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सुशील शर्मा जी के कांकेर निवास पर अचानक रायपुर से पुलिस टीम आ धमकी

केंद्र व राज्य सरकार के पत्रकार विरोधी रवैया का खुल कर विरोध करे-कमल

रायपुर । छत्तीसगढ़ पत्रकार सुरक्षा कानून संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक कमल शुक्ला ने बस्तर बंधु के संपादक कांकेर के वरिष्ठ पत्रकार सुशील शर्मा के खिलाफ छत्तीसगढ़ सरकार के एक अधिकारी की रिपोर्ट पर बिना जांच-पड़ताल किए और पत्रकार को सफाई का मौका दिए बिना एक तरफा रिपोर्ट दर्ज करने को लेकर कड़ी आपत्ति जताते हुए निंदा की गई है साथ ही इस मामले को लेकर प्रदेश भर के पत्रकारों से
उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार के लगातार पत्रकार विरोधी रवैये के खिलाफ आंदोलन तेज करने की अपील की है।

ज्ञात हो कि श्री सुशील शर्मा द्वारा बस्तर बंधु में तथ्य के साथ समाचार प्रकाशित किया गया था कि कैसे छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा नियमों को तिलांजलि देकर जनता के पैसे को बर्बाद करने के नियत से पर्यटन मंडल में अलग से पद से सृजित कर उसी विभाग से बर्खास्त हो चुके एक महिला को जनसंपर्क अधिकारी के रूप में नियुक्त कर दिया गया। इस समाचार को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा किसी कार्यवाही के बजाय उल्टे पत्रकार पर कार्यवाही करने की नियत से अवैध रूप से लाभान्वित उक्त महिला द्वारा रिपोर्ट दर्ज कराकर एकतरफा कार्यवाही करा दिया गया। इस मामले को लेकर पत्रकार सुरक्षा कानून आंदोलन के मुखिया रहे वरिष्ठ पत्रकार कमल शुक्ला ने प्रदेश के पत्रकारों से एक अपील जारी किया है। यहां हम वह उस अपील को ज्यों का त्यों

आपके सामने रख रहे हैं -सबका संदेश ग्रुप

    ????अपील

समस्त परिचित, अपरिचित, वरिष्ठ, कनिष्ठ, पत्रकार बन्धुओं को पत्रकार सुरक्षा कानून संयुक्त संघर्ष समिति के प्रदेश संयोजक कमल शुक्ल’ की ओर से सादर अभिवादन,

बिना किसी विशेष भूमिका के मैं सीधे विषय पर आना चाहूंगा कि हमारे छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार बस्तर बन्धु के संपादक /प्रकाशक भाई सुशील शर्मा जी के साथ विगत 20 मई को जो घटना हुई है, वैसी शायद भारत में किसी पत्रकार के साथ ना हुई होगी।

????तत्काल पुलिस कारवाही

सुशील शर्मा जी के कांकेर निवास पर अचानक रायपुर से पुलिस टीम आ धमकी, पूछने पर पता चला कि बस्तर बन्धु के विगत अंक में श्रीमती अनुराधा दुबे पर कटाक्ष एवं विशेष प्रकरण बता पर्यटन मण्डल में पद न होते हुए भी उसी मण्डल की बर्खास्तशुदा इस महिला को जनसम्पर्क अधिकारी के पद पर नियुक्ति दिये जाने के राज्य सरकार के कैबिनेट के फैसले पर सवाल उठाते जो भंडाफोड़ किया गया है, उससे आहत होकर श्रीमती अनुराधा दुबे ने थाने में रिपोर्ट की है। यदि इस प्रकाशन से वे आहत थीं तो मानहानि का प्रकरण दर्ज करा सकती थी, पर उन्होंने सरकारी संरक्षण पर सुशील शर्मा जी के खिलाफ सीधे थाने में रिपोर्ट दर्ज करा लिया 
इतना ही नही बल्कि बाकायदा रोजनामचा, केस डायरी आदि ताबड़तोड़ तैयार कर लिए गए और पुलिस टीम गिरफ्तारी के लिए कांकेर भी आ धमकी

????इस प्रकार की कार्यवाही हुई थाने से

सुशील शर्मा जी ने बिना कोई हुज्जत किए पुलिस वालों को यथोचित आदर देते हुए उन्हें अपना काम करने को कहा। गिरफ्तारी हुई और 5 हजार के मुचलके पर रिहाई भी हो गई। योजना तो गिरफ्तार करवा रायपुर के जेल भेजने की थी पर उनके सलाहकार से कुछ चूक हो गयी, धाराएं जमानतीय थीं अत: देनी पड़ी। पढ़ने सुनने से तो यह बहुत साधारण बात लगती है किंतु वास्तव में यह अत्यंत गंभीर तथा चिंतन विषय है कि क्या आने वाले दिनों में पत्रकार बन्धुओं के साथ ऐसा ही व्यवहार करने का सरकार ने इरादा कर लिया है ?

????नियम यह कहता है
किसी भी पत्रकार के खिलाफ़ दर्ज कराई गई रिपोर्ट पर एकतरफा एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए या नहीं यह देखने राज्य सरकार द्वारा बाकायदा एक विशेषज्ञ कमेटी बनाई गयी है, जिसकी बाकायदा बैठक होती है, जिसमें मामले पर विचार किया जाता है कि क्या यह मामला इतना गंभीर है, कि एफआईआर करना व गिरफ़्तारी आवश्यक है

रायपुर की पुलिस ने भी उनसे इस विषय में बिना कोई पूछताछ किए, जो भी वह लिखाती गई, लिखती गई और एफ आई आर तैयार करके रख दी। यही नहीं रोजनामचा, केस डायरी सब कुछ मानो यह हुकुम सीधे भारत के राष्ट्रपति से आया हो और जिसे तत्काल करना जरूरी हो। इतनी अधिक तत्परता रायपुर क्या कहीं भी पुलिस ने कभी किसी पत्रकार के विरुद्ध दिखाई हो, ऐसा भारत के इतिहास में बल्कि ब्रिटिश भारत के इतिहास में भी नहीं मिलता, ब्रिटिश भारत में भी पत्रकारों के विरुद्ध जो मामले बनते थे, उन पर बहुत सोच-विचार के बाद ही और पक्के सबूतों की बुनियाद पर ही जुर्म कायम किया जाता था और आगे अदालत में पेश किया जाता था। यह नहीं कि सीधे
घर पहुंच गए।

आश्चर्य है कि 3 दिनों पूर्व विगत 20 मई को बस्तर बन्धु के संपादक सुशील शर्मा एकतरफा तौर पर बिना सफाई का मौका दिए भारतीय दण्ड संहिता की थारा 509 व 504 के तहत सीधे गिरफ्तार कर लिए गए जिसके लिए पुलिस ने रायपुर से कांकेर तक लॉकडाउन/ कोरोना काल के समय में भी दौड़ लगा दी पता नहीं किस तानाशाह का आदेश था कि रिपोर्ट पर जल्दी से जल्दी फोरन से पेस्तर खड़े पैर कार्यवाही की जाए। साफ जाहिर होता है कि पुलिस पर किसी न किसी बड़े से बड़े भ्रष्ट महोदय का आशीर्वाद था । जिसके दबाव में पुलिस ने सारी कार्यवाही ताबड़तोड़ कर डाली।

यह बिल्कुल वैसा ही हुआ मानो चोर ने साहूकार के खिलाफ रिपोर्ट लिखवा दी हो और पुलिस ने चोर का साथ देते हुए साहूकार से मुचलका भरवा कर गिरफ्तारी तथा रिहाई की हो ऐसी कार्यवाही भविष्य में किसी भी पत्रकार के साथ हो सकती है सबको सावधान रहना होगा और इस काले कानून जो कि पता नहीं बना भी है या नहीं की कोई भी एरा गैरा नत्थू खैरा आकर लगभग आधी शताब्दी तक मूल्य आधारित पत्रकारिता करने वाले पत्रकार पर एफ आई आर कर दे और पुलिस दौड़ कर कार्यवाही करें ऐसे में यह भी होगा कि किसी भी अपराध की कोई भी खबर किसी भी अखबार में देने से संवाददाता डरेगा की कहीं मैं जिस चोरी या बलात्कारी या डाकू तस्कर के खिलाफ लिख रहा हूं वही थाना पहुंचकर मेरे ही खिलाफ रिपोर्ट न कर दे यानी यह मान कर चलिए की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दिन अब इने गीने ही रह गए हैं अगर हम सभी पत्रकार बन्धु मिलकर विरोध ना करें तो वह दिन और भी जल्दी आ सकते हैं समस्त पत्रकार बन्धुओं से मेरा निवेदन है की इस विषय पर अपने अपने समाचार पत्रों तथा चैनलों पर अपने विचार व्यक्त करें तथा केंद्र तथा राज्य सरकार की इस नए किस्म के पत्रकार विरोधी रवैया के खिलाफ जमकर विरोध करें।

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