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20 लाख करोड़ का राहत पैकेज, बड़े के बाद अब छोटे उद्योगों को राहत पर जोर – Fiscal stimulus package for 20 lakh crore small business to get relief sudhir jain article | business – News in Hindi

बीस लाख करोड़ के पैकेज के बारे में 20 घंटे तक रहस्य बना रहा. मंगलवार की रात आठ बजे प्रधानमंत्री के ऐलान के बाद बुधवार शाम चार बजे वित्तमंत्री को इस पैकेज का खाका पेश करना था. बड़ा कुतूहल बना हुआ था कि कोरोना समस्या के बीच ये 20 लाख करोड़ की मदद किन तबकों को मिलेगी. अंदाजा लगाया जा रहा था कि प्रवासी मजदूरों, गरीबों और छोटे उद्योगों को सरकारी धन बंटेगा.

ऐसा अनुमान स्वाभाविक था क्योंकि ये लोग ही कोरोना के कारण लॉकडाउन से सबसे ज्यादा पीड़ित हैं. लेकिन वित्तमंत्री की प्रेस कॉन्फ्रेंस से पता चला कि सरकार छोटे उद्योगों यानी एमएसएमई क्षेत्र के कर्ज की समस्या को ही सबसे बड़ी समस्या मान रही है. सरकार ने इस क्षेत्र के उद्योगों को कोई तीन लाख 70 हजार करोड़ के कर्ज आसानी से दिलवाने में अपनी भूमिका निभाई है.

सरकार ने बैंकों को इशारा कर दिया है कि आप बेझिझक छोटे उद्योगों को कर्ज दें उसकी गारंटी सरकार लेगी. इसके अलावा और भी कई फुटकर ऐलान वित्तमंत्री की प्रेस कॉन्फ्रेंस में किए गए लेकिन उनके बारे में अभी विश्लेषण करने में दिक्कत आ रही है कि वे ऐलान कोरोना से हुए आर्थिक नुकसान की कितनी भरपाई कर पाएंगे. बात कुछ घंटे पहले की ही है सो सरकारी ऐलानों से पड़ने वाले असर का अंदाजा पैकेज के विशेषज्ञ अध्ययन के बाद ही हो पाएगा.

प्रधानमंत्री के एलान के बाद देश में बड़ा कुतूहल रहा मंगलवार को रात आठ बजे प्रधानमंत्री के ऐलान के बाद उम्मीद लगाई जा रही थी उद्योग जगत फौरन खिल उठेगा. लेकिन ऐलान के फौरी असर को जांचें तो उद्योग जगत ने ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया. इसका अंदाजा इस बात से लगता है कि बुधवार को शेयर बाजार का सेंसेक्स 1400 अंक चढ़कर जरूर खुला लेकिन दिनभर बीस हजार करोड़ के पैकेज का विश्लेषण होते होते यह बढ़त घटकर सिर्फ 637 अंक ही बची. यानी बीस घंटे के बीच बीस लाख करोड़ के मुहावरे का असर टिका नहीं. अब बुधवार शाम जब वित्तमंत्री की प्रेस कॉन्फ्रेंस हो चुकी है तो इसकी सबसे विश्वसनीय समीक्षा गुरूवार को शेयर बाजार के रूझान से ही हो पाएगी.

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खास क्या था वित्त मंत्रालय की प्रेस काॅन्फ्रेंस में
एक साथ बहुतेरी बातें थीं. सबसे पहले कहा गया कि प्रधानमंत्री के घोषित आर्थिक पैकेज को एक बार में ही विस्तार से नहीं बताया जाएगा बल्कि कुछ कुछ अंतराल के बाद किस्तों में जानकारी दी जाएगी. बहरहाल बुधवार की कॉन्फ्रेंस में मुख्य बात सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों को कर्ज की सुविधा दिलवाने की ही थी. बाकी बिजली कंपनियों को 90 हजार करोड़ की मदद का एलान हुआ है. साथ में यह जिक्र भी किया गया है कि इन कंपनियों को दी जाने वाली मदद का कुछ फायदा उपभोक्ताओं तक भी पहुंचवाया जाएगा.

अब ये आगे देखने वाली बात होगी कि यह किस तरह होगा. इसके अलावा प्रेस कॉन्फ्रेंस की शुरूआत में सबसे ज्यादा समय सरकार के पिछले कामों को गिनवाने में ही खर्च हुआ. कोरोना के फौरन बाद पौने दो लाख करोड़ के उस पुराने राहत पैकेज का भी विस्तार से जिक्र किया गया जिसमें किसान सम्मान की दो हजार रूपए प्रति चार महीने वाली रकम और महिला जनधन खातों में पांच सौ रूपए डलवाने को याद दिलाया गया. उज्जवला योजना के गैस सिलेंडर और स्वच्छता अभियान के खर्च को भी जताया गया. इसी से पता चला कि 20 लाख करोड़ के पैकेज में वह रकम भी शामिल मानी जाएगी जो अब तक खर्च की गई है या जिसे कर्ज के रूप में दिलवाने का इंतजाम किया गया है.

आखिर कितना बड़ा है यह पैकेज
कहने को सरकार ने इस पैकेज को न भूतो न भविष्यति
बताया है. लेकिन विश्लेषकों ने इसका पोस्टमार्टम करके बताना शुरू कर दिया है कि यह पैकेज वास्तव में उतना बड़ा है नहीं. मसलन कोरोना के कारण पूरी दुनिया में मची आर्थिक तबाही के कारण कई देशों की सरकारें हमसे कहीं ज्यादा बड़े आर्थिक पैकेजों के ऐलान कर चुकी हैं. खासतौर पर जापान, अमेरिका, स्वीडन और जर्मनी ने इस बीच अपनी जनता को हमसे कहीं ज्यादा बड़े राहत पैकेज दे डाले हैं.

जापान ने तो अपने कुल घरेलू उत्पाद की 21 फीसद रकम कोरोना से हुई क्षति की पूर्ति के लिए लगा दी है. जबकि हमारे घोषित हुए पैकेज का आकार अपनी जीडीपी का सिर्फ दस फीसद ही है. और अभी यह भी पता नहीं है कि यह रकम सिर्फ कोरोना से पीड़ितों की मदद के लिए है या उसके पहले मंदी से बदहाल हुए उद्योगों और बदहाल हुए मजदूरों की मदद की रकम भी इसी पैकेज में शामिल होगी. अभी यह भी साफ नहीं है कि सरकार की तरफ से घोषित यह रकम वह अपने पास से देगी या दूसरों से दिलवाएगी.

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कितनी हो पाएगी कोरोना की क्षतिपूर्ति?
कोरोना से बचाव के लिए लगाया गाया लाकडाउन अब तक अंदाजन 12 लाख करोड़ रूपए चट कर चुका है. अंसठित क्षेत्र को हुए भारी नुकसान का अंदाजा लगाने का कोई जरिया ही हमारे पास नहीं है. जाहिर है भारत को कोरोना से आर्थिक नुकसान का अंदाजा बढ़कर 15 से 20 लाख करोड़ तक पहुंच सकता है. इतना ही नहीं अपने देश में कोरोना अभी खत्म नहीं हुआ है. यानी बिल्कुल भी पता नहीं कि दो तीन महीने या उससे भी ज्यादा कितने दिन और आर्थिक तबाही हो सकती है. बुधवार की प्रेस कांफ्रेंस में वित्तमंत्री से नुकसान का आकलन पूछा भी गया था लेकिन उन्होंने इस तरह का अंदाजा लगाने से इनकार कर दिया. जाहिर है प्रधानमंत्री के 20 लाख करोड़ के एलान और वित्तमंत्री के ब्योरेवार बयान को समस्या का समाधान मान लेना जल्दबाजी होगी.

छोटे उद्योगों के लिए एकमुश्त राहत बहुप्रतीक्षित थी
साफ पता चल रहा है कि बीस लाख करोड़ के पैकेज में वह रकम भी शामिल है जो इसके पहले सरकार घोषित कर चुकी है. पैकेजों के जरिए पहले ही घोषित की जा चुकी यह रकम कोई आठ लाख करोड़ बैठती है. इसमें ज्यादातर वे ऐलान हैं जो मंदी के मारे बैठती जा रही अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए किए गए थे. मसलन रिजर्व बैंक के जरिए बाजार में कर्ज सुलभ कराने के लिए कोई साढ़े छह लाख करोड़ बाजार में छोड़ देने का एलान किया गया था. यह सब पहले की बात है. रियल एस्टेट, आटोमोबाइल और दूसरे बड़े क्षेत्रों के लिए आर्थिक राहत के एलान भी पहले ही किए गए थे. जाहिर है कि सतर्क और सावधान विश्लेषक अब यह बताना शुरू करेंगे कि पौने दो लाख करोड़ का जो पैकेज कुछ दिनों पहले दिया गया था

वह किसानों और गरीब तबके को राहत पहुंचाने के नाम से किया गया था. लेकिन वह पहले से घोषित इरादों का ही क्रियान्वयन था. लेकिन यह बात अब महीनेभर पुरानी बात हो गई है. इधर कोरोना के चलते पिछले एक डेढ़ महीने में गांव के गरीबों और प्रवासी मजदूरों की समस्या विस्फोटक हो चुकी है. कोई 15 करोड़ समस्याग्रस्त गरीबों को फौरन ही राहत भेजने की इमरजंसी आन पड़ी थी.

इसीलिए वित्तमंत्री की प्रेस कॉन्फ्रेंस से अगर किसी तबके के लिए सबसे ज्यादा उम्मीद लगाई जा रही थी तो वह किसान, मजदूर और वापस गांव पहुंचा प्रवासी मजदूर और शहरों में काम कर रहा अंसगठित क्षेत्र का कामदार तबका था. लाकडाउन में इन्ही लोगों की जेबें खाली हो चुकी हैं. लेकिन इनके लिए कर्ज की व्यवस्था करने से काम चलने वाला नहीं था. इसीलिए उन्हें सीधे ही मदद देने की संभावना जताई जा रही थी.

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ठीक भी है सरकार पैसा लाती कहां से?
स्रकार से उम्मीद कितनी भी लगा लें लेकिन सुझाव देने वालों को यह भी तो बताना पड़ता है कि सरकार पैसा कहां से जुटा कर लाए. हमारा सालाना बजट ही तीस लाख करोड़ का है. इसमें से राजस्व वसूली से सरकार की अनुमानित आमदनी मुश्किल से बीस लाख करोड़ ही बैठती है. इतनी रकम तो देश के पुराने कामधाम को चालू रखने में ही खर्च हो जाते हैं. इस तथ्य पर भी गौर कर लेना चाहिए लाकडाउन के कारण सरकार की आमदनी कम से कम चार लाख करोड़ कम होने का अंदाजा है.

जाहिर है सरकार अब उधार लेकर ही ज्यादा खर्च कर सकती है. गौरतलब है कि सिर्फ हम ही नहीं दुनिया की ज्यादातर सरकारें एक अर्से से उधार लेकर या कर्ज उठाकर ही अपने अपने काम चला रही हैं. बस उधार की अर्थव्यवस्था में देखना यह पड़ता है कि इतना ज्यादा कर्ज न उठा लें कि विश्व बिरादरी में उसकी साख न मिट जाए. याद किया जाना चाहिए कि अभी हमने अपनी कुल जीडीपी की लगभग 70 फीसद रकम उधार ले रखी है. इसीलिए जोखिम सर पर है कि उधार की यह रकम इससे ज्यादा हुई तो फौरन ही अपने देश की रेटिंग नीचे हो जाएगी और देश में विदेशी निवेश करने वाले पीछे हटने लगेंगे. और ये तो सभी अर्थशास्त्री जानते हैं कि सरकारी खर्च ज्यादा करने से महंगाई रोके नहीं रूकती.

कुल मिलाकर कर्ज लेकर काम चलाना इतना आसान नहीं है. सो यह सोच लेना कि सरकार 20 लाख करोड़ का कर्ज लेकर अर्थव्यवस्था के तीन क्षेत्रों कृषि, विनिर्माण और सेवा क्षेत्र को मदद दे सकती है, बिल्कुल ही मुगालते में रहना है.

हां, इमरजंसी हालात में एक सूरत जरूर है
मंदी की इमरजंसी में जब कुछ नहीं सूझता तब सरकारें अतिरिक्त खर्च करके अर्थव्यवस्था का पहिया घुमाने की कोशिश करती हैं. एक बार जब पहिया घूमने लगता है तो आगे से सरकार के पास पैसा आने की संभावना बन जाती है. अगर कुछ अर्थशास्त्रियों को याद न हो तो उन्हें 2009 की वैश्विक मंदी में अपने देश में दिखाई गई हुनर को याद दिलाया जा सकता है. तब अपनी ही सरकार ने अचानक हद से ज्यादा खर्च कर डाला था. पैकेजों की बाढ़ लगा दी थी.

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अलबत्ता वित्तीय घाटे और उसके बाद ऐतिहासिक महंगाई झेलनी पड़ी थी. लेकिन दो तीन साल में हालात बहाल हो गए थे.भयावह मंदी से पार पा लिया गया था. लेकिन उस समय उपभोक्ताओं की जेब में पैसे डाले गए थे. बिना डरे कर्ज भी उपभोक्ताओं को दिए गए थे. याद करें तो दस साल पहले हमने जाना था कि बाजार में मांग पैदा किए बगैर उत्पादन बढ़ाया ही नहीं जा सकता. या यूं कहें कि मांग हो तो उत्पादन तो दौड़कर होने लगता है. तब विदेशी निवेश तो क्या देश में ऐसे निवेशक निकल आते हैं कि उन्हें सरकारी कर्ज़ वर्ज की भी जरूरत नहीं पड़ती.

बहरहाल जो अर्थशास्त्री सरकार को सुझाव देने की हैसियत में हों उन्हें कम से कम सरकार को यह ध्यान जरूर दिलाना चाहिए कि अभी तक सरकार ने जितने भी राहत पैकेज दिए हैं वे सारे के सारे उत्पादकों को राहत देने वाले हैं. यानी सरकार की तरफ से अब तक यह मानकर चला गया है कि दिक्कत उत्पादन कम होने की है. जबकि यह भी देखा जाना चाहिए कि बाजार में मांग की क्या स्थिति है? और मांग क्यों नहीं है? यानी अगर बीस लाख करोड़ के पैकेज का बाकी हिस्सा लगाने के लिए सरकार सबसे अच्छी जगह तलाश रही हो तो वह जगह उपभोक्ताओं की जेब भी हो सकती है.

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