जाएं तो जाएं कहां..! कैसी अजब पसोपेश में हैं सैकड़ों प्रवासी? Know about travel problems of migrant workers from rajasthan to uttar pradesh | jaipur – News in Hindi
राजस्थान में प्रवासी मज़दूरों के लिए बसों का इंतज़ाम किया जा रहा है. फाइल फोटो.
कोरोना वायरस (Corona Virus) संक्रमण के मद्देनज़र हुए लॉकडाउन (Lockdown) के ताज़ा हालात ये हैं कि पैदल अपने राज्यों के लिए निकले सैकड़ों लोगों और प्रवासी मजदूरों (Migrant Workers) को राजस्थान (Rajasthan) में कैंपों के नाम पर सरकारी स्कूलों में रोक दिया गया है. अब समस्या ये है कि आगे के सफर के लिए किसी के पास कोई जवाब नहीं है. जानें क्या है पूरी तस्वीर.
बानगी 1 : ‘जाना हमारी मजबूरी है’
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर ज़िले में अपने गांव जाने के लिए बीवी और तीन महीने की बच्ची के साथ पैदल चल पड़े मोहम्मद आज़ाद त्यागी के हवाले से एचटी की रिपोर्ट कहती है कि ‘हमारी तीन महीने की बेटी को पैदाइशी हृदय रोग है. इसके इलाज की व्यस्तता और फिर लॉकडाउन के कारण मैं चार महीने से बेरोज़गार हूं. जयपुर में मकान का किराया 3 हज़ार रुपये कैसे दें समझ नहीं आ रहा था. दूसरी तरफ, घनी बस्ती मेें रहने से बेटी को संक्रमण हो सकता था इसलिए हमारा जाना ज़रूरी है.’
बानगी 2 : ‘कैसे जाएं कहां जाएं?’उत्तर प्रदेश के बहराइच के अजाज़ अहमद ने बताया कि वह जयपुर के पास सीकर रोड इंटरसेक्शन पर बन रहे सरकारी पुल के निर्माण में बतौर वेल्डर काम कर रहे थे. उन्होंने यात्रा के लिए ज़रूरी सरकारी सुविधा ‘ई-मित्र’ पर रजिस्ट्रेशन करवाया लेकिन 2 मई से उन्हें कोई जवाब नहीं मिला. इसलिए उन्होंने परिवार के साथ चलना शुरू किया. ‘पहले सिंधी कैंप से बस पकड़ना चाही तो मना कर दिया गया. फिर पैदल चलने के दौरान पुलिस ने इस कैंप में भेज दिया. अब क्या करें, कहां जाएं?’
सरकारी स्कूल तो कैंप है, लेकिन आगे क्या?
अहमद और त्यागी का परिवार उन 218 परिवारों में शामिल है, जिन्हें कनोटा के सरकारी कन्या विद्यालय में रुकवा दिया गया है. यहां खाने पीने की न्यूनतम सुविधाएं तो हैं लेकिन आगे का सफर कैसे तय होगा, इसे लेकर कोई स्पष्टता नहीं है. राज्य के बाहर होने वाले पलायन पर जो राज्य स्तरीय कमेटी बनी है, उसके प्रमुख सुबोध अग्रवाल के हवाले से कहा गया है कि सड़क पर चलते दिखने पर कामगारों को नज़दीकी कैंपों में बस से भेजा जा रहा है.
राजस्थान से 90 लाख प्रवासियों ने जाने की इजाज़त मांगी है. फाइल फोटो.
इन कामगारों को राज्य की सीमाओं पर भेजने के निर्देश दिए गए हैं, लेकिन एचटी के मुताबिक शुक्रवार की सुबह कई लोग जयपुर-आगरा नेशनल हाईवे पर पैदल जाते दिख रहे थे. एक पुलिस चेकपोस्ट पर रोके जाने के बाद इन्हें कनोटा के कैंप में भेज दिया गया.
ठहराने की व्यवस्थाएं काफी नहीं
राजस्थान के सीमावर्ती शहर भरतपुर तक पहुंचाने के लिए जयपुर के ज़िला प्रशासन ने पांच रोडवेज़ बसों से 195 लोगों को भेजा था लेकिन भरतपुर में कह दिया गया कि वहां कैंपों में जगह नहीं थी. ऐसे ही यात्रियों व व्यवस्थापकों के हवाले से रिपोर्ट बताती है कि करीब 50 परिवार वापस कनोटा कैंप आ गए. अब बसें उपलब्ध जब होंगी तब इन्हें दोबारा भेजा जाएगा.
हमारे घर तक बसें क्यों नहीं?
उत्तराखंड के 74 परिवारों को जयपुर से एक विशेष ट्रेन हरिद्वार तक ले गई है, लेकिन समस्या उन परिवारों की है, जो अब भी यहां अटके हुए हैं. आगे के सफर को लेकर संशय से घिरे त्यागी ने कहा कि ‘हमारे घरों तक पहुंचाने के लिए बसों की व्यवस्था होनी चाहिए. यह कोई मदद है कि आप एक जगह से ले जा रहे हैं और दूसरी जगह फिर बेसहारा छोड़ रहे हैं?’ बहरहाल, प्रशासन का कहना यही है कि संभव प्रयास किए जा रहे हैं.
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First published: May 16, 2020, 7:20 PM IST