प्रेम ही संगीत की विषय वस्तु है – अनूप जलोटा
जेसीआई ने ऑनलाईन कराया विशेष कार्यशाला संगीत की पाठशाला का आयोजन
पदमश्री अनूप जलोटा सहित प्रभंजय चतुर्वेदी, उल्लास और दीपेन्द्र हलदर ने बताये गायकी के गुण
जेसीआई दुर्ग-भिलाई एक ऐसी संस्था है जहाँ अलग अलग प्रकार की कई कार्यशालाओं के माध्यम से हमें कुछ न कुछ नया सीखने को मिलता रहता है। संस्था के अध्यक्ष जेसी विवेक मालवी शाह ने बताया कि इसी कड़ी को आगे बढाते हुए लॉकडाउन के इस कठिन समय में जेसीआई दुर्ग-भिलाई ने सभी संगीतप्रेमियों के लिए एक बेहद विशेष कार्यशाला संगीत की पाठशाला का आयोजन किया। उन्होंने बताया कि उक्त कार्यशाला इसलिए भी खास बन गई क्योंकि इसमें हमें साथ मिला दुर्ग-भिलाई के बेहतरीन गायक-तिकड़ी प्रभंजय चतुर्वेदी , दीपेंद्र हलदर एवं पीटी उल्लास कुमार का। साथ ही विशेष अतिथि के रूप में हमारे बीच उपस्थित हुए भारतवर्ष के महान भजन सम्राट पद्मश्री अनूप जलोटा। इनके सानिध्य में सभी को अपने गायन प्रतिभा को और गहराई से समझने का अवसर प्राप्त हुआ। उन्होंने यह भी बताया कि चूंकि यह कार्यशाला ऑनलाइन प्लेटफार्म पर आयोजित होनी थी, अत: इसे सुचारू रूप से चलाने की जिम्मेदारी आईटी कंसलटेंट जेसी योगेश राठी तथा जेसी गौतम देशलहरा ने निभाई। जेसी योगेश राठी ने इस कार्यशाला को यूट्यूब में भी रिलीज किया है।
जेसी कमलेश राजा ने बताया कि सत्र की शुरुआत शेफाली अहीर द्वारा सरस्वती वंदना से की गई। तत्पश्चात संस्था की सचिव जेसीरेट नीतू शरद गर्ग ने आज के मुख्य वक्ता प्रभंजय चतुर्वेदी का परिचय सभी से कराया। लगभग 90 मिनट तक चली इस कार्यशाला में श्री चतुर्वेदी जी ने सरगम व रियाज को बेहद महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने बताया कि सरगम ही संगीत का मूल है तथा इसके नियमित रियाज से हम किसी भी गाने को अच्छी तरह निभा सकते हैं। मन मे डर या संकोच रियाज में कमी को दर्शाता है। इसका सबसे अच्छा तरीका है कि हम अपने गाए हुए गीत को रिकॉर्ड कर स्वयं सुनें। ऐसा करने से हमें अपनी कमी पता चलती है और हम उसे सुधारने का प्रयत्न करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि निश्छल प्रेम व शुद्ध मन से गाये हुए गीत की प्रस्तुति अद्भुत हो जाती है और श्रोताओं को बहुत भाती है।
संस्था के उपाध्यक्ष जेसी रजनीश जायसवाल ने बताया कि इस कार्यशाला के मुख्य आकर्षण श्री अनूप जलोटा प्रभंजय चतुर्वेदी के गुरु हैं तथा वे अपने शिष्य का आमंत्रण टाल न सकें और हमारे साथ 20 मिनट तक बने रहे। श्री जलोटा का ग्रुप में स्वागत जेसीरेट नीति अनील बल्लेवार ने किया। श्री जलोटा ने कम समय मे अपनी बात रखते हुए बताय कि प्रेम ही संगीत की विषय वस्तु है। संगीत के रथ को प्रेम रूपी घोड़े ही आगे बढाते हैं। उन्होंने सभी के लिए बांसुरी-वाला नामक भजन गाया तथा एक गजल भी सुनाई। अंत मे उन्होंने जेसीआई दुर्ग-भिलाई को धन्यवाद देते हुए सबके अच्छे स्वास्थ्य की कामना की तथा सभी प्रतिभागियों को शुभकामनाएं भी दी।
जेसी अनुभव जैन ने बताया कि जेसीरेट शालिनी पटेल ने श्री उल्लास कुमार का परिचय सभी से कराया। श्री उल्लास कुमार ने एक-एक कर सरगम, अलंकार, नोट्स, आदि की तकनीकी जानकारी सभी से साझा की। उन्होंने अनुलोम-विलोम का गानों में महत्व बताते हुए कहा कि इससे गला खुल जाता है तथा ठहराव भी बढता है जिससे गाने की खूबसूरती बढ जाती है। उन्होंने खाली पेट गायन को सर्वथा उचित बताया है। उन्होंने स्टार्टिंग नोट व एनडिंग नोट के साथ साथ गानों में ठहराव के महत्व को समझाया।
जेसी आशीष तेलंग ने बताया कि कार्यशाला के अंत में 15 मिनट का सवाल जवाब का भी दौर चला जिसमे तानिया चक्रवर्ती, जेसीरेट चेयरपर्सन मालवी शाह, नीलू श्रीवास्तव, अनुष्का सिन्हा व अन्वेषा सिंह ने मन्द सप्तक, तार सप्तक व शास्त्रीय संगीत के बारे में सवाल पूछे। श्री चतुर्वेदी तथा उल्लास कुमार ने सभी का समुचित समाधान करते हुए बताया कि मन्द सप्तक से ज्यादा रियाज तार सप्तक की करना चाहिए जिससे गला खुलता है और सुर बराबर लगते हैं। प्रभंजय चतुर्वेदी ने शास्त्रीय संगीत को सुगम संगीत से ज्यादा आसान बताते हुए कहा कि शास्त्रीय संगीत में केवल शास्त्रों के अनुसार गाना होता है लेकिन सुगम संगीत में सुर, ताल, भाव, लय आदि के मिश्रण का ध्यान रख कर गाना होता है। उच्चारण के बारे में उल्लास कुमार जी ने बताया कि गजल गाते वक्त उर्दू, फारसी, हिंदी भाषाओं का गहन ज्ञान होना भी अति आवश्यक है ताकि गीत में सही शब्द का प्रयोग हो सके और गाने का सही भाव बना रहे।
संस्था के सचिव जेसी शरद गर्ग ने बताया कि उक्त कार्यशाला में दुर्ग, भिलाई, रायपुर के साथ-साथ दिल्ली, अलीगग, हैदराबाद, मुम्बई आदि से लोगों ने अपना पंजीयन कराया था और उन्होंने सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया।