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ताइवान को WHO से क्यों हटाया गया? क्या चीन का मोहरा बन गया है WHO? | Know why taiwan expelled from world health organisation as china holds on who | rest-of-world – News in Hindi

कोरोना वायरस (Corona Virus) संक्रमण के दौर में अमेरिका (USA) व उसके समर्थक देशों और चीन के बीच पहले ही तनातनी चल रही थी​ कि वैश्विक महामारी का दोषी किसे ठहराया जाए. इसी बीच चीन के खिलाफ मोर्चा खोलने की एक और वजह इन देशों को तब मिल गई, जब विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation) ने ताइवान को अपनी परिधि से बाहर कर दिया. रणनीति और राजनीति के स्तर पर आग भड़क रही है. वहीं Covid 19 के संवेदनशील दौर में ताइवान को बाहर किए जाने से 2 करोड़ से ज़्यादा लोग मायूस हैं.

वास्तव में, पिछले कुछ समय से चीन दबाव बना रहा था कि ताइवान को डब्ल्यूएचओ से हटाया जाए क्योंकि चीन का बरसों पुराना दावा रहा है कि ताइवान कोई अलग संप्रभु देश नहीं बल्कि उसी का एक हिस्सा है. लेकिन, इस दावे के बावजूद बरसों ताइवान संगठन में था. जब चीन व ताईवान के रिश्ते अच्छे थे, तब 2009 से 2016 के बीच ताईवान ऑब्ज़र्वर के तौर पर WHO का हिस्सा रहा.

अब अमेरिका व उसके समर्थक देश ताइवान को संगठन में शामिल किए जाने के पक्ष में आकर चीन के खिलाफ रणनीति तैयार कर रहे हैं. जानिए कि चीन के इशारे पर ताईवान को डब्ल्यूएचओ से बाहर किए जाने का पूरा माजरा क्या है और इसके क्या नतीजे हो सकते हैं.

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चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग के साथ विश्व स्वास्थ्य प्रमुख टेड्रोस. फाइल फोटो.

ताइवान को क्यों बाहर किया गया?
साफ है कि चीन के लगातार दावे रहे कि ताइवान उसी का हिस्सा है इसलिए यह कदम उठाया गया है. इसके पीछे लंबे इतिहास का हवाला देकर बताया गया कि 1949 में नागरिक युद्ध के समय से चीन और ताइवान अलग देशों की तरह वजूद में थे लेकिन 1962 में संयुक्त राष्ट्र से ताईवान को निष्कासित किया गया. बीजिंग का दावा यह भी रहा है कि एक दिन वह ताईवान को अपना राज्य बना ही लेगा, भले ही इसके लिए फोर्स इस्तेमाल करनी पड़े.

चीन ने हाल में कहा था कि ताइवान अगर खुद को चीन का अंग घोषित करे तो चीन के अंग के तौर पर डब्ल्यूएचओ की सभा में शामिल हो सकता है. लेकिन ताइवान ने चीन की इस शर्त को मानने से इनकार कर दिया था. बहरहाल, अब WHO की आगामी हफ्ते की मीटिंग में इस बाबत बहुत कुछ तय हो सकता है.

ताइवान के बाहर होने का मतलब?

कोविड 19 का कहर जबकि पूरी दुनिया पर बरपा है, ऐसे में, ताईवान के 2.3 करोड़ लोगों को विश्व स्वास्थ्य की मुख्यधारा से अलग कर दिए जाने को ताइवान समर्थक न केवल अन्याय बता रहे हैं, बल्कि इस कदम का विरोध कर रहे हैं. एक विडंबना यह भी है कि ताइवान ने वायरस से लड़ने और नियंत्रित करने के मामले में सीमित संसाधनों के बावजूद दुनिया की तारीफ हासिल की थी. बजाय उससे सीखने के उसे WHO से बाहर किया गया.

ताइवान के उपराष्ट्रपति चेन चिएन जेन के हवाले से खबरों में कहा गया है कि ‘आपदा के समय आप किसी को अनाथ कर रहे हैं. यह साफ करता है कि WHO अपनी तटस्थ ज़िम्मेदारियों से ज़्यादा राजनीति में लिप्त है.’

क्या चीन का मोहरा बन गया है WHO?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप व उनके समर्थक पहले भी विश्व स्वास्थ्य संगठन पर चीन के इशारे पर चलने के आरोप लगा चुके हैं. इसी हफ्ते ट्रंप प्रशासन ने यह आरोप भी लगाया कि WHO ‘लोक स्वास्थ्य की जगह सियासत में’ ज़्यादा दिलचस्पी ले रहा है. ताइवान को चीन के दबाव में संगठन से बाहर किए जाने के फैसले ने साफ तौर पर ज़ाहिर कर दिया है कि WHO पर चीन का प्रभाव तो है. भले ही, संगठन इस बात से लगातार इनकार कर रहा है और कह रहा है सदस्य देशों की रज़ामंदी ही तय करेगी कि भविष्य क्या होगा.

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हाल ही त्साई इंग वेन ताइवान की राष्ट्रपति दोबारा चुनी गईं. फोटो सीएनएन से साभार.

क्या होगा ताइवान का भविष्य?
भले ही अमेरिका और उसके समर्थक ताइवान को बाहर करने के WHO के कदम को नाजायज़ करार दे रहे हों, लेकिन उनका मकसद WHO और चीन पर दबाव बनाना ज़्यादा है, ताइवान से हमदर्दी रखना कम. ऐसे में, सीएनए की रिपोर्ट की मानें तो लैटिन अमेरिका के आर्थिक रूप से मामूली समझे जाने वाले ज़्यादा से ज़्यादा 15 देश ताइवान के समर्थन में आ सकते हैं. बाकी कोई देश ताइवान की सीट के लिए चीन से सीधे दुश्मनी मोल लेगा, ऐसे आसार न के बराबर हैं.

वास्तव में, त्साई इंग-वेन के हाल ही दोबारा राष्ट्रपति चुने जाने से चीन की मुश्किल बढ़ी है. त्साई चीन की ‘एक राष्ट्र’ परिकल्पना में ताइवान को देखने की विरोधी रही हैं और ताइवान के स्वतंत्र देश के दर्जे के लिए लड़ती रही हैं. 2016 में पहली बार त्साई के राष्ट्रपति बनने के बाद से ही चीन ताइवान के खिलाफ दबाव बना रहा था. अब अगर ताइवान किसी बड़े देश को समर्थक के तौर पर जुटा सका तो यह चीन के लिए बड़ी मुश्किल होगी.

भारत की क्या भूमिका संभव है?
पिछले कुछ हफ्तों में ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान और न्यूज़ीलैंड ने अमेरिका के सुर में सुर मिलाते हुए कहा कि विश्व स्वास्थ्य सभा में ताइवान को ऑब्ज़र्वर दर्जा मिलना चाहिए. इस पर चीन का रुख ये था कि पश्चिमी देश कोरोना से लड़ने में अपनी नाकामी को छुपाने के लिए ताइवान पर राजनीति कर रहे हैं. इस बीच, माना जा रहा है कि चीन के खिलाफ ताइवान का समर्थन करते हुए भारत मौके का फायदा उठा सकता है. साथ ही, चीन के बजाय अमेरिका से भारत की नज़दीकियां हालिया दौर में बढ़ी हैं इसलिए भी ऐसी संभावना दिख रही है.

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