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टिड्डियों का हमला: बरसों से मिलकर लड़ रहे हैं भारत और पाकिस्‍तान – Locust attack: India and Pakistan have been fighting together for years | knowledge – News in Hindi

राजस्‍थान के जैसलमेर में 1993 में पाकिस्‍तान से आए टिड्डियों के झुंड (Locust Swarm) ने हमला कर दिया. इस पर एक वरिष्‍ठ अधिकारी ने तब वार्निंग अधिकारी रहे अनिल शर्मा से पूछा, ‘जब हमने सीमा पर बाड़ लगा रखी है तो ये टिड्डियों का झुंड भारत (India) में कैसे घुस रहा है?’ इस पर शर्मा ने जवाब दिया कि टिड्डी एक कीट (Insect) होता है, जिसके लिए सीमाएं और बाड़बंदी कोई मायने नहीं रखते हैं. भारत में टिड्डियों के झुंड के हमलों का इतिहास सदियों पुराना है. महाभारत में भी अर्जुन और कर्ण के बीच युद्ध के दौरान ऐसे ही कीटों के हमले का जिक्र मिलता है.

आधुनिक भारत के रिकॉर्ड के मुताबिक, 1812 से 1889 के बीच कम से कम 8 बार देश में टिड्डियों के झुंड ने बर्बादी फैलाई है. इसके बाद 1896 से 1997 के बीच एक और हमला हुआ था. इस समय भी भारत में पाकिस्‍तान (Pakistan) की ओर से आए टिड्डियों के झुंड का प्रकोप जारी है. ये झुंड जयपुर और अजमेर तक पहुंच चुके हैं. ऐसे में इन टिड्डियों से निपटने के लिए बरसों से अपनाई जाने वाली भारत और पाकिस्‍तान की रणनीति फिर चर्चा के केंद्र में है.

भारत ने पाकिस्‍तान से मांगा है सहयोग, जवाब का है इंतजार
भारत के विदेश मंत्रालय ने बताया कि टिड्डियों से निपटने के लिए पाकिस्‍तान से सहयोग की मांग की है. हालांकि, अभी तक उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया है. रिश्‍तों में खटास, युद्ध, आतंकी हमलों और राजनीतिक उठापटक के बाद भी दोनों देशों के बीच टिड्डियों के बारे में चेतावनी देने वाली प्रणाली को लेकर बरसों से सहयोग जारी है.

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रिश्‍तों में खटास, युद्ध, आतंकी हमलों और राजनीतिक उठापटक के बाद भी भारत-पाकिस्‍तान के बीच टिड्डियों के बारे में चेतावनी देने वाली प्रणाली को लेकर बरसों से सहयोग जारी है.

संयुक्‍त राष्‍ट्र खाद्य व कृषि संगठन (UNFAO) की ओर से प्रकाशित चेतावनी कार्यालय के इतिहास के मुताबिक, 1926 से 1931 के बीच हुए टिड्डियों के झुंड के हमलों में भारत में फसलों को 2 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था, जो आज के समय में करीब 10 करोड़ डॉलर मूल्‍य के बराबर होगा. रियासतें इन हमलों से अपने तरीकों से निपटती थीां, लेकिन आपस में कोई सहयोग नहीं था.

भारत ही नहीं ईरान और ओमान पर भी होते रहे हैं ऐसे हमले
ब्रिटिश इंडियन गवर्नमेंट ने 1931 में इसको लेकर एक शोध योजना प्रायोजित की. इसके बाद 1939 में एक स्‍थायी लोकस्‍ट वार्निंग ऑर्गेनाइजेशन की शुरआत की. इसका मुख्‍यालय नई दिल्‍ली में और एक सबस्‍टेशन कराची में बनाया गया. इसके बाद 1941 में रेगिस्‍तानी इलाकों की रियासतों में टिड्डियों के प्रभाव को लेकर एक कांफ्रेंस की गई. संगठन की भूमिका 1942 में बढ़ा दी गई. फिर 1946 में संगठन में नौकरशाही ढांचे को शामिल कर दिया गया.

भारत ही नहीं ईरान भी टिड्डियों से परेशान रहा है. ईरान में 1876 और 1926 से 1932 के बीच कई हमले हुए. पहली बार 1942 में देशों के बीच टिड्डियों के हमलों से निपटने के लिए सहयोग का मामला सामने आया. तब भारत ने दक्षिण-पश्चिम ईरान की टिड्डियों के झुंड से निपटने में मदद की थी. इसके अगले दो साल भारत ने ओमान और ईरान की मदद की. रेगिस्‍तानी इलाकों में टिड्डियों के हमले को लेकर 1945 में तेहरान में पहला सम्‍मेलन हुआ था. इसमें ईरान, भारत, सऊदी अरब और मिस्र शामिल थे.

भारत और पाकिस्‍तान के बीच सहयोग पर होती रही हैं बैठकें
यूएनएफएओ के मुताबिक, टिड्डियों के हमले से निपटने के लिए 1950 में हुए सम्‍मेलन में तेहरान और पाकिस्‍तान भी शामिल हुए थे. भारत और ईरान ने 1950 में जहां टिड्डियों से निपटने में मदद की, वहीं पाकिस्‍तान ने सऊदी अरब में टिड्डियों के सर्वे के लिए दो विमान मुहैया कराए थे. इसके बाद 1958 से लेकर 1961 के बीच हुए हमलों के दौररान ईरान, अफगानिस्‍तान, पाकिस्‍तान और भारत का एक समूह बनाने का फैसला लिया गया.

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एफएओ डेजर्ट लोकस्‍ट कमीशन का गठन 1964 में किया गया. तब से कमीशन हर साल सत्र का आयोजन करता है.

इस फैसले के बाद 1964 में एफएओ डेजर्ट लोकस्‍ट कमीशन का गठन किया गया. तब से कमीशन हर साल सत्र का आयोजन करता है. ये सत्र 1965 और 1999 में नहीं हुआ था, लेकिन 1971 में आयोजित किया गया था. पिछले 6 साल में भारत और पाकिस्‍तान के संबंधों में काफी कड़वाहट आ गई है. इसके बाद भी 2014, 2016 और 2018 में सत्र का आयोजन किया गया. इन बैठकों में कोई राजनयिक तो नहीं आया, लेकिन लोकस्‍ट कंट्रोल एक्‍सपर्ट्स शामिल हुए.

जून और अक्‍टूबर-नवंबर में दोनों देशों के बीच होती है बैठक
भारत और पाकिस्‍तान ने 1977 में सीमा पर बैठकों का दौर शुरू किया था. इसके बाद 1991 से लेकर 2003 तक गर्मियों में टिड्डी नियंत्रण अधिकारियों ने अपने-अपने देश में सीमा सर्वेक्षण किया. वहीं, 2011 को छोड़कर 2005 से 2018 तक हर साल संयुक्‍त सीमा बैठकों का आयोजन होता रहा. द इंडियन एक्‍सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, ये बैठकें मुंबई हमले और तमाम राजनयिक उठापटकों के बाद भी होती रही हैं.

जीरो प्‍वाइंट पर हर साल जून और अक्‍टूबर-नवंबर में बैठक होती है. बैठकों के लिए प्रोटोकॉल के मुताबिक पहले से ही तैयारी कर ली जाती है. ये बैठकें सुबह के समय में की जाती हैं. दोनों देश पाक्षिक बुलेटिन, एफएओ बुलेटिन और सर्वे लोकेशन मैप साझा करते हैं. इन बैठकों में दोनों देशों के बीच राजनीतिक और राजनयिक मसलों पर किसी भी तरह की चर्चा से बचा जाता है.

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