाता है। सरकार को इस मामले में दिल खोलकर मदद करनी चाहिए।
पहलवानी के प्रमुख दांव-पेंच
– निकाल दांव : इसमें पहलवान प्रतिद्वंद्वी के दोनों पैरों के बीच में घुसकर उसे कंधों पर उठाकर चित कर देता है।
– कलाजंग दांव : यह दांव दिन में तारे दिखा देता है। इसमें पहलवान प्रतिद्वद्वी को फुर्ती से पेट के बल अपने कंधों पर उठा लेता है और फिर पीठ के बल पटक देता है।
– जांघिया दांव : पहलवानी की पोशाक अलग होगी है। इसमें दोनों पहलवान एक दूसरे की जांघिया को पकड़ लेते हैं। जो पहले ताकत के दम कर सामने वाले को उठा लेता है, वही पटकनी देकर बाजी अपने हाथ कर लेता है।
– टंगी या ईरानी दांव : इसमें पहलवान दूसरे पहलवान को उठाकर ताकत के दम पर चित करता है।
– सांडीतोड़ और बगलडूब दांव : इसमें पहलवान दूसरे के हाथों को मरोड़कर, उसके बगल से निकलकर गिरा देता है।
रायपुर के प्रमुख अखाड़े – संचालन की अवधि
दंतेश्वरी अखाड़ा पुरानी बस्ती – तकरीबन 60 वर्ष
बढ़ई पारा अखाड़ा – लगभग 50 वर्ष
शक्ति बाजार अखाड़ा – तकरीबन 50 वर्ष
बलभीम अखाड़ा, जोरापारा – लगभग 50 वर्ष
स्टार अखाड़ा, ईरानी डेरा राजातालाब – करीब 25 वर्ष
चितला अखाड़ा, टिकरापारा – करीब 40 वर्ष
भांटागांव अखाड़ा – लगभग 15 वर्ष
शुक्रवारी बाजार अखाड़ा – करीब 50 वर्ष
10 साल से दे रहे हैं ट्रेनिंग
– दंतेश्वरी अखाड़े में 10 साल से माटी के पहलवानों को तैयार कर रहा हूं। सुबह-शाम दांव-पेच सिखाया जाता है। पहले से ज्यादा युवा अब इस खेल में आ रहे हैं। इनमें बेटियों की संख्या भी ज्यादा है। वर्तमान में खेल को भी अच्छा बढ़ावा दिया जा रहा है। इसे और प्रोत्साहित करने की जरूरत है। – दिलीन यदु, दंतेश्वरी अखाड़ा, ट्रेनर
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