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आजमगढ़ में जेठ की दुपहरी में खुले आसमान के नीचे Quarantine होने को मजबूर हैं प्रवासी | In Azamgarh, migrants are forced to quarantine under the open sky in 42 degree temperature | azamgarh – News in Hindi

आजमगढ़ में जेठ की दुपहरी में खुले आसमान के नीचे Quarantine होने को मजबूर हैं प्रवासी

खुले आसमान के नीचे खुद को क्वारंटाइन कर रहे प्रवासी

जेठ की तपती दोपहरी में प्लास्टिक डालकर रह रहे जहानागंज के सेवटा गांव के महेन्द्र कुछ दिनों पूर्व तेलांगाना से लौटे हैं. बाहर से आये ये प्रवासी अपनों का जीवन खतरे में नहीं डालना चाहते हैं.

आज़मगढ़. 42 से 45 डिग्री तापमान और चमड़ी को झुलसाने के लिए बेचैन चिलचिलाती धूप के बीच कुछ प्रवासी (Migrants) खुले आसमान के नीचे गुजर बसर को मजबूर है, कारण की प्रशासन ने इनके लिए कोई व्यवस्था नहीं की है और छोटे घर होने के कारण ये अपने घरों में क्वारंटाइन नहीं हो सकते इसलिए बाहर से आये ये प्रवासी मजदूर अपनों की सुरक्षा की खातिर आम के बाग या खेतों में शरण लिए हैं. दरअसल वैश्विक महामारी कोरोना वायरस (Pandemic coronavirus) के संक्रमण से बचाव के चलते देशव्यापी लॉकडाउन (Lockdown) चौथे चरण में प्रवेश कर चुका है. काम-धंधे सब ठप होने के चलते ये प्रवासी घरों को लौट रहे हैं.

अपनों का जीवन खतरे में नहीं डालना चाहते
आजमगढ़ जनपद में बाहर से आये ये प्रवासी अपनों का जीवन खतरे में नहीं डालना चाहते हैं. यही कारण है कि इन्हें जेठ की दुपहरी भी प्यारी लग रही है. वहीं प्रशासन संवेदनहीन बना है प्रवासियों को क्वारंटाइन करने के दावे धरातल पर हवा-हवाई साबित हो रहे हैं. जेठ की तपती दोपहरी में प्लास्टिक डालकर रह रहे जहानागंज के सेवटा गांव के महेन्द्र कुछ दिनों पूर्व तेलांगाना से लौटे है. लॉकडाउन के बाद जब डेढ़ माह बीत गये तो महेन्द्र परेशान हो गये उनके पास जमापूंजी भी समाप्त हो गयी थी. जिसके बाद वे किसी तरह गांव तो पहुंचे लेकिन घर में रहने के लिए अलग से जगह नहीं थी. जिसके कारण वे घर के बाहर स्थित एक खुले स्थान में प्लास्टिक डालकर रहने लगे. वो बताते हैं कि ग्राम प्रधान या प्रशासन ने क्वारंटाइन की कोई व्यवस्था नहीं की ऐसे में उनके पास यही उपाय था.

जब धूप तेज होती है तो पास के बाग में चले जाते हैंपरिवार के लोग घर से भोजन लाकर महेन्द्र को देते हैं. उनका कहना है कि वे नहीं चाहते अगर उनको संक्रमण हो तो इससे हमारा परिवार और गांव के लोग संक्रमित हों. वहीं फूलपुर के गुमकोठी गांव निवासी विवेक गौड़ महाराष्ट्र के खारपड़ में फास्ट फूड बेचने का काम करते थे. कोरोना संकट के बाद हुए लॉकडाउन में काम बंद हो गया. लॉकडाउन खुलने के इंतजार में डेढ़ माह तक का समय जैसे-तैसे गुजारा. उनके पास महाराष्ट्र सरकार की मदद नहीं पहुंच रही थी. जिसके बाद वे 35 सौ रुपये में एक ट्रक में सवार होकर करीब पांच दिन पूर्व किसी तरह मुंबई से घर पहुंचे. लेकिन यहां भी होम क्वारंटाइन के लिए घर में कोई अलग जगह नहीं थी. ग्राम प्रधान ने स्कूल के ताले नहीं खुलवाये. जिसके बाद विवेक ने घर से कुछ दूर खुले आसमान के नीचे अपने को क्वारंटाइन कर लिया. जब धूप होती है तो पास के आम के बाग में चले जाते हैं उनका कहना है कि परिवार की सुरक्षा सर्वोपरि है.

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First published: May 22, 2020, 4:34 PM IST



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