देश दुनिया

Lockdown Diaries: 5 महीने का भ्रूण हाथ में लेकर रात भर रोते रहे पति-पत्नी, लेकिन नहीं पसीजा डॉक्टरों का दिल-Lockdown diaries husband wife lost five month fetus due to inhuman doctors in vrindavan-covid 19 reality of hospital-pregnant woman dlnh | delhi-ncr – News in Hindi

नई दिल्ली. कोरोनावायरस (COVID-19) और लॉकडाउन (Lockdown) काल में लोगों के बेहद दर्दनाक और डरावने अनुभव सुनने को मिल रहे हैं. आपदा की इस घड़ी में इंसानियत, कर्तव्य, मानवता और दया महज शब्द बनकर रह गए हैं. रोजाना हो रही घटनाएं परत दर परत समाज के क्रूर चेहरे को उजागर कर रही हैं. लॉकडाउन डायरीज (Lockdown Diaries) में इस बार किस्सा मथुरा (Mathura) जिले के वृंदावन का है. जिसमें भुक्तभोगी पिता गिरधारी दास ने न्यूज़ 18 हिंदी को अपनी आपबीती बताई है.

पांच महीने की गर्भवती पत्नी की ऐसे शुरू हुई मुसीबत
मेरी पत्नी पांच महीने की गर्भवती थी. जनवरी महीने से उसका इलाज डिस्ट्रिक्ट कम्बाइंड हॉस्पिटल वृंदावन में चल रहा था. कोरोना के कारण कुछ दिन के लिए सील हुए इस अस्पताल को 13 मई को दोबारा खोला गया. क्योंकि इनका (पत्नी का) एक भी अल्ट्रासाउंड नहीं हुआ था और ना ही टीटी का टीका लगा था और कमर में तेज दर्द भी था, लिहाजा मैं पत्नी को लेकर अस्पताल पहुंचा. 13 मई को वहां की डॉक्टर ने मेरी पत्नी को दूर से देखा और कहा कि अल्ट्रासाउंड 14 मई को होगा. साथ ही दर्द के लिए कुछ गैस की गोलियां दीं और कहा कि इससे दर्द बंद हो जाएगा, ऐसा प्रेग्नेंसी में होता है.

8-10 फुट की दूरी से देख रही थी डॉक्टर, चार गोली देकर भेज दिया घरइसके बाद हम घर लौट गए, लेकिन दवाई देने के बाद भी पत्नी का दर्द ठीक नहीं हुआ. वहीं अल्ट्रासाउंड कराने के लिए अगले दिन यानी 14 मई को सुबह हम लोग फिर अस्पताल पहुंचे. यहां देखा तो डॉक्टर सभी मरीजों को करीब आठ से 10 फीट की दूरी से देख रही थीं. मेरी पत्नी ने गुजारिश की कि उन्हें बहुत दर्द है लेकिन डॉक्टर ने फिर से कुछ गोलियां दे दीं और कहा कि अल्ट्रासाउंड अभी नहीं हो सकता है.

हम फिर से घर लौट आए लेकिन दोपहर में पत्नी की तबीयत अचानक बिगड़ने लगी. तब मैं उसे स्कूटी पर बिठाकर दोबारा अस्पताल पहुंचा लेकिन वहां डॉक्टर मौजूद नहीं थीं. काफी देर तक इंतजार करने के बाद भी डॉक्टर नहीं आईं, पूछने पर नर्स ने बताया कि उसने फोन पर डॉक्टर से बात कर ली है. हमें फिर से कुछ दवा देकर घर भेज दिया गया. घर पहुंचते ही पत्नी को अचानक ब्लीडिंग शुरू हो गई. इसे देख हम दोनों काफी घबरा गए.

बड़े चैरिटेबल अस्पताल में चार घंटे कुर्सी पर तड़पती रही पत्नी, बहता रहा खून
दोपहर के तीन बज रहे थे. क्योंकि वो अस्पताल बहुत दूर था और लॉकडाउन में अधिकांश निजी क्लिनिक बंद थे, तो मैं पत्नी और बुजुर्ग मां को स्कूटर पर बिठा कर एक नजदीकी बड़े चैरिटेबल अस्पताल में ले गया. यहां मैंने पैसे देकर इमरजेंसी का पर्चा बनवाया और पत्नी की समस्या बताई लेकिन यहां डॉक्टर के बजाय नर्स थी. उन्होंने पत्नी को वहीं कुर्सी पर बैठने को कहा और मुझे ब्लड का सैंपल लैब में देने के लिए कहा.

मेरी पत्नी दर्द से कराह रही थी, ब्लीडिंग से उसके सब कपड़े खराब हो गए थे. मैंने नर्सों से विनती की कि टेस्ट की रिपोर्ट आ जाएगी लेकिन इनका ट्रीटमेंट तो शुरू कर दीजिए. तब उन्होंने अल्ट्रासाउंड करा कर लाने के लिए कहा. मैंने उन्हें बताया कि लॉकडाउन में कहीं भी अल्ट्रासाउंड नहीं हो रहा. अगर आपको पता हो तो बताइए मैं वहीं ले जाता हूं. यह सुन उन्होंने फटकारा और कहा कि ये सब उनको नहीं पता बस अल्ट्रासाउंड करा कर लाओ. मैं अल्ट्रासाउंड के लिए इधर से उधर भटकता रहा लेकिन लॉकडाउन में सब बंद था. दोपहर तीन बजे से शाम के छह बज गए, मेरी पत्नी का खून बहकर कुर्सी के नीचे फर्श पर फैलने लगा. मेरी मां रोने लगी, पत्नी दर्द से चीख रही थी. मैं नर्स को आवाज लगाता रहा, लेकिन मेरी बात सुनी नहीं गई.

आधे घंटे तक वॉशरूम में भ्रूण हाथ में लेकर मांगती रही मदद
चूंकि उस अस्पताल में महिला के साथ महिला ही रहती है. लिहाजा पौने सात बजे के आसपास मां, मेरी पत्नी को वॉशरूम में ले गयी. खून पूरे फर्श पर फैल गया. तेज दर्द के साथ ही पांच महीने का भ्रूण बाहर आ गया. मेरी पत्नी गोद में उस भ्रूण को लेकर बैठी रही, मां मदद मांगती रही. आधा घंटे तक यही हाल रहा. मैं झल्ला उठा, गुहार भी लगाई, तब नर्सों ने रिपोर्ट मंगाई. उन्होंने पत्नी से बच्चा लिया और उसे ट्रे में रख दिया. साथ ही पत्नी का ट्रीटमेंट करने को राजी हो गए.

खुली ट्रे में रखकर दे दिया बच्चा, रात को साढ़े 10 बजे बोले कहीं भी ले जाओ
हमें प्राइवेट कमरा दिया गया. मां बीमार थी इसलिए उन्हें वापस घर छोड़ आया. पत्नी को ड्रिप लगाई गयी. रात के साढ़े 10 बजे नर्सों ने मुझसे कहा कि बच्चे के भ्रूण को डिस्पोज ऑफ करने के लिए कहीं भी बाहर ले जाओ. मैंने कहा कि इस वक्त पत्नी को छोड़कर नहीं जा सकता, आप उसे अस्पताल में ही कहीं रख लें सुबह ले जाऊंगा. उन्होंने कहा कि अभी ले जाना होगा.

मैंने मिन्नतें कर के कहा कि बाहर तो नहीं जा सकता लेकिन वार्ड में ले जाता हूं. तब उन्होंने कहा जहां चाहे ले जाओ. बच्चे को लेने पहुंचा तो देखा कि बच्चा शाम से उसी ट्रे में पड़ा था, उसे किसी चीज से ढका नहीं गया था जिससे वो काला पड़ गया था. मैं हिम्मत कर के बच्चे को अपने प्राइवेट वार्ड में ले आया. रात भर उसे देख-देख कर मैं और मेरी पत्नी रोते रहे. अगले दिन सुबह 10 बजे अपने कुछ दोस्तों को बुलाकर मैंने उसे दफनाया.

सोशल मीडिया पर शेयर किया दर्द, लोग बोले शिकायत करो
15 मई को पत्नी की अस्पताल से छुट्टी कर दी गई और मुझे 10 हजार का बिल थमा दिया गया. वहां से लौटकर मैंने आपबीती सोशल मीडिया पर पोस्ट की तो बहुत सारे लोगों ने हिम्मत बंधाई, साथ ही शिकायत करने के लिए कहा. लेकिन अभी मेरी पत्नी का अस्पताल में इलाज चल रहा है और उसकी हालत भी ठीक नहीं है. लिहाजा कुछ दिन में मैं जरूर न्याय के लिए गुहार लगाऊंगा ताकि ये लोग मुझ जैसे और अन्य के साथ ऐसा बुरा बर्ताव न करें. एक तरफ डॉक्टर कोरोना के मरीजों को बचाने में जी-जान लगा रहे हैं वहीं दूसरी तरफ ऐसे भी डॉक्टर हैं जो अपना फर्ज भुलाकर मानवता को तार-तार कर रहे हैं.

इस संबंध में जब मथुरा के सीएमएस (महिला) बसंत लाल से बात की गईं तो उन्होंने कहा कि ये उनके अंडर में नहीं आता. वहीं मथुरा सीएमओ से बात करने की कोशिश की गईं लेकिन उनकी तरफ से कोई रेस्पॉन्स नहीं मिला.

ये भी पढ़ें:-

Lockdown: देवबंद-बरेली के उलेमा बोले-ईद के दिन मस्जिद में नहीं जा पाएं तो घर पर पढ़ें यह नमाज़

Lockdown Diary: पैदल घर जा रहे मजदूर को लूटने आए थे, तकलीफ सुनी और 5 हजार रुपए देकर चले गए

Lockdown: केन्द्र सरकार ने प्रवासी मजदूरों को राशन देने के लिए किया यह बड़ा ऐलान



Source link

Related Articles

Back to top button