हवाई यात्रा करनी पड़े तो कौन सी सीट वायरस से सबसे ज्यादा सेफ है? coronavirus how safe is flight travel during and which seat is safer | knowledge – News in Hindi
फ्लाइट में कम पनपते हैं वायरस
हाल ही में अमेरिका के Center for Disease Control and Prevention (CDC) ने बताया कि ज्यादातर वायरस और दूसरे जर्म्स जैसे कि बैक्टीरिया या फिर फंगस फ्लाइट में नहीं पनप पाते हैं. ये बात CDC ने एक खास संदर्भ में कही थी, जिसमें बहुत से लोग मांग कर रहे थे कि फ्लाइटों में बीच की सीट खाली छोड़ी जाए ताकि सोशल डिस्टेंसिंग बनी रह सके. CDC ने अपनी एविएशन गाइडलाइन में बीच की सीट खाली रखने की बात नहीं कही है. लोगों का डर खत्म करने के लिए CDC ने बताया कि फ्लाइट में जिस तरह से हवा सर्कुलेट होती है और जिस तरह से फिल्टर होती है, उसमें वायरस के पनपने का डर बहुत कम रहता है.
स्टडी में बताया गया है कि हवाई जहाज में गलती से कोई मरीज बैठ जाए तो उससे संक्रमण कितनी दूर तक फैलेगा (Photo-pixabay)
क्यों कम है खतरा
ऐसी बीमारियां जो छींक, खांसी से फैलने वाली वॉटर ड्रॉपलेट्स से फैलती हैं, उनके बारे में गाइडलाइन में बताया गया है कि बीमारी तभी फैलती है, जब फ्लाइट में सवार होने वाला कोई भी यात्री सर्दी-खांसी से पीड़ित हो. हवा में फैले वायरस मरीज के बगल की सीट पर बैठे यात्री को प्रभावित कर सकते हैं. हालांकि ऐसा तभी होता है जब एयरफ्राफ्ट का वेंटिलेशन ठीक तरीके से काम न कर रहा हो. अब ज्यादातर फ्लाइट्स में रिसर्कुलेटिंग सिस्टम काफी अच्छा होता है, जिसके कारण केबिन की हवा 50% तक रिसाइकिल हो जाती है. इससे वायरस के फैलने का डर काफी कम हो जाता है.
कितनी दूर तक पहुंचता है वायरस
एक स्टडी में बताया गया है कि हवाई जहाज में गलती से कोई मरीज बैठ जाए तो उससे संक्रमण कितनी दूर तक और कितने प्रतिशत तक फैल सकता है. इमोरी यूनिवर्सिटी और जॉर्जिया टेक के वैज्ञानिकों की ये स्टडी बताती है कि मरीज के बगल और आगे-पीछे की दो सीटों तक 80% तक खतरा हो सकता है. इससे दूर बैठे यात्रियों तक पहुंचते हुए खतरा 1% हो जाएगा. वहीं फ्लाइट क्रू, जो फ्लाइट में यात्रियों की मदद के लिए लगातार घूमते रहते हैं, उन्हें 5% से 20% तक खतरा होता है.
खिड़की वाली सीट पर बैठे यात्री को संक्रमण का डर सबसे कम रहता है (Photo-pixabay)
कौन सी सीट है सबसे ज्यादा सुरक्षित
क्या मिडिल, विंडो या आइल सीट में भी खतरा कम या ज्यादा होता है? ये सवाल भी बार-बार उठ रहा है. इस बारे में फ्लाई हेल्दी रिसर्च टीम (FlyHealthy Research Team) का मानना है कि खिड़की वाली सीट पर बैठे यात्री को संक्रमण का डर सबसे कम रहता है, वहीं आइल पर खतरा सबसे ज्यादा रहता है क्योंकि वे लगातार वॉशरूम आते-जाते लोगों के संपर्क में आते हैं. ये भी कहा जा रहा है कि अगर यात्री विंडो सीट पर है और पूरी यात्रा के दौरान बैठा ही रहा तो उसके संक्रमित होने की आशंका नहीं के बराबर है अगर उसके बगल में कोई मरीज न बैठा हो.
खतरा तब भी है
हालांकि इसके बाद भी हवाई यात्रा में कोरोना का खतरा बना हुआ है. ऐसा इसलिए है क्योंकि हम फ्लाइट में बैठने से पहले और उससे बाहर आने के दौरान या एयरपोर्ट पर ही बहुत से लोगों के संपर्क में आते हैं. सिक्योरिटी चेक या टर्मिनल में लोगों का संपर्क होता ही होता है. इस दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं हो पाता है. साथ ही पूरी तरह से भरी हुई फ्लाइट्स में अगर कोई भी संक्रमित है तो खतरा कहीं न कहीं रहता ही है.
हम फ्लाइट में बैठने से पहले और उससे बाहर आने के दौरान या एयरपोर्ट पर ही बहुत से लोगों के संपर्क में आते हैं (Photo-pixabay)
बनाई गई गाइडलाइन
इन्हीं सब बातों को देखते हुए CDC ने हाइजीन के पालन के तरीके सुझाए हैं. ये तरीके खासकर पायलट और क्रू मेंबर्स के लिए है. 11 मई को यूएस के डिपार्टमेंट ऑफ ट्रांसपोर्ठ एंड फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन ने अपने सारे स्टाफ को CDC की गाइडलाइन का सख्ती से पालन करने को कहा है. इसमें हाथ धोने, मास्क लगाए रखने के अलावा ये बात भी है कि अगर यात्रा के दौरान कोई यात्री बीमार दिखे तो क्या करना है. इसके तहत बीमार को सबसे अलग बैठाने, एयरपोर्ट पर पहले से उसकी जानकारी भेजने जैसी बातें शामिल हैं. इसके बाद एयरक्राफ्ट की सफाई करवाई जानी होगी.
मिडिल सीट खाली छोड़ना फायदेमंद?
विमान सेवाएं दोबारा शुरू कर रहे कई देश इस उलझन में हैं कि क्या बीच की सीट खाली छोड़ने पर कोरोना का डर कम हो सकेगा! फिलहाल कोरोना वायरस के मामले में माना जा रहा है कि कम से कम 2 मीटर यानी लगभग 6 फीट की दूरी दो लोगों के बीच होनी चाहिए. लेकिन अभी की फ्लाइट्स को देखें तो उनमें एक सीट लगभग 45 सेंटीमीटर चौड़ी होती है और तीनों ही सीटें एक दूसरे से सटी हुई होती हैं. यानी बीच की सीट खाली भी छोड़ दी जाए तो भी दो यात्रियों के बीच लगभग 45 सेंटीमीटर की ही दूरी होगी. इससे 2 मीटर की दूरी का तो पालन नहीं होगा, बल्कि फ्लाइट का लोड फैक्टर बढ़ जाएगा.
सोशल डिस्टेंसिंग के लिए कम यात्रियों को बिठाएंगे तो विमान कंपनियों के लिए फ्लाइट चलाना घाटे का सौदा होगा (Photo-pixabay)
क्या है लोड फैक्टर
लोड फैक्टर के तहत किसी भी तरह के पब्लिक ट्रांसपोर्ट जैसे बस, ट्रेन या हवाई जहाजों में ये देखा जाता है कि उसकी सीट या क्षमता के हिसाब से कितने लोग बैठे हैं और इसका कितना फायदा हो रहा है. हर ट्रांसपोर्ट की कुछ फिक्स्ड कॉस्ट होती है. ये कीमत सीट की टिकटों के बिकने पर वसूल होती है. जितने ज्यादा लोग होंगे, ईंधन की कीमत पर लगे पैसे उतने ही कम होंगे. यही वजह है कि पूरी तरह से भरे हुए ट्रांसपोर्ट को फ्यूल इफिशिएंट कहा जाता है. यही लोड फैक्टर है, जिससे ट्रांसपोर्ट अपनी लागत वसूलने के बाद प्रॉफिट भी देता है.
अब विमान सोशल डिस्टेंसिंग के लिए कम यात्रियों को बिठाएंगे तो विमान कंपनियों के लिए फ्लाइट चलाना घाटे का सौदा हो जाएगा. अगर किराया ज्यादा वसूलेंगे तो यात्रियों को घाटा होगा. यही वजह है कि सारी एयरलाइंस बीच की सीट खाली छोड़ने के पक्ष में भी नहीं हैं. यहां तक कि CDC भी सीट छोड़ने की बात नहीं कह रहा.
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