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वे सैलानी, जिन्होंने जान का जोखिम लेकर तैयार किया दुनिया का नक्शा discovery of world map and atlas by sailors | knowledge – News in Hindi

सदियों पहले किसी को जानकारी नहीं थी कि दुनिया में कितने देश या कितने महाद्वीप हैं, कितने समुद्र हैं या फिर कितने खतरनाक पहाड़ और घाटियां हैं. तब दुनियाभर के सैलानियों ने जान खतरे में डालकर घूमने की ठानी. वे जिस जगह भी पहुंचते, वहां का एक खाका तैयार कर लेते और अपने देश वापस लौटते हुए जाने और आने का रास्ता बना लेते. बाद में इन्हें की नक्शे की शक्ल मिली. जानिए, कैसे तैयार हुआ दुनिया का नक्शा.

माना जाता है कि पहला नक्शा इटली में साल 1448 में बनाया गया. चमड़े पर बने इस नक्शे को planisfero नाम दिया गया. ये लैटिन भाषा का शब्द है, जिसमें प्लेनस का अर्थ है चपटा और स्फेरस यानी गोल. ये नक्शा आज भी इटली के वेनिस शहर के म्यूजियम में रखा हुआ है. आधी-अधूरी जानकारी के कारण ये नक्शा इतना लंबा-चौड़ा नक्शा है कि खोलकर बिछाने पर ये 15 किलोमीटर से ज्यादा के दायरे में फैल सकता है.

कई साहसी खोजकर्ता जहाजों और नावों में बैठकर दुनिया की सैर पर निक

15वीं सदी के दौरान प्रिटिंग प्रेस का काम शुरू हुआ और इसी दौरान देश-देश घूमकर व्यापार भी बढ़ा. ये वही दौर था, जब व्यापारियों और नाविकों ने दुनिया घूमनी शुरू की और लौटने के बाद उन्हीं की दी हुई जानकारियां प्रेस में छपवाई जातीं ताकि लोगों को दुनिया को समझने में मदद मिल सके. ये वही वक्त था, जब समुद्र को दिखाने के लिए नक्शों में नीला रंग और जमीन के लिए भूरा-पीला रंग इस्तेमाल होने लगा.नक्शों की दुनिया में क्रांति आई, जब जर्मनी के भूगोलविद ने Cosmographia नामक किताब लिखी. Sebastian Münster की लिखी ये किताब 16वीं सदी की कुछ सबसे महत्वपूर्ण और लोकप्रिय किताबों में से एक है. इसमें सेबेस्टियन ने काफी बारीकी से नक्शा बनाया था. इसमें समुद्री यात्रियों के लिए काफी जानकारियां थीं, जो अनजान होने के कारण कठिन यात्रा में जान गंवा बैठते थे. इस किताब के 24 संस्करण आए थे और देश-विदेश में इसे काफी लोकप्रियता मिली थी. यहां तक कि सेना भी नक्शे समझने के लिए कॉस्मोग्राफिया की मदद लिया करती थी.

उस दौरान समुद्री सफर आज की तरह सुरक्षित नहीं हुआ करता था. हजारों किलोमीटर की यात्रा के दौरान रास्ते में बीमारियों से मौत हो जाया करती. समुद्री दुर्घटना जैसे तूफान में जान गंवा बैठना तब आम बात थी. रास्ता भटक जाने पर नाविक और व्यापारी दिनों तक आधा पेट खाकर गुजारा करते. कई बार समुद्री जीव-जंतुओं का हमला भी जान ले लेता था. यही वजह है कि ज्यादातर व्यापारी अपने साथ नक्शानवीस और सैनिक लेकर चला करते थे.

एंटोनियो ने एक साहसी पुर्तगाली नाविक को असिस्ट करने से यात्रा की शुरुआत की थी

सबसे पहला एटलस 22 मई, 1570 को छापा गया, जिसके बाद नक्शों की दुनिया में क्रांति आ गई. डच नक्शानवीस Abraham Ortelius ने ये एटलस तैयार किया था, जिसे थियेटर ऑफ द वर्ल्ड नाम दिया गया. इसमें जगहों का बारीकी से वर्णन था. जैसे अगर रेगिस्तान है तो वहां ऊंट और खजूर के पड़े बने थे. साथ ही इसमें उन सैलानियों और व्यापारियों को भी श्रेय दिया गया था, जो नक्शे बनाते रहे थे और जिनकी मदद से ये कंपाइल किया गया था. ये एटलस का स्टैंडर्ड माना जाने लगा और किताब दुनिया के अमीरों की लाइब्रेरी में सजने लगी. साल 1612 में जर्मन नक्शानवीस और भूगोलविद Gerardus Mercator ने दुनिया का नक्शा तैयार किया, जो पहले से भी ज्यादा बढ़िया था. इसे पहली बार एटलस नाम दिया गया. इसके बाद से लगातार नक्शों की दुनिया बदलती चली गई.

इसी दौरान कई साहसी खोजकर्ता जहाजों और नावों में बैठकर दुनिया की सैर पर निकले हुए थे. इनमें से एक थे इटली के Antonio Pigafetta. एंटोनियो ने एक साहसी पुर्तगाली नाविक को असिस्ट करने से यात्रा की शुरुआत की. सफर के दौरान ही उस नाविक की फिलीपींस में मौत हो गई, जिसके बाद भी एंटोनियो ने सफर नहीं रोका और समंदर-समंदर होते हुए दुनिया खोजते रहे.

समुद्री दुर्घटना जैसे तूफान में जान गंवा बैठना तब आम बात थी

लौटने पर अपने अनुभव को एंटोनियो ने एक डायरी में लिखा, जिसे नाम दिया- Report on the First Voyage Around the World. ये यूरोप के सभी राजाओं को भेंट में दिया गया. एंटोनियो ऐसे पहले शख्स थे, जिन्होंने सफर के दौरान एक नोटबुक रखी, जिसमें वे जगह का नक्शा ही नहीं, बल्कि उसके निवासियों, वहां के पेड़-पौधों और दूसरी खासियतों के बारे में लिखते थे.

वैसे दुनिया के नक्शे की शुरुआत किसने की, इसे लेकर अलग-अलग मत भी हैं. चूंकि व्यापार-व्यावसाय को लेकर यूरोप ही नहीं, एशिया के लोग भी नावों और जहाजों से सफर पर निकला करते थे इसलिए चीन में भी नक्शे पर काफी काम हुआ. हालांकि माना जाता है कि दुनिया का सबसे पहला बेसिक नक्शा ग्रीक भूगोलविद और नक्शावनीस Anaximander ने बनाया था. 546 ईसापूर्व के इस भूगोलविद ने कहा था कि दुनिया बेलनाकार है. ये अपने समय के ज्यादातर वैज्ञानिकों से कहीं ज्यादा वैज्ञानिक सोच रखते थे. माना जाता है कि इन्होंने ही कहा था कि बिजली गिरना या कोई दूसरी चीज ईश्वर का गुस्सा नहीं, बल्कि प्राकृतिक बदलाव है.

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