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Opinion: कोरोना काल के आर्थिक संकट में सरकार की बूस्टर डोज के बाद अब बारी हमारी, छोड़ना होगा सस्ते का मोह! | Opinion pm modi govt indian economy booster dose chinese products peoples duty | nation – News in Hindi

कोरोना संकट के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 लाख करोड़ के राहत पैकेज का ऐलान कर दिया. इस घोषणा में किस सेक्टर को क्या मिलेगा, ये जानने के लिए वित्त मंत्री की घोषणा का इंतजार करना होगा, लेकिन इतना तय है कि सरकार ग्रामीण अर्थव्यवस्था से लेकर शहरी अर्थव्यवस्था और देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की तैयारी में है. सरकार ने इसीलिए जीडीपी के 10 फीसदी के बराबर के आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है. ऐसे में साफ है कि आने वाले समय में हमारे लघु उद्योग, मध्यम उद्योग और कुटीर उद्योगों के साथ ग्रामोद्योग भी मजबूत होंगे, लेकिन क्या सिर्फ सरकार के अनुदान दे देने से उद्योगों को मजबूत किया जा सकता है! सवाल इसलिए भी है कि सरकारें वर्षों से इन सेक्टर्स को अनुदान देती रही हैं, लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी हम अपने इस सेक्टर को पड़ोसी मुल्क चीन के मुकाबले खड़ा नहीं कर पाए हैं.

खत्म करनी पड़ेगी चीन पर निर्भरता
सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि ऐसी क्या कमी रह गई, जिसके कारण हम लाख कोशिशों के बाद भी चीन से मुकाबला नहीं कर पा रहे. दरअसल पिछले दो दशक में हम अपने जरूरी समानों के लिए चीन पर आश्रित हो गए हैं. आपके हाथ में मोबाइल हो या घर में लगने वाला बल्ब, हमारी रोजमर्रा की जरूरतो में एक बड़ा हिस्सा चीन से बने उत्पादों का है. इसका एक बड़ा कारण है चीन से बने सामान का सस्ता होना. ऐसे में हमें अपनी सोच बदलनी पड़ेगी. सिर्फ सस्ती चीजों के लिए हम चीन में निर्मित सामान न खरीदें. हमें ये देखना पड़ेगा कि भारत में निर्मित सामान भले ही थोड़ महंगे हों, लेकिन वे लम्बे समय तक चलने वाले होते हैं. साथ ही उनसे होने वाली कमाई हमारी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने वाली होती है.

सोच बदलने का वक्तदरअसल अभी तक हम सिर्फ चीन का मुकाबला करने के लिए उत्पादकता की बात कर रहे थे, लेकिन उत्पादकता से बड़ा मुद्दा उपभोक्ता भी है. जब तक हम देश में निर्मित सामान का उपयोग करना नहीं शुरू कर देते हैं, तब तक उत्पादन बढ़ाने से कुछ भी नहीं होगा. 130 करोड़ वाले देश में अगर हम ज्यादा से ज्यादा भारत में निर्मित सामान का उपयोग करेंगे, चाहे वो थोड़ा महंगा ही पड़ता है, तो चीन से आसानी से लड़ा जा सकता है. ऐसे में हमें देखना पड़ेगा कि दैनिक उपयोग के कौन से ऐसे सामान हैं, जो हमारे आसपास निर्मित होते हैं. उन्हें हमें वहीं से खरीदना होगा जिससे हमारी ग्रामीण व्यवस्था, हमारे छोटे कस्बों की अर्थव्यवस्था मजबूत हो सके.

एक उदाहरण के तौर पर हम दीपावली जैसे त्योहार को लें, तो दीपावली पर दीये जलाना हमारी प्राथमिकता होती थी, जिसमें हम अपने गांव-कस्बों के आस-पास में बसे कुम्हारों से दीये और आसपास की मिलों से तेल खरीदते थे, जिससे हमारे आस-पास के सैकड़ों लोगों को रोजगार मिलता था, लेकिन धीरे-धीरे चाइनीज सामान का असर शुरू हुआ और दीयों की जगह इस त्योहार में चाइनीज बल्ब और लड़ियों ने ले ली. इस बदलाव से हमें थोड़ा आराम हुआ, लेकिन इसका असर हमारी गांव और कस्बों की अर्थव्यवस्था पर पड़ा. सैकड़ों लोगों का रोजगार चला गया और हजारों लोग सड़क पर आ गए. ये सिर्फ एक उदाहरण है. हमने अपने जीवन में इस तरह के तमाम बदलाव किए हैं जिसका नाकारात्मक असर हमारी अर्थव्यवस्था पर पड़ा है.

ब्रांड के पीछे भाग रहा है मध्यम वर्ग
दरअसल पिछले कुछ समय से हमारे दिमाग में ब्रांड का जो जो शुरूर चढ़ा है, उसने कहीं न कहीं हमें स्वदेशी से दूर कर दिया है. हम ब्रांड की तलाश में लगातार वो सामान खरीद रहे हैं जो विदेशों में निर्मित होता हैं और जिनकी कमाई का एक बड़ा हिस्सा दुनिया के दूसरे देशों में चला जाता है, जबकि उससे अच्छे सामान भारत में बन रहे हैं. प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में खादी का जिक्र किया. दुनिया के देशों में खादी का चलन बढ़ा है, लेकिन हम धीरे-धीरे इसे छोड़ते जा रहे हैं, जबकि दुनिया में बनने वाले और कपड़ों में खादी की तुलना करें, तो देखेंगें कि खादी हमारे पर्यावरण के ज्यादा अनुकूल है और भारत जैसे देश में जहां ज्यादा समय गर्मी रहती है खादी त्वचा को ज्यादा फायदा पहुंचाने वाली है, लेकिन हम धीर-धीरे खादी से दूर होते जा रहे हैं, ये सिर्फ एक उदाहरण है. खाने पीने में भी हम अपने स्थानीय बाजार में निर्मित ज्यादा स्वास्थ्यवर्धक खाद्य पदार्थों की जगह विदेशी कंपनियों के उन सामानों को खरीद रहे हैं जो हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहे हैं.

अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए पहचाननी होगी अपनी ताकत
अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए सबसे पहले हमें अपने गांव, अपने कस्बे की ताकत पहचाननी होगी. हमें जानना पड़ेगा कि हम अपने गांव के आसपास के कस्बों में छोटे शहरों में अपने दैनिक उपयोग की क्या-क्या वस्तुएं पैदा कर सकते हैं, बना सकते हैं. और वह क्या-क्या वस्तुएं हैं, जिनका उत्पादन कर हम दुनिया के दूसरे हिस्सों या अपने ही देश के बड़े शहरों को भेज सकते हैं. भारत अन्न के मामले में दुनिया के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है, लेकिन रख-रखाव के अभाव में हमारे उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा बर्बाद हो जाता है.

अगर हम थोड़ी सी कोशिश करें तो हम अन्न के बहुत बड़े निर्यातक के रूप में दुनिया के सामने आ सकते हैं. पिछले दिनों भारत ने मेडिकल सेक्टर में बहुत बड़ा बदलाव किया है. जो दवाइयां अब तक हम दूसरे देशों से खरीदते रहे हैं हम उसके निर्यातक के रूप में उभरे हैं. ऐसे में सबसे पहले हमें अपनी ताकत को पहचानना होगा कि हम क्या-क्या चीजें पैदा कर सकते हैं. उदाहरण के तौर पर यदि हम अपने देश के बहुत बड़े हिस्से को सोलर एनर्जी पर ले जाएं तो हम पेट्रोलियम पदार्थों का आयात कम कर सकते हैं. अगर हम पेट्रोलियम पदार्थों का आयात 10 फीसदी भी घटा लें, तो भारतीय अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा बदलाव होगा.

सरकार की हैं अपनी सीमाएं
साफ है सरकार ने घोषणा तो कर दी है. हो सकता है कि आने वाले समय में इन घोषणाओं के बाद हमारे उत्पाद का स्थानीय स्तर पर बनना तेज हो जाए, लेकिन यदि स्थानीय स्तर पर बने हुए उत्पादों का उपभोग शुरू नहीं करेंगे, तो इन कंपनियों का आगे चलना मुश्किल हो जाएगा. ऐसे में सरकार के साथ-साथ हमारी भी जिम्मेदारी हो जाती है कि स्थानीय उत्पादों को प्रमोट कर उनका उपयोग करें ताकि हमारी निर्भरता दुनिया के दूसरों देशों खासकर चीन पर कम हो. यहां हमें यह समझना पड़ेगा दुनियाभर में हुए कुछ आर्थिक समझौतों के कारण सरकार विदेश में बने सामान को भारत आने से नहीं रोक सकती. ऐसे में देश के आम नागरिकों को ही आगे आना पड़ेगा.

(ये लेखक के निजी विचार हैं)



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