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चीन अर्से से करता रहा है दुनियाभर से तकनीक की चोरी, अब नजर कोरोना रिसर्च पर । how china try to hack secret and crucial research of corona vaccine around world | china – News in Hindi

अमेरिका, जर्मनी समेत कई देश आरोप लगा रहे हैं कि चीन उनके यहां कोरोना वैक्सीन पर हो रहे रिसर्च को चुराने की कोशिश में लगा है. डाटा हैक करने की कोशिशें हो चुकी हैं. यहां तक की ये माना जा रहा है कि दुनिया में जहां कहीं भी कोरोना को लेकर महत्वपूर्ण जानकारियां रखी जा रही हैं और शोध हो रही है, वो पिछले दिनों में हैकिंग के संदिग्ध प्रयास हुए हैं. आरोप ये भी है कि ये काम चीनी सरकार से जुड़े हैकर्स कर रहे हैं. दरअसल चीन आज से नहीं बल्कि कई दशकों से पूरी दुनिया में नई तकनीक और ट्रेड सीक्रेट्स की चोरी करता रहा है. उसके खिलाफ हजारों ऐसे मामले हैं.

कोरोना वैक्सीन संबंधी शोध और अन्य अहम जानकारियों पर सेंध लगाने के प्रयास की खबरें कुछ दिनों से लगातार आ रही हैं. अब अमेरिकी एजेंसियां चीन के खिलाफ एक्शन लेने की तैयारी कर रही हैं ताकि चीन अपनी हरकतों से बाज आए. खासकर अस्पतालों की प्रयोगशालाओं को सतर्क किया जाएगा.

13 मई को न्यूयॉर्क टाइम्स ने इस बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की है. जिसके अनुसार  एफबीआई और होमलैंड सुरक्षा विभाग चीनी हैकिंग को लेकर चेतावनी जारी करने की योजना बना रहे हैं. रिपोर्ट्स कहती हैं कि हैकर्स कोरोना संबंधी इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी को भी सेंध लगाने की कोशिश में हैं, लिहाजा सतर्क होने की जरूरत है.

  अमेरिकी कंपनियां बड़े पैमाने पर चीन पर चोरी का आरोप लगाती रही हैं
अमेरिका और यूरोपीय देश चीन पर लंबे समय से आरोप लगा रहे हैं कि वो सालों से उनकी तकनीक, रिसर्च और ट्रेड सीक्रेट्स चुरा रहा है. अमेरिका के जस्टिस डिपार्टमेंट में वहां की कंपनियां बड़े पैमाने पर ऐसे मामले लेकर जा रही हैं.

हाल के बरसों में जिस तरह चीन ने डिफेंस से लेकर मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में नई तकनीक के बल पर छलांग लगाई है, उसने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया है. कहने वाले यही कहते हैं कि दरअसल ये छलांग इसी चोरी के बल पर लगाई गई है.

कुछ साल पहले तक चीन एयरोस्पेस और एविएशन सेक्टर में बहुत पीछे था. पिछले एक-डेढ़ दशक में उसने जिस तरह की तकनीक हासिल कर अपनी सेना का आधुनिकीकरण किया है, उससे पूरी दुनिया हतप्रभ रह गई. खासकर चीन द्वारा बनाए जा रहे चौथी जेनरेशन के फाइटर जेट के निर्माण से. यही हाल चीन के दूसरे सेक्टर्स का था. मुश्किल से डेढ़ दशक पहले तक चीन फार्मा सेक्टर से लेकर दूसरे अहम सेक्टर्स में काफी पीछे था लेकिन अचानक ही उसने हर क्षेत्र में जबरदस्त छलांग लगा ली. ऐसा अमूमन होता नहीं है.

हर बड़े उत्पाद की कॉपी है उसके पास
माना जाता है कि उनके पास दुनिया के हर उत्पाद की कॉपी है. हालांकि ये भी माना जाता है कि चीन ने दुनियाभर की कंपनियों से ट्रेड सीक्रेट्स चुराने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. शुरू में अमेरिका और यूरोप जैसे देशों को इसका पता ही नहीं चला, जब उन्हें इसका अहसास हुआ तो निगरानी बढ़ाई.

अब हर महीने अमेरिका में ऐसे मामले उजागर हो रहे हैं. इसके तरीके अलग-अलग होते हैं. कभी कोई चाइनीज खुद किसी कंपनी में कर्मचारी या बड़ी पोजीशन पर तैनात होकर उनकी तकनीक या सीक्रेट्स तक पहुंचने की कोशिश करता है तो कभी ये काम बाहर से चीनी एजेंट्स करते हैं.

किस तरह तकनीक चोरी का शिकार हैं अमेरिकी कंपनियां 
सीएनबीसी ने कुछ समय पहले एक पोल किया था. जिसमें पांच बड़ी कंपनियों में एक ने यही कहा कि चीन ने उनकी बौद्धिक संपदा यानी इंटैलेक्चुअल प्राॉपर्टी की चोरी की है. इंटैलेक्चुअल प्रॉपर्टी में पेटेंट इस्तेमाल, ट्रेड सीक्रेट्स, ट्रेडमार्क्स और कॉपीराइट अनुमति सरीखे पहलू जुड़े होते हैं. चीन जासूसों के जरिए सबसे बड़े पैमाने पर ट्रेड सीक्रेट्स में सेंध लगाने का काम करता है. ये कई तरह से होता है.

पिछले महीने कोकाकोला कंपनी में एक चीनी साइंटिस्ट पकड़ा गया, जिसने उसके ट्रेड सीक्रेट्स चुरा लिए थे

बड़ी कंपनियों के चीनी कर्मचारी करते रहे हैं ये काम
पहले तरीका यह है कि चीन के वैज्ञानिक बहुराष्ट्रीय कंपनियों में नौकरी हासिल करते हैं. विश्वास जीतते हैं. फिर मौका लगते ही ट्रेड सीक्रेट्स को पार कर देते हैं, जो टेक्नॉलॉजी से ज्यादा जुड़े होते हैं. पिछले महीने बहुराष्ट्रीय साफ्टड्रिंक कंपनी कोकाकोला ने अपने यहां ऐसे चाइनीज वैज्ञानिक को पकड़ा, जो कंपनी में बड़ी पोजीशन पर था. उसने कंपनी के ट्रेड सीक्रेट्स चुराकर चीन भेजे थे. कोकाकोला का दावा है कि इन्हीं सीक्रेट्स के बल पर वो चीनी सरकार की मदद से वहां साफ्टड्रिंक कंपनी का प्रोजेक्ट लगाने वाला था.

ये हथकंडा भी अपनाते हैं चीनी 
दूसरा तरीका ये होता है कि चीनी जासूस अमेरिकी या यूरोपीय कंपनी के महत्वपूर्ण कर्मचारियों और अधिकारियों के बारे में जानकारी इकट्ठा करते हैं. फिर उनसे संपर्क कर उन्हें सेमीनार या वर्कशाप के बहाने चीन या यूरोप ले जाते हैं. उनकी खातिरदारी की जाती है. इस बीच प्रलोभन देकर उनसे कंपनी के ट्रेड सीक्रेट हासिल करने की कोशिश की जाती है.

एक ऐसा मामला इसी साल अमेरिकी एविएशन एंड एयरोस्पेस की शीर्ष कंपनी जीई एविएशन में सामने आया. कुछ चाइनीज एजेंट्स कंपनी के लोगों को पहले चीन ले गए, जहां उनके लिए एक सेमीनार का आयोजन किया गया. फिर उन्हें पेरिस घुमाने की योजना बनाई गई. कुछ लोगों को फुसलाकर उनसे सीक्रेट्स हासिल कर लिए गए. अमेरिका की टॉप कंपनी जनरल इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड की इस सहयोगी कंपनियों के आला अधिकारियों को जब पता लगा तो वो कोर्ट की शरण में गए.

चीन की चोरी के मामले लगातार होते हैं उजागर
लगभग हर महीने इस तरह के कई मामले यूरोप से लेकर अमेरिकी कंपनियों के बीच उजागर होते हैं. अमेरिकी खासकर तब ज्यादा चौकन्ना हो उठे, जब कुछ सालों पहले उन्होंने पाया कि उनकी हथियार इंडस्ट्री से लेकर एयरोस्पेस इंडस्ट्री में चीन की सेंधमारी हो चुकी है. इस सेक्टर्स की तकनीकी के तमाम सीक्रेट्स चीन पहुंच चुके हैं. इसी का नतीजा था कि चीन ने पिछले एक-डेढ़ दशक में डिफेंस और एयरोस्पेस सेक्टर्स में जबरदस्त उछाल लगाई.

अमेरिका की पांच में एक बड़ी कंपनी मानती है कि वो चीन के ट्रेड सीक्रेट चोरी का शिकार हुई है

चीन नौसेना की तो कायापलट ही हो गई
जिस सेक्टर में चीन के पास कहीं कोई बड़ी तकनीक नहीं थी, वहां अब उसके पास वो उन्नत तकनीक है, जिस पर अमेरिका भी काम कर रहा होता है. पूरी दुनिया में हर कोई हैरान है कि चीन के पास चौथी जेनरेशन के लड़ाकू जेट तैयार करने की तकनीक कैसे आ गई. कुछ दशक पहले तक तो उसकी नेवी बहुत खस्ताहाल थी, अचानक वो कैसे आधुनिक साजो सामान, युद्धक जहाजों और परमाणु पनडुब्बी बनाने में सक्षम हो गया.

हालांकि ऐसे आरोप रूस पर भी खूब लगते हैं लेकिन चीन के बारे में कहा जाता है कि उसने कहीं ज्यादा सिस्टमेटिक तरीके से दुनियाभर में सेंधमारी की है. इससे उन्हें दो फायदे हुए. एक तो उनके लोगों ने बड़ी विदेशी कंपनियों की संरचना और माहौल का अध्ययन किया, जिसकी तर्ज पर चीन में पिछले दो से तीन दशकों में बड़ी कंपनियां खड़ी की गईं.

चीन में काम करने वाली कंपनियों से कहा जाता है कि ट्रेड सीक्रेट दें
हां, तीसरे तरीके की बात कर लें. ये तरीका आमतौर पर उन बड़ी कंपनियों पर आजमाया जाता है, जो चीन में काम करने गईं. उन पर ट्रेड सीक्रेट्स देने का दबाव डाला गया. चीन गईं तमाम बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने इसकी शिकायत की है, कई कंपनियों ने तो इसके बाद अपना कामकाज वहां से समेट लिया. एक असरदार तरीका और अब जुड़ गया है, वो हैकिंग के जरिए होता है, जिसमें बड़ी सफाई से बड़ी कंपनियों के डिजिटल सुरक्षा दरवाजे खोले जाते हैं. फिर तकनीक लीक कर ली जाती है. आजकल साइबर अटैक में चीन सबसे बड़ी ताकत के तौर पर शुमार किया जाता है.

अमेरिकी एविएशन और एयरोस्पेस की शीर्ष कंपनी ने भी हाल में चीन पर ट्रेड सीक्रेट का आरोप लगाया है

पर्दे के पीछे से चीन की सरकार करती है मदद
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल़्ड ट्रंप और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच जब भी व्यापार संबंधी बातचीत होगी तो उसमें भी बौद्धिक संपदा की चोरी एक बड़ा मुद्दा होगी. हालांकि चीन के राष्ट्रपति जिनफिंग कई बार कह चुके हैं कि वो अपने देश में इस मामले में कड़ाई करेंगे लेकिन हकीकत तो यही है कि अप्रत्यक्ष तौर पर चीनी सरकार ही इसमें सहायक बनती रही है. लेकिन ये बात भी कहनी चाहिए कि चीन ने जगह-जगह से उन्नत तकनीक हासिल करने के बाद देश में जो संरचना या रिसर्च संस्थान स्थापित किए हैं, वो अब उसे आगे ले जाने में सक्षम हैं.

अमेरिका को हजारों अरब का चूना
अमेरिका के मिनियापोलिस के फेडरल रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट कहती है कि चीनी कंपनियों के पास जितनी तकनीक है, उसमें आधी से ज्यादा उन्होंने विदेशी कंपनियों से चोरी के जरिए हासिल की हैं. सीएनएन का अनुमान है कि अमेरिका को ट्रेड सीक्रेट चोरी से छोटा मोटा नहीं बल्कि सालाना 225 बिलियन डॉलर (1550 अरब रुपये) से लेकर 600 बिलियन डॉलर (4146 अरब रुपये) का नुकसान होता है.

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