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अब दुर्गम मानसरोवर यात्रा के लिए जाना हुआ आसान, इस वजह से 24 KM की दूरी हुई कम Kailash mansarovar story pithoragarh uttarakhand nodtg | pithoragarh – News in Hindi

अब दुर्गम मानसरोवर यात्रा के लिए जाना हुआ आसान, इस वजह से 24 KM की दूरी हुई कम

कभी दुनिया की सबसे कठिन यात्राओं में शुमार थी मानसरोवर यात्रा (फाइल फोटो)

बीते साल सड़क कटने के कारण गाला और सिर्खा के बीच की 24 किलोमीटर की दूरी कम हो गई थी. पिछले साल पहली बार पहला पैदल पड़ाव बूंदी बना. यानी तीर्थ यात्रियों के जत्थे धारचूला बेस कैंप से गाड़ी की मदद से सीधे बूंदी पहुंचने लगे थे. लेकिन अब मानसरोवर यात्रियों को सिर्फ एक ही पड़ाव में रुकना पड़ेगा

पिथौरागढ़. विश्व प्रसिद्ध कैलाश-मानसरोवर (Kailash-Mansarovar) कई धर्मों को मानने वालों के लिए आस्था का केंद्र है. हिंदुओं के अलावा ये स्थल बौद्ध, जैन और तिब्बती धर्म के अनुयायियों के लिए भी पवित्र है. यही वजह है कि आदिकाल से ही हिंदू कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील के दर्शनों के लिए जाते रहे हैं. लेकिन समय के साथ इस दुर्गम पैदल यात्रा में कई बदलाव आए हैं. भारत-चीन युद्ध (Indo-China War) से पहले हिंदू तीर्थ यात्री स्वतंत्र रूप से भगवान शिव की धरती पर पहुंचते थे. मगर वर्ष 1961 में चीन सरकार (Government Of China) ने स्वतंत्र यात्रा पर पूरी तरह रोक लगा दी थी.

आखिरकार लंबे समय बाद भारत-चीन के रिश्तों में सुधार आने के बाद वर्ष 1981 में ये यात्रा फिर बहाल हुई. लेकिन ये बहाली कई नियमों में बंधी थी, यानी दोनों मुल्क पहले ही ये तय कर लेते थे कि कितने दल यात्रा में शामिल होंगे और इन दलों में कितने यात्री होंगे. 1981 से धार्मिक यात्रा में वीजा और पासपोर्ट भी जरूरी हो गया था. 1981 से लंबे अर्से तक मानसरोवर यात्रा में आठ पैदल पड़ाव हुआ करते थे. इन पैदल पड़ावों को पार करने के लिए यात्रियों को 80 किलोमीटर का हिमालय में कठिन सफर तय करना होता था.

दुनिया का सबसे कठिन सफर इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया
अक्सर पैदल सफर में कुछ तीर्थ यात्रियों को अपनी जान भी गंवानी पड़ती थी. लेकिन बीते साल सड़क कटने के कारण गाला और सिर्खा के बीच की 24 किलोमीटर की दूरी कम हो गई थी. पिछले साल पहली बार पहला पैदल पड़ाव बूंदी बना. यानी तीर्थ यात्रियों के जत्थे धारचूला बेस कैंप से गाड़ी की मदद से सीधे बूंदी पहुंचने लगे थे. लेकिन अब मानसरोवर यात्रियों को सिर्फ एक ही पड़ाव में रुकना पड़ेगा. बीआरओ ने घटियाबगड़ से लिपुलेख दर्रे तक सड़क काट दी है, जिस कारण अब दुनिया का सबसे कठिन सफर इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया है.यात्रियों का होगा मेडिकल टेस्ट

यात्रा का आयोजन करने वाली कुमाऊं मंडल विकास निगम के अध्यक्ष केदार जोशी कहते हैं कि पैदल पड़ाव खत्म होने से निगम की इनकम पर असर पड़ेगा. लेकिन अन्य पर्यटकों को लुभाकर वो भरपाई करने की कोशिश करेंगे. सड़क बनने के बाद अब यात्री धारचूला बेस कैंप से सीधे गुंजी पहुचेंगे जहां यात्रियों का मेडिकल टेस्ट होगा. साथ ही उन्हें ऊंचे इलाकों के लिए अनुकूल भी किया जाएगा. गुंजी से लिपुलेख दर्रे की दूरी सड़क से 45 किलोमीटर है. बीआरओ के चीफ इंजीनियर बिमल गोस्वामी ने भी माना है कि लिपुलेख तक रोड कटने से सबसे अधिक फायदा मानसरोवर जाने वाले तीर्थ यात्रियों को होगा.

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https://www.youtube.com/watch?v=2uoUw4zaRzI

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First published: May 13, 2020, 8:47 PM IST



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