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OPINION: आखिर क्यों महत्वपूर्ण है गृह मंत्री अमित शाह का पहले साल का कार्यकाल – OPINION: Why Home Minister Amit Shah first year term important? | nation – News in Hindi

मोदी सरकार का 1 साल पूरा हो गया है. इस दौरान अगर किसी मंत्रालय की सबसे ज्यादा चर्चा हुई और जिसने देश के इतिहास को बदलने वाले कुछ निर्णय लिए तो वह है भारत सरकार का गृह मंत्रालय था, जिसकी अगुवाई गृह मंत्री अमित शाह कर रहे हैं. पिछले एक साल में जहां इस मंत्रालय द्वारा कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए तो वहीं सबसे ज्यादा चर्चा का केंद्र भी यही मंत्रालय ही रहा जिस पर विपक्ष ने कई मौकों पर समय पर काम न करने का आरोप लगाया. आइए जानते हैं आखिर एक साल में अमित शाह का गृह मंत्रालय क्यों रहा महत्वपूर्ण.

कोरोनावायरस के मद्देनजर लॉकडाउन पूरे देश में लागू करवाना
भारत समेत पूरा विश्व कोरोनावायरस की चपेट में है. पिछले 25 मार्च से देश में लॉक डाउन लागू हुआ था. पिछले 100 साल में ऐसा पहला मौका था जब किसी महामारी के चलते गतिविधियों में ताला लगा दिया गया था. इस निर्णय को देशभर में लागू करवाना और इसके साथ ही समन्वय से चरणबद्ध तरीके से महत्वपूर्ण गतिविधियों को गतिशील बनाए रखना मोदी सरकार के सामने बड़ी चुनौती थी और इससे निभाया गृह मंत्रालय ने. हालांकि विपक्ष जरूर सवाल उठा रहा है कि प्रवासी श्रमिकों की समस्या सरकार नहीं समझ पाई और लॉक डाउन लागू करना मोदी सरकार की गलती थी और आज भी यह आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है. लेकिन अगर हम नजर डालेंगे कि लॉक डाउन की चार चरणों को कैसे देश में अमल किया गया तो उसमें गृह मंत्रालय की भूमिका का अंदाजा लग जाएगा.पीएम मोदी की घोषणा के बाद जैसे ही लॉक डाउन देशभर में शुरू हुआ प्रदेशों को किस दिशा में जाना है क्या-क्या निर्देशों का पालन करना है गृह मंत्रालय की ओर से लगातार निर्देश आने शुरू हो गए.इन निर्देशों से प्रदेशों को यह जानकारी मिलने में सहूलियत हुई कि आखिरकार अब जब महामारी के चलते पूरा देश बंद हो जाएगा तो कैसे हमें काम करना है.आदेश जारी करने के बाद समय-समय पर इसकी निगरानी करने के लिए गृह मंत्रालय ने कई स्पष्टीकरण भी जारी किए.एक ओर जहां स्वास्थ्य मंत्रालय व अन्य मंत्रालय अपने-अपने विभागों का काम देख रहे थे तो वहीं गृह मंत्रालय ने कोरोनावायरस संक्रमण के दौरान एक 24 घंटे का कंट्रोल रूम अपने मंत्रालय में स्थापित कर दिया था और दोनों गृह राज्यमंत्री लगातार इस कंट्रोल रूम में काम की निगरानी करते. हर घंटे सिलसिलेवार तरीके से देश के हर एक राज्य की जानकारी इस कंट्रोल रूम में ली जाती और उसके मुताबिक रणनीति बनाई जाती और दिशानिर्देशों का खाका तैयार किया जाता. कोरोना वायरस संक्रमण का दौर अब भी जारी है लॉक डाउन पूरी तरीके से कब उठेगा और कैसे गतिविधियां सामान्य दिशा की ओर बढ़ेगी यह आने वाले दिनों में गृह मंत्रालय के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती होगी.

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शाह ने प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन दिया कि जम्मू कश्मीर के राज्य का दर्जा जल्द बहाल किया जायेगा

धारा 370 का कश्मीर से हटाना
5 अगस्त 2019 को गृह मंत्री अमित शाह अपनी चिर परिचित अंदाज में संसद भवन आए. लेकिन उससे पहले सबको यह आभास हो चुका था कश्मीर को लेकर कुछ न कुछ अहम जरूर होने वाला है. उसकी वजह थी कश्मीर में भारी तादात में सुरक्षा बलों की मौजूदगी, ठीक 1 घंटे पहले यानी 9:00 हुई कैबिनेट और कैबिनेट कमेटी ऑफ सिक्योरिटी की अहम बैठक और कश्मीर में हो रही तमाम तरीके की हलचल ने भी इस हवा को जोर दे दिया था. हाथ में चंद कागजात लिए गृह मंत्री अमित शाह ने संसद भवन में बोलना शुरू किया. करीब 11:05 पर उन्होंने ऐलान किया कि जम्मू कश्मीर से धारा 370 को हटाया जाएगा.यानी कि जो विशेष अधिकार इस कानून के तहत कश्मीर के लोगों के पास था अब इस धारा के हटने के बाद वह अधिकार खत्म हो गए थे. कश्मीर में अब आईपीसी कि कानून के मुताबिक न्याय व्यवस्था चलने का ऐलान किया गया. इस धारा के हटने के बाद सबसे अहम बदलाव ये हुआ कि अब कश्मीर में कोई भी आदमी भारत का आकर जमीन खरीद सकता है अगर बेचने वाला शख्स राजी है. इस धारा के हटने के बाद से मानों भारत के लिए कश्मीर के रास्ते खुल गए. लेकिन स्थानीय लोग यानी कश्मीर में जो लोग रहते हैं वह इस धारा के हटने के बाद किस तरीके से अपनी प्रतिक्रिया देंगे इसका अभी सबको इंतजार है.

बोडो शांति समझौता
पिछले कई दशकों में असम और उसके आसपास के इलाकों में बोडोलैंड राज्य की अलग मांग कर रहे कई संगठनों ने हथियार उठा रखा था और लगातार प्रदेश में हिंसक वारदात को अंजाम दे रहे थे. गृह मंत्रालय ने पहली बार इन अलग-अलग गुटों को एक मंच पर लाया और उनके साथ विकास का खाका बनाकर एक ऐसी शांति की प्रक्रिया स्थापित की जिसके बाद यह संगठन मुख्यधारा में आने को तैयार हो गए. दरअसल इससे पहले भी बोडो संगठनों को बातचीत के लिए मनाया गया था लेकिन एक साथ सारे संगठन नहीं बात मान रहे थे. मध्यस्थकारों के जरिए सारे पक्षकारों को एक मंच पर लाया गया नई दिल्ली बुलाया गया और शांति समझौते पर ऐतिहासिक हस्ताक्षर किए गए.

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5 अगस्त को गृहमंत्री मंत्री अमित शाह ने जम्मू कश्मीर राज्य के पुनर्गठन की घोषणा की.

जम्मू कश्मीर राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2019
5 अगस्त को गृहमंत्री मंत्री अमित शाह ने एक और अहम घोषणा की वह थी जम्मू कश्मीर राज्य का पुनर्गठन. इस अधिनियम में जम्मू और कश्मीर राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में पुनर्गठित करने का प्रावधान है. पहला जम्मू और कश्मीर, दूसरा लद्दाख. इस अधिनियम के प्रावधान 31 अक्टूबर 2019 से लागू हुए. हालांकि गृहमंत्री ने ये भी साफ किया कि जम्मू-कश्मीर को वापस प्रदेश बनाया जा सकता है अगर तय समय की समीक्षा के बाद माहौल अनुकूल पाया गया. इस अधिनियम के पारित होने के बाद जम्मू कश्मीर और लद्दाख के केन्द्र सरकार द्वारा प्रशासित होने का प्रावधान है. यानी देश में जितनी भी केंद्र शासित प्रदेश हैं अब उनकी तरह जम्मू-कश्मीर और लद्दाख भी होगा. 5 अगस्त को ही हुई इस घोषणा के बाद भारत में जम्मू कश्मीर का नक्शा बदल गया और 2 नए केंद्र शासित प्रदेश अपने अस्तित्व में आ गए.

ब्रू रियांग समझौता
ये फैसला करीब 35000 लोगों से जुड़ा हुआ था लेकिन इसके जरिए गृह मंत्री अमित शाह ने देश भर में यह संदेश देने की कोशिश की कि दूरदराज इलाके में रह रहे अल्पसंख्यक लोगों को अगर प्रताड़ना का सामना करना पड़ रहा हो तो भारत सरकार उनके साथ है.मिजोरम से लाकर त्रिपुरा में ऐसे लोगों को बसाने के लिए भारत सरकार और 2 प्रदेशों की सरकार ने कई महीनों तक मिलकर एक योजना तैयार की और उसके बाद ऐतिहासिक समझौते पर दस्तखत किए.

जम्मू कश्मीर आरक्षण संशोधन 2019 विधेयक
यह विधेयक भी मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में संसद सत्र के पहले महीने में ही पारित हो गया. इस विधेयक के पारित होने के बाद जम्मू में भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा पर रह रहे लोगों को 3 फ़ीसदी आरक्षण का लाभ उसी तरह से मिलना शुरू हो गया जैसे नियंत्रण रेखा पर रह रहे लोगों को मिलता है. सरकार का बिल पारित कराने के पीछे ये मकसद था कि जम्मू और कश्मीर के लोगों को समान अधिकार और सहूलियतें मिले.जम्मू कश्मीर से जुड़े महत्वपूर्ण कदम उठाते वक्त गृह मंत्री ने यह साफ कर दिया कि भारत सरकार कश्मीर के लोगों के साथ है और हर कदम पर उस इलाके के विकास के लिए वह काम करेगी. इसीलिए सरपंचों और पंचों का जम्मू कश्मीर में सशक्तिकरण किया गया यानी उन्हें और ज्यादा वित्तीय अधिकार दिए गए जिसके बाद उन्हें अपने गांव में अपने इलाकों में अपनी जरूरत के हिसाब से पैसे खर्च करने की छूट है. इसके अलावा केंद्र सरकार के 80,000 करोड़ रुपए जो परियोजनाएं जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में जो चल रही हैं उसके भी काम में तेजी लाई गई है.

यूएपीए कानून में बदलाव और एनआईए को मजबूत बनाना
इन दोनों कानूनों को मजबूत बनाने के लिए संसद में दो महत्वपूर्ण बिल पारित करवाए गए जिसके पीछे सरकार का मकसद यही था की जांच एजेंसियां जो संवेदनशील अपराधों की तफ्तीश कर रही है उनको और ज्यादा शक्ति मिले. यही नहीं कानून को इतना मजबूत बना दिया जाए कि अगर पुख्ता सबूत है जांच एजेंसियों के पास अपराधी को तुरंत सजा मिले. यह तो थी संसद के भीतर सरकार द्वारा कुछ ऐतिहासिक कदम उठाए जाने की बात. अब जरा नजर डालते हैं संसद के बाहर कुछ ऐसे कदम जिसके जरिए सरकार ने यह संदेश देने की कोशिश की कि वह बदलाव करना चाहती है और इसके लिए देश को तैयार रहना चाहिए.

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह

एनआरसी की सूची जारी करना
यह पूरी प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक चल रही थी, जिसके तहत असम में 31 अगस्त को एनआरसी यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन की सूची आई. इसमें 19 लाख से ज्यादा लोगों को भारत का नागरिक नहीं माना गया जबकि तीन करोड़ से ज्यादा लोगों का नाम इस सूची में था जिसके बाद वह लोग स्वाभाविक रूप से भारत के नागरिक थे. असम में ये बेहद संवेदनशील मुद्दा था और सरकार ने यह साफ कर दिया की इस सूची के जारी होने के बाद भी जिनका नाम इसमें नहीं आया है उनके लिए 300 से भी ज्यादा ट्रिब्यूनल बनाए गए हैं जिसमें वह अपनी अपील दाखिल कर सकते हैं.

नक्सलियों के खिलाफ अभियान में तेजी का दावा
गृहमंत्री अमित शाह ने नक्सल प्रभावित प्रदेश के मुख्यमंत्री के साथ 26 अगस्त को बैठक की जिसमें गृह मंत्री शाह के साथ नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्री मौजूद रहे. बता दें कि गृह मंत्री अमित शाह पहली बार नक्सल समस्या को लेकर बैठक की. इसमें उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्रियों को बुलाया गया था. इस बैठक के दो मुख्य मकसद थे पहला तो नक्सल समस्या का जड़ से खात्मा करना और दूसरा उन इलाकों का विकास करना जो नक्सल समस्या की वजह से मुख्यधारा से बहुत दूर चले गए और विकास से कोसों पीछे हैं. बैठक के बाद सरकार की ओर से दावा किया गया वह नक्सल समस्या के खात्मे के लिए प्रतिबद्ध है.

पुलिसिंग को मजबूत बनाने पर जोर
अपने 100 दिनों के कार्यकाल में गृह मंत्री अमित शाह ने जिन पुलिस अकादमियों का दौरा किया उसमें हैदराबाद की नेशनल पुलिस अकादमी और दिल्ली की ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट प्रमुख थे. इसके अलावा गृह मंत्री दिल्ली के पुलिस मेमोरियल भी गए जिसको शहीद हुए पुलिसकर्मियों की याद में बनाया गया है. पुलिस सिस्टम से जुड़ी इन जगहों का दौरा कर गृह मंत्री ने यह साफ कर दिया पुलिस व्यवस्था को दुरुस्त करना उसके महत्वपूर्ण लक्ष्य में से एक है. इसके लिए पुलिस को मजबूत बनाने के लिए विशेष संस्थान खोले जाएंगे जहां पर वह खासतौर के तकनीकी शिक्षा ले सकें साथ ही तैनात पुलिस वालों को उनके काम के लिए पूरा सम्मान मिले इसके लिए सिर्फ पुलिसकर्मियों के लिए स्मारक बनाया गया जिसमें आजादी के बाद से अब तक 35 हजार से ज्यादा शहीद हुए पुलिसकर्मियों का नाम है. गृह मंत्रालय की ओर से अमित शाह ने यह साफ कर दिया कि अपराधियों से 10 कदम आगे पुलिस को रहना चाहिए तभी अपराध पर काबू पाया जा सकेगा.

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अमित शाह ने संसद में विपक्ष के सवालों का जवाब दिया.

गृहमंत्रालय पर सवाल
पिछले एक साल के दौरान अगर महत्वपूर्ण निर्णय किस मंत्रालय ने दिए तो विपक्ष की ओर से सवाल भी इसी मंत्रालय पर सबसे ज्यादा उठाए गए. इस फेहरिस्त में सबसे आगे था दिल्ली दंगों के दौरान गृह मंत्रालय और दिल्ली पुलिस कि वक्त पर सही कदम न उठाना. विपक्ष का आरोप था कि समय पर कदम नहीं उठाए गए इसलिए 40 लोगों की मौत दिल्ली दंगों के दौरान हो गई. इसका जवाब गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में दिया सिलसिलेवार तरीके से प्रभावशाली कदम उठाने का सिलसिला घटना के दिन से ही शुरू हो गया था.बहरहाल इस पूरे प्रकरण की जांच चल रही है. इसके अलावा जेएनयू और जामिया में छात्रों का जो उग्र प्रदर्शन हुआ उसे लेकर भी विपक्ष का यही कहना था सरकार ने छात्रों की बात नहीं सुनी इसीलिए आंदोलन उग्र होता गया. जबकि सरकार का पक्ष यही था कि छात्रों की हर वाजिब मांग को वह सुनने को तैयार है. काफी गतिरोध के बाद यह प्रदर्शन खत्म हुआ. इसके अलावा शाहीन बाग में एनआरसी को लेकर जो प्रदर्शन हुआ उसकी देशभर में चर्चा हुई. इसमें भी गृह मंत्रालय को सवालों के घेरे में ला खड़ा कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद इस मामले में एक कमेटी भी बनाई गई.हालांकि समय-समय पर भारत सरकार और गृह मंत्रालय ने इन मुद्दों पर अलग-अलग मंचों पर सफाई दी और अपना पक्ष रखा लेकिन आने वाले दिनों में इन्हीं को आधार बनाकर विपक्ष एक बार फिर मोदी सरकार पर हमला करने की कोशिश करेगा और उसका जवाब तैयार करना और इससे निपटना यह गृह मंत्रालय और भारत सरकार के सामने बड़ी चुनौती होगी.



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