Opinion: स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार बनाने का समय | Comment on Corona Crisis Its time to make health Fundamental Right nodgm | nation – News in Hindi


यह महामारी मानवीय अस्तित्व के लिए अभूतपूर्व संकट बनकर आई है.
कोरोना संकट (Corona Crisis) से निपटने में दुनिया भर की सरकारें अपने-अपने ढंग से प्रयासरत हैं, लेकिन सभी सरकारों को यह एकमत से मानना पड़ा है कि जन स्वास्थ्य (Public Health) का मुद्दा शेष सभी चिंताओं से ऊपर है.
मौलिक अधिकार बनाने की तरफ बढ़े कदम
वास्तव में यह सही समय है जब हमें इस बारे में सोचना शुरू कर देना चाहिए कि स्वास्थ्य को वैश्विक स्तर पर मौलिक अधिकार बनाने के लिए कदम बढ़ाए जाएं. इस राह में सबसे बड़ी बाधा इस सोच के साथ आती है कि स्वास्थ्य एक व्यक्ति का निजी मामला है और किसी भी स्वास्थ्य संबंधी समस्या के लिए वह निजी रूप से जिम्मेदार है. ऐसे तर्क देने वाले समूह अक्सर यह कहते भी नजर आते हैं कि स्वास्थ्य जैसे मामलों में राज्य या सरकार थोड़ा बहुत हस्तक्षेप कर सकते हैं लेकिन अंततः यह एक व्यक्ति की निजी जिम्मेदारी है और उसे ठीक करने के लिए उसे स्वयं खर्च वहन करना चाहिए. कहा यह भी जाता है कि स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार बनाने के लिए सरकार के पास पर्याप्त संसाधन नहीं है. इसके अलावा सरकार या राज्य की चिंता और प्राथमिकता में अर्थव्यवस्था और अन्य क्षेत्र आते हैं.
मौजूदा संकट से ये बातें आई सामनेलेकिन मौजूदा संकट ने यह दिखा दिया है कि अर्थव्यवस्था और सरकार की प्राथमिकता में रहने वाले अन्य क्षेत्र लोगों के स्वास्थ्य से किस कदर जुड़े हुए हैं. दूसरे शब्दों में, अगर लोगों को स्वास्थ्य की उपेक्षा की गई तो बाकी क्षेत्र भी इससे प्रभावित होंगे और उनकी प्रगति पर भी इसका असर पड़ेगा. दुनिया भर में पैदा हुए हालात इस बात की पुष्टि कर रहे हैं. अमेरिका, चीन और इटली में लोगों के बिगड़ते स्वास्थ्य के डर ने अर्थव्यवस्था से जुड़े उद्योग और सेवा क्षेत्रों की प्रमुख इकाइयां ठप पड़ी हैं. आम लोगों के अपने घरों में बंद होने के चलते रोज़मर्रा की आर्थिक गतिविधियों पर भी विराम लग गया है. मौजूदा संकट ने यह भी दिखाया है कि निम्न मध्य वर्ग और उच्च मध्य वर्ग की स्वास्थ्य से जुड़ी प्राथमिकता अलग-अलग नहीं है. सभी एक दूसरे को प्रभावित करते हैं.
सरकारें सामूहिक नीतियां बनाने पर होंगी विवश
वास्तव में स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार बना देने से सरकारें सामूहिक नीतियां बनाने पर विवश हो जाती हैं और उसकी चिंता के दायरे में बड़ा वर्ग आ जाता है. वैसे भी एक व्यक्ति जिस परिवेश में रहता है, वह उसके लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं होता. अपने गुण-दोषों के साथ वह परिवेश उसे मिलता है और बहुधा उसका स्वास्थ्य इस मिले हुए परिवेश से प्रभावित होता है. इन तरह से उसकी स्वास्थय चिंताओं को सामूहिक रूप से संबोधित करने की जरुरत होती है. मौलिक अधिकार इस आवश्यकता को पूरा करता है.
साझा और समन्वित द्रष्टिकोण की जरूरत
कोरोना वायरस के प्रसार ने यह दिखाया है कि स्वास्थ्य चिंताओं को लेकर एक साझा और समन्वित द्रष्टिकोण आगे लेकर बढ़ने की जरूरत है. इस मामले में अब विकासशील देशों और विकसित देशों की समझ में फ़र्क नहीं होना चाहिए क्योंकि कोरोना वायरस जैसी महामारी ने संक्रमण के स्तर पर कोई भेदभाव नहीं किया है. उसने सभी देशों को प्रभावित किया है और सभी देशों में स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे की कमियों को उज़ागर किया है. हालांकि ये कमियां विभिन्न देशों में कम या ज्यादा अवश्य हैं.
प्राथमिकता में बदलाव और निवेश की आवश्यकता
एक साझा दृष्टिकोण से स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार बनाने की सबसे बड़ी चुनौती ये है कि सरकारें अपनी प्राथमिकता में बदलाव करते हुए जन स्वास्थ्य से जुड़े आधारभूत ढांचे में ज्यादा से ज्यादा निवेश करे. यह समय इस बात को समझने का है कि स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार बनाना अब नागरिकों के स्वास्थ्य के लिए ही नहीं बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था के इंजन को चलाने के लिए जरूरी हो गया है. विश्व स्तर पर इस मुहीम की शुरुआत विश्व स्वास्थ्य संगठन के नेतृत्व में विभिन्न देशों को करनी चाहिए. यह समय भविष्य की तैयारियों को अमली जामा पहनाने का भी है. अगर कोरोना महामारी से ये सबक लिया जा सके तो एक बार फिर मानव और मानवता विजयी होगी.
(लेखक सोशल एक्टिविस्ट हैं. ये उनके निजी विचार हैं.)
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First published: May 9, 2020, 2:04 PM IST