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OPINION: शिशु मृत्यु दर में बढ़ोतरी, क्यों नहीं सार्थक हो पा रहे प्रयास? | opinion-on-increase-in-infant-mortality-rate-of-madhya-pradesh | – News in Hindi

मध्‍य प्रदेश की शिशु मृत्यु दर में फिर बढ़ोतरी हो गई है. किसी को इसकी जानकारी हो या न हो, रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया द्वारा मई 2020 में सैंपल रजिस्ट्रेशन सर्वे के जारी आंकड़ों ने एक बार फिर सभ्‍य समाज को शर्मसार किया है. सरकारें, सरकारी विभाग और उनके अधिकारी-कर्मचारी और गैर सरकारी संगठन अपने-अपने दावों के साथ इस बढ़ोतरी के लिए एक दूसरे को दोष दे सकते हैं. वे गर्भवती माताओं, कुपोषण और गर्भस्‍थ भ्रूण को भी दोष दे सकते हैं. लेकिन यह कालिख है जो मिटाए, नहीं मिट रही है और सवाल है कि हम नवजातों को क्‍यों नहीं बचा पा रहे हैं?

सैंपल रजिस्ट्रेशन सर्वे (एसआरएस) की शिशु मृत्युदर की रिपोर्ट में मध्य प्रदेश-48, उत्तर प्रदेश-43, असम-41, छत्तीसगढ़-41, ओडिशा-40, राजस्थान-37, बिहार-32, उत्तराखंड-31, हरियाणा-30, झारखंड-30, आंध्र प्रदेश-29. की जानकारी दी गई है. यह आंकड़े 2018 की रिपोर्ट के आधार पर 8 मई 2020 में जारी किए गए हैं.

सबसे बुरी हालत में मध्‍यप्रदेश
भारत में शिशु मृत्युदर 32, जबकि मध्‍य प्रदेश में यह आंकड़ा देश में सर्वाधिक 48 पर जा पहुंचा है. राज्‍य के ग्रामीण क्षेत्रों में शिशु मृत्युदर 52 और शहरी क्षेत्र में 36 है. शर्मनाक स्थिति है कि मध्य प्रदेश लगातार 15वीं बार शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) में सबसे अव्वल रहा. मध्यप्रदेश में शिशु मृत्यु दर 2017 में 47 थी, जो बढ़कर 48 हो गई है. यहां 1000 जीवित जन्मे बच्चों में 48 बच्चों की मृत्यु सालभर में ही हो जाती है, यानी वो अपना पहला जन्मदिन भी नहीं मना पाते हैं.

मध्य प्रदेश में ओवरऑल लड़कियों की शिशु मृत्युदर लड़कों की अपेक्षा कम है, जो क्रमश: 46 और 51 है. नवजात बच्चों (29 दिन के पहले) की मौत के मामले देखें तो 21 राज्यों में मध्‍य प्रदेश 55 बच्चों के साथ आखिरी पायदान पर था, यानी प्रति 1000 बच्चों में से 55 की मौत 5 साल के पहले हो जाती है. शिशु की मृत्यु दर की गणना करते समय उन बच्चों को शामिल किया जाता है, जिनकी मौत जन्म के 29 दिन के भीतर हो जाती है. यहां भी मध्‍य प्रदेश, 32 की शिशु मृत्यु दर के साथ स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में सबसे कमजोर माने जाने वाले ओडिशा के साथ बराबरी पर था. वर्ष 2004 के बाद से ही मध्य प्रदेश की स्थिति शिशु मृत्यु दर के मामले में देश में सबसे खराब रही है.

टॉप टेन राज्‍य
राज्‍य शिशु मृत्‍यु दरमध्‍य प्रदेश 48
उत्‍तर प्रदेश 43
असम 41
छत्‍तीसगढ़ 41

ओडिशा 40
राजस्‍थान 37
बिहार 32
उत्‍तराखंड 31
हरियाणा 30
झारखंड 30
आंध्र प्रदेश 29
स्रोत – SRS 2018 की 8 मई 2020 को जारी रिपोर्ट

प्रेरक मॉडल केरल
केरल में शिशुओं की मृत्यु दर भारत के राज्यों में सबसे कम है और स्त्रियों की संख्या पुरुषों से अधिक है (2001 की जनगणना के आधार पर). यह यूनिसेफ (UNICEF) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा मान्यता प्राप्त विश्व का प्रथम शिशु सौहार्द राज्य (Baby Friendly State) है. भारत में किसी राज्‍य को शिशु मृत्‍यु दर कम करने की दिशा में प्रेरक मॉडल माना जाए तो वह केरल ही होगा. केरल में प्रति एक हजार बच्चों के जन्म पर महज 6 की ही मौत होती है. यहीं नहीं, केरल का शिशु मृत्यु दर रूस, श्रीलंका, ब्राजील से भी बेहतर है. रूस में प्रति हजार 8, चीन में प्रति हजार 9, श्रीलंका में प्रति हजार 8 और ब्राजील में प्रति हजार 15 बच्चों की मौत होती है.

मध्‍य प्रदेश की शिशु मृत्यु दर में फिर बढ़ोतरी हो गई है.

भारत में शिशु मृत्युदर 32, जबकि मध्‍य प्रदेश में यह आंकड़ा देश में सर्वाधिक 48 पर जा पहुंचा है.

केरल देश का एकमात्र राज्य है, जो शिशु मृत्यु दर (इंफैंट मॉर्टिलिटी रेट) रोकने में अमेरिका के सा‍थ खड़ा है. केरल में बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था और स्वास्थ्य नीतियां, शिक्षा दर और संस्थागत प्रसव की बेहतर स्थिति के साथ ही गर्भवती महिलाओं के संतुलित भोजन की व्यवस्था आदि के कारण यह आंकड़ा लगातार कोशिशों से कम किया जा सका है. केरल में साक्षरता दर ज्यादा है. वहां की महिलाएं खुद व पारिवारिक तौर भी गर्भ ठहरने के साथ ही सचेत हो जाती हैं. भोजन, टीका जैसे महत्वपूर्ण कारकों पर ध्यान देती हैं. इसके बाद तमिलनाडु में दूसरे स्थान पर है, यहां प्रति एक हजार पर महज 12 बच्चों की मौत होती है.

आंकड़ों में दुनिया की हकीकत
अमेरिका – 6
रूस – 8
चीन – 9
श्रीलंका – 8
ब्राजील – 15
(शिशु मृत्यु दर प्रति हजार)

शिशु मृत्यु दर को ऐसे समझें
शिशु मृत्यु दर प्रति 1000 जीवित जन्मे शिशुओं में से एक वर्ष या इससे कम उम्र में मृत शिशुओं की संख्या है. इसका सबसे बड़ा कारण कम वजन, श्‍वसन संबंधी संक्रमण (न्‍यूमोनिया) को माना जाता है. शिशु मृत्यु के प्रमुख कारणों जन्मजात विकृति, संक्रमण, एसआईडीएस, शिशु हत्या, शोषण, परित्याग और उपेक्षा आदि शामिल हैं. हालांकि 1990 के दशक के अंत तक बच्‍चों की मौतों का कारण दस्‍त लगने और इससे होने वाले डिहाइड्रेशन यानी निर्जलीकरण को माना जाता था. लेकिन अब डब्‍ल्‍यूएचओ की जागरूकता मुहिम ने इसे कुछ कम कर दिया है. संगठन ने दुनियाभर में नमक और चीनी के घोल (ORS) को लेकर जागरूकता अभियान चलाया था.

भारत में नवजात मृत्यु के कारण और उनसे होने वाली मौतों का प्रतिशत:
समय पूर्व जन्म लेना और जन्म के समय बच्चों का वजन कम होना – 35.9 प्रतिशत
निमोनिया – 16.9 प्रतिशत
जन्म एस्फिक्सिया/जन्म आघात – 9.9 प्रतिशत
अन्य गैर संचारी बीमारियां – 7.9 प्रतिशत
डायरिया रोग – 6.7 प्रतिशत
जन्मजात विसंगतियां – 4.6 प्रतिशत
संक्रमण – 4.2 प्रतिशत

कुछ अच्‍छे नतीजे भी हैं
भारत में किए गए सुधार कार्यक्रमों के कारण गांवों में शिशु मृत्यु दर 58 से घटकर 37 हो चुकी है. शहरी क्षेत्र में यह 36 से घटकर 23 हुई है. इसी तरह कुछ राज्‍यों में अच्‍छे नतीजे आ रहे हैं. उत्तराखंड में 2017 में 38 मौतें प्रति हजार थीं, जो कि 2019 में घटकर 32 ही रह गई. यह बहुत तेजी से रिकवरी हुई और 6 प्वाइंट हासिल किए. राजस्थान में 2017 में 41 मृत्यु दर थी, जो 2019 में कम होकर 38 रह गई, यानी राजस्थान ने तेज रिकवरी की और 3 पॉइंट हासिल किए. ये प्वाइंट बिहार, हरियाणा और ओडिशा के बराबर रहे. 2017 में आंध्रप्रदेश में 34 और 2019 में 32 मौतें प्रति हजार बच्चों पर हो रही थीं, यानी जो रिकवरी हो रही थी वह 2 पाइंट थी.

मध्‍य प्रदेश में शर्मनाक स्थिति
मध्‍य प्रदेश के आदिवासी इलाकों में जहां पोषण और मातृ स्वास्थ्य निम्न स्तर पर हैं, वहां नवजात मृत्यु दर 10% से अधिक है. कहीं सरकारी अधिकारी हेराफेरी करते हैं तो कहीं अस्‍पताल कर्मी, स्‍वस्‍थ लोगों की भर्ती कर लेते हैं ताकि रिपोर्ट अच्‍छी आए. एनएचएम के चाइल्ड हेल्थ रिव्यू 2019-2020 में अंडर-रिपोर्टिंग के मामलों का पर्दाफाश किया है. इसके अनुसार 43 ज़िलों में सरकारी अधिकारियों ने पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की 50% से अधिक मौतें दर्ज नहीं की हैं. आंकड़ों को समझें तो राजधानी भोपाल में, तीन सालों में अस्पताल या अन्य कोई स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती होने वाले हर पांच बच्चों में से एक नवजात की मृत्यु हो गई. राज्य में 19.9% की उच्चतम मृत्यु दर, एनएचएम के 2% से नीचे के अनिवार्य प्रमुख प्रदर्शन संकेतक से दस गुना अधिक है.

ऐसे शिशु मृत्यु दर में गिरावट आएगी
राज्‍य सरकारों से लेकर विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन तक शिशु मृत्‍यु दर में गिरावट के लिए प्रयास कर रहे हैं. ऐसे में भारत के लिए विविधता के अनुरूप योजना बनानी होगी. गर्भवती महिला की देखभाल जरूरी है, साथ ही उसे नवजात की देखभाल करने के प्रशिक्षण देने की जरूरत है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि यदि जन्म के समय से लेकर जीवन के पहले सप्ताह तक अगर नवजात शिशुओं की गुणवत्‍ता पूर्ण देखभाल की जाए तो शिशु मृत्यु दर में गिरावट आएगी. प्रत्येक प्रसव और नवजात शिशु को ट्रैक करने की बेहतर प्रणाली का विकास कर स्थिति में सुधार लाया जा सकता है. वहीं न्यू बॉर्न रिसोर्स सेंटर बनाने, नर्सिंग का अलग नियोनेटल कैडर बनाने, मशीनों की उपलब्‍धता और उनकी दुरुस्‍ती तुरंत होने के साथ ही बच्‍चों के वार्ड संक्रमण मुक्‍त रहें, इनसे भी शिशु मृत्यु दर में गिरावट आएगी.

डिस्क्लेमरः ये लेखक के निजी विचार हैं.

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